मैं यशवंत सर ( भईया ) को निजी तौर पर तो नहीं पहचानता लेकिन भड़ास 4 मीडिया पढ़ता रहता हूँ उनके हिम्मत की दाद देता हूँ कि वो मीडिया के अंदरखाने चल रहे दुर्व्यवस्था को बिना डरे खुलकर सामने लाते है .क्योंकि कुछ मीडिया बॉलीवुड में परिवारवाद, राजनीति में परिवारवाद पर तो खुलकर बोलती है लेकिन खुद को कभी आईने के सामने खड़ा करना पसंद नहीं करती
खैर शुरू करते है आज बात मीडिया में आये नए युवाओं के संघर्ष की क्योंकि एक नौसिखिया युवा बैकग्राउण्ड में 2 AC , चमचमाता ऑफिस एक सेल्फी और भौकाल टाइट के पीछे एक बहुत बड़ा दर्द छिपाए रहता है
मीडिया में आने वाले हर नए युवाओं को डराया जाता है, धमकाया जाता है, पुलिस और मंत्रियों की बातें कर खौफ में रखने की कोशिश की जाती है की उनकी काफी पहुँच है,ताकि वो उस युवा के नजर में महान बने रहे
चार सड़ी गली पुरानी किताब और उनके लेखकों के नाम याद कर लेते है और टूटी फूटी अंग्रेजी है तो चार चाँद लग जाते है
कहा जाता है कि मैंने 4 साल समय दिया तब माइक पकडने को मिला , तुम 1 महीने में ही माइक ID पकड़ना चाहते हो, ये कहकर आगे पीछे घुमाया जाता है, हमारी ( नए युवाओं की ) मजबूरी है हम घूमते है ( चाय ढोना, गुटका ढोना) आम बात होती है,
हद तो तब हो जाता है जब रिपोर्टर साहब कहते है अरे छोटू कभी रूम पर पार्टी दो ( उनका मतलब सीधे शराब ) से होता है
हम वो भी करते है, सोचते है एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को अंगूठा दे दिया था हम शराब ही पिला देते है
बड़े रिपोर्टर अपने दोस्त से हमारा परिचय इस अंदाज में करवाते है जिसमें हमें शर्मिंदा होना पड़े
खैर, इतनी बेइज्जती के बाद भी हम उनका कैमरा पकड़ते है , इस उम्मीद में की सर एक टिक टैक हमें भी करने का मौका देंगे . लेकिन वो दिन कभी नहीं आता है बल्कि डराया जाता है की टिक टैक नहीं कर पाओगे , मानो उनका धरती पर जन्म ही टिक टैक करते हुआ हो
अरे साहब , नदी में उतरेंगे तब तो डूबेंगे या तैरना सीखेंगे , अफसोस नहीं रहेगा कि डर के मारे हम नदी में उतरे ही नहीं
डराते किसे हो साहब , डरे और मरे हुए तो पहले से ही है हम
वैसे भी मीडिया में आने के बाद जीवन हाशिये पर चला जाता है जिंदगी और मौत का पता नहीं रहता
मीडिया में पुराने सब लोग बुरे नहीं है
लेकिन कुछ लोगों को 2 दिन भी पुराने मीडिया में आये युवाओं से अपनी कुर्सी को खतरा महसूस होने लगता है
10- 10 घंटे काम करने के बाद सीखने के नाम पर 2 साल बर्बाद करो , कभी 4000 तो कभी 2300 तनख्वाह पाओ ( अजीब है लेकिन कड़वी सच्चाई है )
कहा जाता है कि जिस थाली में खाया जाता है उसमें छेद नहीं किया जाता , लेकिन उस थाली के पैसे दिए गए हो तो हम कह सकते है कि थाली में कहाँ-कहाँ दाग लगे है
दर्द तो तब होता है जब उसी संस्थान में लोग जुगाड़ लगा कर फ्री में काम सीख लेते है जिस काम को सीखने के लिए मीडिया से अपरिचित नए लड़कों को संस्थान को 30 हजार से एक लाख और अधिक तक देने पड़ते है !
