14.11.20

यदि पैसा चाहते हों तो अपने-अपने क्षेत्र के सहारा कार्यालय कब्जाने होंगे

CHARAN SINGH RAJPUT

 
देखने में आ रहा है कि सहारा इंडिया के ठगे गए निवेशक, एजेंट और कर्मचारी अपने पैसों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को अपनी पीड़ा से संबंधित पत्र भी लिखा है। जगह जगह केस भी चल रहे हैं। इन सब के बावजूद कुछ हल नहीं निकल पा रहा है। इस पर मंथन की जरूरत है।


दरअसल सहारा ग्रुप में सहारा मीडिया का यही काम है कि सहारा के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को शासन प्रशासन से सांठगांठ के चलते दबाया जाए। सहारा समय और राष्ट्रीय सहारा के साथ ही आलमी सहारा के संपादको और रिपोर्टरों को इस बात का ही ज्यादा वेतन मिलता है कि ये लोग गरीब बेसहारा और कमजोर लोगों से ठगे गए पैसों को दबाने में सहायक होते हैं। यदि कहीं से कोई आवाज उठती है तो उसे शासन प्रशासन से दबवा देते हैं।

रिपब्लिक भारत के मुखिया अर्णब गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने में दर्ज केस में गिरफ्तारी हो गई तो पूरी की पूरी भाजपा सरकारें बौखला गईं। भाजपा के नेता कार्यकर्ता सब सड़कों पर आ गए। सहारा प्रबंधन के सताये कितने लोगों ने आत्महत्या की है। किसी को कोई मतलब नहीं। ये जो निवेशक और एजेंट रोज आंदोलन कर रहे हैं ये भी किसी को दिखाई नहीं दे रहे हैं। सब वग़ैरत लोग सत्ता से लेकर हर तंत्र में बैठे हैं।

 ऐसे पैसा मिलना बहुत मुश्किल लग रहा है। ऐसा भी नहीं है कि जो लोग काम कर रहे हैं उन्हें सही ढंग से वेतन मिल रहा हो। ये लोग उन्हें भी कई कई महीने में वेतन दे रहे हैं। मतलब सहारा के कर्मचारी, निवेशक और एजेंट दयनीय स्थिति में हैं, बंधुआ मजदूरों की भूमिका में हैं और प्रबंधन और मालिकान मजे मार रहे हैं।

कितने लोग सहारा से पैसा न् मिलने के चलते अपनी बेटी की शादी नहीं कर पाए, कितनों के बच्चों का भविष्य चौपट हो गया। कितने परिवार बर्बाद हो गए। कितनों ने दम तोड़ दिया। किसी को दिखाई नहीं दे रहा है ? सहारा के चैयरमैन सुब्रत राय को चार साल से ऊपर पैरोल पर जेल से बाहर आये हो गए हैं। किसी को दिखाई नहीं दे रहा है ?  सुप्रीम कोर्ट जरा जरा सी बात को अवमानना से जोड़ देता है। 

सुप्रीम कोर्ट को याद नहीं आ रहा है कि उसने किसी को पैरोल पर बाहर भी भेज रखा है। मैं ये बातें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि शासन प्रशासन से लेकर कोर्ट तक सहारा प्रबंधन का साथ दे रहा है। अब निवेशकों, एजेंटों के साथ ही कर्मचारियों के सामने एक ही रास्ता है कि करो या मरो। हो सकता है कि सहारा के पास पैसा न हो पर संपत्ति तो है। मतलब यदि पैसा चाहते हो यो कब्जा लो अपने अपने क्षेत्र के सहारा कार्यालय। जब आंदोलनकारियों का कब्जा सहारा कार्यलयों पर होगा। तब जाकर शासन प्रशासन और कोर्ट की आंखें खुलेंगी।

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