22.11.20

देश की बेटी, बेटी न रही वो हिंदू मुसलमान हो गई

बिहार के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले ही संबोधन में जीत का श्रेय साइंलेंट वोटरों को दिया और अपनी जीत में सबसे बड़ा हाथ महिलाओं का बताया. ये वही महिलाएं हैं जो आए दिन बालात्कार और शोषण का शिकार होती हैं. हर चौक-चौराहे पर इनको बालात्कार का डर होता है. एक तरफा जुनूनी प्यार के चलते इन्हीं महिलाओं या बच्चियों को जान तक गंवानी पड़ जाती है. इनको बीच सड़कों पर गोली मार दिया जाता है या तेजाब से इनके शरीरों को जला दिया जाता है तब देश की उन बेटियों या महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमदर्दी नहीं दिखाते हैं हालांकि उन्हें किसी खिलाड़ी के उंगली में चोट लगने से तकलीफ हो जाती है, उनका ट्वीट आ जाता है लेकिन प्रधानमंत्री का ट्वीट उन लड़कियों के लिए नहीं आता है जो मौत के घाट बेरहमी के साथ उतार दी जाती हैं.


सबका साथ सबका विकास की बात करने वाली सरकार महिलाओं और बेटियों पर हो रहे ज़ुल्म पर चुप्पी साध लेती है. सरकार बेटियों को इंसाफ दिलाने के मामले में हमेशा कमज़ोर साबित हुई है और सबसे हैरतअंगेज़ बात तो यह है कि बेटियों को न्याय दिलाने के बजाए सरकार का पूरा ध्यान इस बात पर रहता है कि कैसे वह पूरे घटनाक्रम को दबा डाले और इसका आरोप विरोधी पार्टीयों पर मढ़ दे. उत्तर प्रदेश का हाथरस कांड तो आपको याद ही होगा. आरोपियों पर कड़ाई करने के बजाए सरकार पीड़ित पक्ष पर दबाव बना रही थी. रातोंरात बच्ची का अंतिम संस्कार कर डाला गया और दलील इस बात की दी कि कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर था, दंगे की संभावनाएं थी. इस दलील पर तो सुप्रीम कोर्ट भी आगबबूला हो बैठी थी और उत्तर प्रदेश सरकार को जमकर लताड़ा था.

सिर्फ उत्तर प्रदेश ही क्यों, अब तो बात मध्य प्रदेश की भी करनी चाहिए. मध्य प्रदेश की सरकार में गृहमंत्री नरोत्तमदास मिश्रा ने कहा है कि अगले विधानसभा सत्र में उनकी सरकार लव जिहाद पर विधेयक लाएगी जिसमें अपराधी को 5 साल की कठोर कारावास की सजा का प्रावधान रहेगा और गैरजमानती धारा में केस दर्ज होगा. अब सवाल उठता है कि आखिर इसका पैमाना क्या होगा, लवजिहाद की पहचान क्या होगी. तौसीफ नाम का लड़का अगर निकिता नाम की लड़की को मार डाले तो वह लव जिहाद होगा और अगर सतीश कुमार नाम का लड़का गुलनाज़ नाम की लड़की को मार डाले तो वह क्या लव जिहाद की श्रेणी में आएगा. अगर सही नज़रिए से देखा जाए तो दोनों के ही अपराध एक जैसे हैं इसलिए सज़ा भी एक ही तो होनी चाहिए. मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को सख्त से सख्त सज़ा देना चाहिए लेकिन सज़ा दोनों को एक जैसी होनी चाहिए. एकतरफा प्यार या यूं कहें कि जुनूनी प्यार को धर्म का चोला पहना कर राजनीतिक रोटीयां नहीं सेंकना चाहिए.
इस पूरे मामले को तूल देने में सबसे बड़ा हाथ भारतीय मीडिया का है, वह नीकिता हत्याकंड पर तो खूब आगबबूला हो जाती है लेकिन गुलनाज़ हत्याकंड पर चुप्पी साध लेती है.

देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय मीडिया के हालिया हालात पर चिंता जताई है और खूब फटकार भी लगाई है लेकिन मीडिया ने अपने एजेंडों को कतई नहीं बदला है. वह धार्मिक मतभेदों को उजागर करती है औऱ एक एजेंडें के तहत अपना कार्य कर रही है. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि मीडिया न्यूज़ कम ओपीनियन ज़्यादा दिखा रही है वैसा ही भारतीय मीडिया अभी भी कर रही है. मीडिया और सरकार दोनों का अपना अपना ऐजेंडा है जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी हैं. ऐसे में सबसे बड़ा नुकसान तो सिर्फ महिलाओं को हो रहा है जिसके साथ किसी भी तरह की कोई भी घटना घटती है तो उसके दो पक्ष बन जाते हैं ऐसा अमूमन हर केस में देखने को मिलता है. अगर पीड़ित बेटी हिंदू है तो हिंदू समाज आगबबूला होता है और अगर पीड़िता मुस्लिम है तो मुस्लिमों का खून खौलता है. जबकि सारी ही बेटीयां देश की बेटी हैं सबको साथ मिलकर देश की हरेक बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए आवाज़ बुलंद करनी चाहिए, तभी जाकर किसी भी सरकार पर एक दबाव पड़ेगा और न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ेगी वरना राजनीति का शिकार होकर हमारे देश की सारी ही बेटीयां न्याय पाने की जगह राजनीतिक पार्टीयों की राजनीति का खेल बन कर रह जाएंगी.

लेखिका - डा0 शमीम फात्मा, जौनपुर (उ0प्र))

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