सबसे खास बात तो ये है कि अगर आपको मीडिया में टिकना है तो अव्वल दर्जे का चापलूस होना बहुत जरूरी है, माँ बाप से झूठ बोलकर पैसे उड़ाना जानते है तो ये भी आपके काबिलियत में चार चाँद लगा देगा, निजी गाड़ी है तो क्या कहने
अरे साहब इस लड़के ने अपना घर परिवार छोड़ कर एक सपना लेकर दिल्ली के छोटे से कमरे में रहता है , कभी एक वक्त खाता है तो कभी ठेले वाले 20 रुपए के छोले भटूरे और नाले पर रखे पानी से काम चला लेता है
खैर फिर भी वो आपको अपना भाई मानता है, और आपसे उम्मीदें लगा बैठता है आप जो कहते है करता है
दर्द तो तब होता है जब आप उसे अपना चमचा मान लेते है
करीब 1.5 साल के दौर में कई बड़े लोगों और पत्रकारों से मिला लेकिन Sanjay Singh और Ajassr Piyush Pramod Kumar Pandey Manish Pandey जैसे सर लोग भी मिले जिसमें मैंने कभी ऐसी मानसिकता नहीं देखी , इन लोगों ने हमेशा सहयोग करने की कोशिश की है सिर्फ निजी तौर पर मेरा नहीं बल्कि अन्य लोगों का भी ...कम से कम इनलोगों ने किसी को पीछे कदम खींचने के लिए मजबूर नहीं किया या तंज नहीं कसा है
अभी एक News Sabha नाम से न्यूज पोर्टल चला रहा हूँ , उसमें कई लोग मेरी उम्मीद मेरे हौसले को तोड़ने का प्रयास करते रहते है
पोर्टलों पर तमाम सवाल उठते रहते है लेकिन एक सुकून मिलता है क्योंकि इसमें नाव भी हमारी पतवार भी वक्त और धार ने साथ दिया तो नदी पार कर लेंगे या डूब जाएंगे लेकिन अफसोस नहीं रहेगा की डूबने के डर से नाव को चलाया नहीं
कुछ मीडिया के बड़े ज्ञानी जिनके पास मंत्री जी के पर्सनल असिस्टेंट का नंबर होता है कहते है
बड़ा नेता तुम्हारे पोर्टल की माइक Id देखते ही तुम्हे भगा देगा, पैसे कैसे कमाओगे , दलाली तो करनी पड़ेगी,
मैं कहता हूँ बड़ा नेता भी इंसान है और अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ अगर होगा भी तो यही होगा " दे दूंगा दुई मुक्का नाच कर गिर जाओगे " उसके लिये भी हम तैयार है मरता क्या नहीं करता
अगर भविष्य में पोर्टल पर खतरा होगा भी तो हम गरीबों की आवाज तो बन ही रहे है और जनता हमारा साथ देगी
क्योकि सत्ताकारिता और पत्रकारिता में फर्क होता है
अभी तक शायद हम भी सत्ताकारिता ही कर रहे है , जिसे अब बदलना बहुत जरूरी है
खैर मरते दम तक हमे परेशान कर सकते हो तोड़ नहीं सकते
किसी संस्थान का नाम इसलिए नहीं ले रहा हूँ क्योंकि पैसे देकर ही सही कुछ तो सीखा मैंने और उनकी विचारधारा का फैन रहा हूँ और मैं एहसान फरामोश नहीं हूँ
लेख समाप्त , मेरी हिन्दी,लेख और काबिलियत पर सवाल जरूर उठा सकते है लेकिन सच को गलत साबित नहीं कर सकते
लेखक - पीयूष तिवारी
theknnu@gmail.com
एक छोटा सा पोर्टल चला रहा हूँ
News Sabha के नाम से फिलहाल पैसे तो नहीं मिल रहे लेकिन काफी सुकून है
Twitter, Instagram पर @piyushtofficial के नाम से हूँ
Keep it up piyush.
ReplyDeleteआपकी लेखन शैली एवं विचारों की अभिव्यक्ति में जो साफगोई है वह अच्छी लगी! कृपया विविध समसामयिक सामाजिक राजनैतिक व राष्ट्रीय मुद्दों पर इसी तरह अपनी बेबाक राय रखें! हमें उन्हें पढ़ने का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteसत्य वचन
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