बिहार चुनाव के बाद अब पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो रही है जिस तरह से बिहार चुनाव के रिजल्ट रहे उससे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चिंता बढ़ गई है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं जिसमें बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए 148 सीट पानी जरूरी है. पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 211 सीट पाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. जबकि कांग्रेस ने 44, लेफ्ट ने 26 और भाजपा ने मात्र 3 सीटों पर कब्जा जमाया था. पिछला विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही भाजपा वहां लगातार सक्रिय है और इस साल 2021 के विधानसभा चुनाव में वह ममता बनर्जी को सीधे टक्कर देने को तैयार है.
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में सीधा मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच रहने वाला है. भाजपा पश्चिम बंगाल में काफी पहले से ही राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनावी माहौल तैयार कर रही है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि मुस्लिम वोट और सेक्यूलर वोटों का क्या होगा. पश्विम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से 120 सीटों पर मुस्लिम वोटर अच्छी खासी तादाद में हैं और राज्य में करीब 30 प्रतिशत मुस्लिम वोट है. ऐसे में अगर ये सभी एकजुट होकर किसी पार्टी को वोट दें तो उस पार्टी को बहुमत प्राप्त करना आसान हो जाता है.
ये मुस्लिम वोट ममता बनर्जी के वोटबैंक माने जाते हैं जिसकी वजह से वह सत्ता पर काबिज भी हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बाहु्ल्य इलाकों से ममता बनर्जी को 38 और कांग्रेस को 17 सीटें प्राप्त हुयी थी. वहीं भाजपा का इन इलाकों में खाता तक नहीं खुलने पाया था. अब इन्हीं मुस्लिम वोटों के लिए ममता बनर्जी की चिंताएं बढ़ गई है. दरअसल हालिया बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने अपना लोहा दिखाते हुए बिहार में 5 सीटों पर जीत दर्ज की है औऱ जीत के बाद ही बंगाल के विधानसभा चुनाव में कूच करने का ऐलान कर डाला है. अब अगर ओवैसी बंगाल से चुनाव लड़ते हैं तो मुस्लिम वोटरों का झुकाव उनकी तरफ हो सकता है मुस्लिम वोट बिखर जाएगे, इसका पूरा फायदा भाजपा को मिल सकता है.
मुसलमानों का भी ओवैसी को समर्थन देने पर एक अलग नज़रिया है. अभी तक सेक्युलर पार्टियों से लगाव रखने वाले मुस्लिम मतदाता अब ओवैसी की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उनका मानना है कि सेक्युलर पार्टियां उन्हें सब्ज़बाग सपने तो दिखाती हैं लेकिन चुनाव के बाद वह करवटें ले डालते हैं. उनका इस्तेमाल महज एक वोटबैंक के रूप में किया जाता है. मुस्लिम मतदाताओं के बीच ओवैसी इसी का फायदा उठाते हैं और लोग ओवैसी पर भरोसा भी जल्दी कर बैठते हैं जिससे ओवैसी का कद तो बढ़ रहा है लेकिन सेक्युलर पार्टियों का इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. पश्चिम बंगाल का चुनाव पिछले काफी समय से चर्चा का केन्द्र रहा है और वहां की ज़िम्मेदारी भाजपा के सबसे सफल नेता अमित शाह के हाथों हैं तो वहीं ममता बनर्जी के तेवर भी कम नहीं आंके जा सकते हैं. पश्चिम बंगाल का चुनाव बेहद रोमांचित और बेहद कड़ा रहने वाला है जिसकी झलक अभी से ही दिखाई देने लगी है.
लेखिका
डा0 शमीम फात्मा
(जौनपुर, उ0प्र0)
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