1994 की दीपावली के आसपास की घटना है। इंदौर की एमआईजी कॉलोनी में मैं अपने मित्र मनीष शर्मा के घर मिलने गया था। उनके घर के कुछ पहले एक घर के सामने सड़क पर एक लॉरी में बर्फ की सिल्लियां पिघल रही थीं। घर में चहलपहल थी। मेरा ध्यान बर्फ के पानी में घुले लाल रंग पर गया। वह खून था। और तब मुझे सुबह के अखबार में छपी खबर याद आई। यह एक जैन उद्योगपति का खुशहाल परिवार था, जिसमें एक दिन पहले ही पति-पत्नी दोनों ने खुदकुशी कर ली थी। यह बहुत दर्दनाक हादसा था, जो हाल की कुछ घटनाओं से मुझे याद आया है।
उस दिन की बड़ी खबर यह थी कि जैन परिवार की एक कन्या किसी लड़के के साथ कहीं चली गई थी। वह कॉलेज में पढ़ती थी और किसी ऐसे लड़के के संपर्क में आई, जो न तो उसका सहपाठी था, न जैन, न ही पड़ोसी और न ही किसी भी रूप में उस हैसियत में था कि रिश्ते की बात तय हो। वह बहुत मामूली हैसियत का नौजवान मुस्लिम था, जिन्हें बोलचाल की भाषा में पंचरछाप कह दिया जाता है। इस बारे में परिवारजनों को कुछ हल्की-फुल्की जानकारी थी और इस नाते बेटी को समझाइश वगैरह भी शायद दी गई थी। लेकिन उम्र के असर में कई बार समझ शून्य ही होती है। एक दिन मौका पाकर बिना कुछ सोचे-विचारे उस बेटी ने घर से निकलने का निर्णय लिया। शाम तक जब कुछ पता नहीं चला तो तय हो गया कि उस लड़के ने अपना काम कर दिखाया है। हताश माता-पिता ने एक साथ जान देने का निर्णय लिया। उस लड़की का शायद एक ही भाई था, जो छोटा था और डेली कॉलेज में पढ़ता था। तब लव जिहाद शब्द का प्रचलन आज जैसा नहीं था।
जैन परिवार की इस दिल को दुखी करने वाली कहानी में इसके बाद उस लड़की का कोई पता नहीं चला। यह सुना गया कि वह पुणे चली गई थी और शादी वगैरह करके इंदौर लौट आई। वे इंदौर में कहां हैं, उनके कितने बच्चे हैं, कैसे घर में वह गई, इस बारे में जैन परिवार के करीबी भी न के बराबर जानते हैं। अब तो उनके बच्चे भी शादी के काबिल हो चुके होंगे। क्या प्यार में पागल उस बेटी को अपने मां-बाप के प्रति कोई अपराधबोध नहीं होता होगा? अपने घर में खानपान की सात्विक आदतों के बीच से निकलकर बिल्कुल ही अलग परिवेश में ढालना उसकी ऐसी मजबूरी रही होगी, जिसमंे अब रिटर्न टिकट की गुंजाइश खत्म हो चुकी होगी। उसका भाई सातवीं क्लास में था। क्या अब इन दोनों के बीच कोई रिश्ता होगा?
हाल ही में हमने एक वीडियो देखा जिसमें तौसीफ नाम का एक लड़का उस लड़की के साथ छीना-झपटी करते हुए सिर में गोली मार रहा है, जिसके बारे में यह कहा गया कि वह एकतरफा मोहब्बत करता था। यह दिल्ली के पास किसी शहर की घटना है। वह लड़की हिंदू थी, जो सड़क पर ही बेमौत मारी गई। उस पर अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कुबूल करके बाकायदा शादी करने का दबाव था। लॉक डाउन के दौरान दिल्ली में बुराड़ी नाम की जगह से एक नेहा का वीडियो देश भर में चर्चा का विषय बना था, जिसे नफीस ने प्यार-मोहब्बत के ऐसे ही एक खुशगवार सत्र के बाद निकाह में लिया था। उनकी एक बेटी भी हुई और इसी बीच नेहा जी को ज्ञात हुआ कि वे नफीस की दूसरी बीवी हैं। घरेलू कलह के बाद मार पिटाई और तमंचे तक बात गरमाकर थाने में दर्ज एक एफआईआर बन गई। देवास में भी एक कपड़े की दुकान चलाने वाले हैप्पी अली नाम के फैशनेबुल नौजवान ने समृद्ध सिंधी परिवार की एक कन्या को जीवनसाथी बनाया। दो बेटे हुए और एक दिन कन्या ने खुदकुशी कर ली। ऐसी खबरें लगातार पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भी धड़ल्ले से आ रही हैं। एक बात दोनों तरफ एक जैसी है और वो ये कि कन्या गैर मुस्लिम होगी।
