19.12.20

काकोरी काण्ड बलिदान दिवस की 93वीं बरसी पर श्रद्धांजलि सभा, वीर रस कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन

 



क्रांतिकारी राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां,  ठाकुर रौशन सिंह  व पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत को यूँ ही नहीं भुलाया जा सकता है । खाली हाथ कोई जंग नहीं जीती जा सकती ।अंग्रेजी हुकूमत को कांटे की टक्कर देने के लिए जरूरी था हथियारों से लैस होना और उसके लिए चाहिए पैसा । जी हां क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आते । सो क्रांतिकारियों को जो रास्ता समझ में आया सो उन्होंने अपनाया और दे डाला ट्रेन डकैती को अंजाम । जो आगे चलकर काकोरी कांड के नाम से मशहूर हुआ । खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत सच साबित हुई । ट्रेन डकैती में मिली छोटी सी धनराशि मगर जिसकी वजह से मौत को गले लगाना पड़ा । क्रमशः 17 व 19 दिसम्बर,  1927 को इन चारों आजादी के परवानों को अलग अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था । जिनकी कहानी सुनकर रगों में खून उबाल मारने लगता है ऐसे अमर सपूतों को  नमन करते हुए   काकोरी स्थित शहीद मंदिर में मार्तण्ड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के द्वारा पण्डित बेअदब लखनवी के संयोजन में  आयोजित श्रद्धांजलि समारोह, कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में कवियों व शायरों ने अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने अपने कलाम पेश किया ।


अध्यक्षता कर रहे डा अजय प्रसून ने- दर्द वाले गीत गाना छोड़ के, फूल बनके खिल खिलाएंगे कभी पढ़कर वाहवाही लूटी ।

तो संयोजक पण्डित बेअदब लखनवी ने शहीदों को नमन करने काकोरी फिर से आए हैं,
समर्पित उनको हम करने श्रद्धा के पुष्प लाए हैं,
जरूरत जो पड़ी तो हम भी अपनी जां लुटा देंगे,
शमा जो खूं से थी रौशन उसे दिल में जलाए हैं ।पढ़ी तो मंच तालियां की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।

वहीं कवि सुरेश कुमार राजवंशी ने -
मैं झलकारी , ऊदादेवी , मैं झांसी की रानी हूं,
मैं पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, मैं राजेंद्रनाथ लाहिड़ी हूं।

आसिम काकोरवी ने - जो कटता है तो कट जाए सरे बाज़ार सर अपना मगर अपने तिरंगे को कभी झुकने नही देखें सुना कर खूब तालियां बटोरी।
मेहंदी हसन खान फहमी ने - चमन अच्छे न गुन्चा हों खुबसूरत,
नजर अच्छी हो तो सेहरा खूबसूरत सुना कर वाहवाही लूटी ।

वहीं नदीम काकोरवी ने अपनी सुमधुर आवाज में - दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए देश भक्ति गीत सुनाकर श्रोताओं में देश भक्ति की लहर दौड़ दी
एस.पी.रावत ने - 9अगस्त 1925 की ऐतिहासिक कहानी है। आजादी के दीवानों की अमर एक कहानी है। सुना कर खूब वाहवाही बटोरी ‌।
अशोक विश्वकर्मा ने--जिन्दगी से मोहब्बत करने लगा हूं। सुना कर खूब तालियां बटोरी।
पं. विजय लक्ष्मी मिश्रा ने - काकोरी के शहीदों को नमन मैं करने आयी हूं ,
चढ़ाने कदमों में उनके श्रद्धां के पुष्प लायी हूं। सुना कर मंत्रमुग्ध कर दिया।
प्रेम शंकर शास्त्री'बेताब' ने  शहीदों की शहादत को भुलाया जा नहीं सकता है सुना कर खूब वाहवाही बटोरी।
जिया लाल भारती ने - जमाने से तुम नही जमाना है प्रताप से सुना कर खूब तालियां बटोरी ‌।

कवि सम्मेलन में अनागत साहित्य आन्दोलन के प्रणेता डा अजय प्रसून, शायर डा मेहदी हसन खान 'फहमी, पण्डित विजय लक्ष्मी मिश्रा, शायरा नयना नाज़ पाण्डेय, शायर आसिम काकोरवी, अल्का अस्थाना, अशोक कुमार विश्वकर्मा  'गुंजन', पण्डित बेअदब लखनवी, प्रेम शंकर शास्त्री 'बेताब', मार्तण्ड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के अध्यक्ष सरस्वती प्रसाद रावत, महामंत्री सुरेश राजवंशी, नदीम काकोरवी, जिया लाल भारती, श्रीमती किरण यादव, मास्टर अंश राव व अखिल भारतीय असंगठित कामगार कांग्रेस पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष अमर पाल सिंह सूर्यवंशी उपस्थित रहे ।

स्थानीय बच्चों को बिस्किट, केक व नमकीन वितरित कर  कार्यक्रम संयोजक व संस्था के मीडिया प्रभारी  पण्डित बेअदब लखनवी ने धन्यवाद ज्ञापित कर श्रद्धांजलि समारोह व कविसम्मेलन एवं मुशायरे का समापन किया ।

- पण्डित बेअदब लखनवी
9795163738
( मीडिया प्रभारी  )

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