मायावती ने आज उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव को लेकर बसपा के सात विधायकों द्वारा विद्रोह करके सपा में चले जाने पर कहा कि वह सपा को हराने के लिए बीजेपी समेत किसी भी विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दे देंगी। मायावती के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि अब वह खुलकर बीजेपी के साथ आ गई हैं और उनका बीजेपी के साथ अब तक चल रहा लुका छुपी का खेल खत्म हो गया है। मायावती ने इसी प्रकार का बयान मेरठ में एक चुनावी सभा में मुसलमानों को लेकर भी दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि चूंकि मुसलमानों का कोई भरोसा नहीं है, अतः उन्होंने अपने वोटरों को कह दिया है कि वे अपना वोट मुसलमान प्रत्याशी को न देकर भाजपा प्रत्याशी को दे दें। यह उल्लेखनीय है कि मायावती इससे पहले भी तीन बार भाजपा के साथ गठजोड़ करके मुख्यमंत्री बन चुकी हैं और अब भी उससे हाथ मिलाने में उन्हें कोई परहेज नहीं है।
जहां तक सपा का सवाल है उसका तो पहले से ही दूसरी पार्टियों को तोड़ने का ट्रैक रिकार्ड रहा है। सबसे पहले मुलायम सिंह ने सीपीआई के विधायकों को तोड़ा था। इसके बाद 2003 में बसपा के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाई थी और अब फिर बसपा के 7 विधायकों को तोड़ा है। सपा एक बार भाजपा की मदद से सरकार भी बना चुकी है। यहाँ तक कि 1992 में संघ गिरोह द्वारा बाबरी मस्जिद तोड़ने की घटना में सपा 5 दिसम्बर से लेकर 11 दिसम्बर तक मौन धारण किये रही, जिसके गवाह खुद सपा में मौजूद रेवती रमण सिंह है. स्पष्ट है कि सपा शुरू से ही जोड़तोड़ की राजनीति करती है और वह भी आरएसएस-भाजपा के साथ गठजोड़ करती रही है.
इसलिए तथाकथित सामाजिक न्याय का दंभ भरने वाली सपा तथा बहुजन के नाम पर राजनीति करने वाली बसपा की अब तक की गठजोड़ व तोड़फोड़ करके सत्ता की राजनीति से आरएसएस-भाजपा को परास्त नहीं किया जा सकता उलटा उत्तर प्रदेश में तो भाजपा को मजबूत करने का श्रेय भी इन्हीं दोनों पार्टियों को जाता है।
ऐसे में आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट का निश्चित मत है कि गठजोड़ तथा तोडफोड की राजनीति करने वाली इन पार्टियों द्वारा उत्तर प्रदेश का कोई भला नहीं हो सकता। इसलिए वक्त की जरूरत है कि प्रदेश की सभी वाम जनवादी ताकतें एक बहुवर्गीय जन पार्टी के गठन हेतु संगठित हों ताकि आरएसएस/भाजपा की अधिनायकवादी एवं कार्पोरेटपरस्त राजनीति का प्रतिवाद किया जा सके।
एस आर दारपुरी,
राष्ट्रीय प्रवक्ता,
आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट
29 अक्टूबर 2020
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