ऐसे बेमेल माने जाने वाले एकतरफा प्रेम प्रसंग अचानक ही बढ़ गए हैं, ऐसा नहीं है। लेकिन अब तेज रफ्तार मीडिया में कुछ भी किसी से छुपा हुआ नहीं रह गया है। सब कुछ सरेआम है। अगर यह मोहब्बत है तो भी सबके संज्ञान में आ रही है और नाम बदलकर दोस्ती करके शादी करने के झांसे हैं तो भी सबको सब पता चल रहा है। अगर नवाजुद्दीन सिद्दीकी और फरहान अख्तर अपनी पहली हिंदू बीवियों को छोड़कर दूसरी घात में लगे हैं तो सबको सब मालूम चल रहा है। चूंकि कुछ लड़कों ने यह भी माना है कि उन्हें इस हिसाब से उम्दा आफर हैं कि ब्राह्मण लड़की लाओगे तो कितना पाओगे और लड़की क्षत्रिय होगी तो कितना मिलेगा? बेेचारी उस लड़की को बाइक सवार लड़के में सलमान, शाहरुख और आमिर दिख रहे हैं और उस लड़के को वह कीमत जो मौलवियों ने बताई है। इसी कारण इसे लव जिहाद कहा गया है। लड़की जिसे जीवन साथी समझ रही है, उस जीवन साथी के लिए ऐसे चार रास्ते वाजिब हैं। वह ऐसी चार को गिनकर ला सकता है। ऐसी किसी भी घटना के बाद मचे हल्ले-गुल्ले के शांत होते ही कोई नहीं जानता कि नेहा का क्या हुआ और वो कहां किस हाल में है? तब तक किसी और शहर से कोई और हैप्पी अली अपना काम दिखा देते हैं।
अगर यह सहज रूप में घटित हो रहा और समझदारी के साथ आपसी रजामंदी है तो किसी को भी दखल का हक नहीं है, यह उन दोनों के बीच का मामला है। लेकिन अगर किसी सोची-समझी साजिश के तहत निपटाया जा रहा है तो यह समाज और सरकार के लिए अलर्ट होने का सही समय है। घटनाओं का पैटर्न इन्हें संदेह से परे नहीं रखता और एक किस्म की शांत लहर समाज से टकरा रही है, जो मौका पाते ही ज्वार-भाटे में बदलकर एक परिवार का सुख-चैन छीन ले जाती है। यह हर उस परिवार के लिए भी संवेदनशील समय है, जिनके यहां बड़ी होती कोई बेटी है। आजादी अच्छी बात है। बशर्ते वह किसी हादसे की तरफ न ले जाए। शहरी जिंदगी में आज के व्यस्त समय में जब मां-बाप दोनों ही कामकाजी हैं तो ऐसे में किशोर उम्र के बच्चों को समझाइश के गंभीर सत्र आवश्यक हो गए हैं। उन्हें यह तो बताना ही होगा कि वे स्कूल, कॉलेज या आफिस में किस सावधानी से दोस्त बनाएं। किसे अपने करीब आने दें और किसके करीब स्वयं जाएं। हर ऐसी घटना का सबक कम से कम परिवारों के लिए तो यही है।
जहां तक सरकारों का सवाल है, देश की सरकारों ने लड़कियों के प्रति परिवारों की सोच बदलने के लिए लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाएं चलाईं। इसका काफी अच्छा प्रभाव पड़ा है। लेकिन अगर सचमुच ही सरकार किसी परिवार की लाड़ली को लक्ष्मी मानती है तो उसकी रक्षा की जिम्मेदारी भी उसकी है। लाखों बेटियां गांव, कस्बों और छोटे शहरों से पढ़ने या नौकरियां करने बड़े शहरों में होस्टलों और किराए के घरों में रहती हैं। ऐसे इलाके आवारागर्दी करने वाले फैशनेबुल लड़कों के लिए शिकारगाहों की तरह हर शहर में फैले हुए हैं। मुस्लिम और गैर मुस्लिम युगलों के बीच नकली नामों के साथ रिश्ते गांठने की यह ठगी आम है। मैं किसी निर्णय पर नहीं हूं, लेकिन परिवार, समाज और सरकार को इस मसले से खुलकर मुखातिब होना अब जरूरी है। यह मसला बहुत गंभीर शक्ल ले रहा है, जो अक्सर स्थानीय स्तर पर साम्प्रदायिक तनाव का कारण भी बन जाता है। उत्तरप्रदेश सरकार कोई कानून बनाने जा रही है। देखें उसमें क्या है और उससे ऐसे ठग और फरेबी आशिकों का क्या इलाज हो पाता है, जो गैर मुस्लिम परिवारों की लड़कियों पर अब भी मध्ययुगीन माले गनीमत की घात लगाए हुए चील और गिद्धों की तरह मंडरा रहे हैं।
Vijay Tiwari
vijaye9@gmail.com
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