मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने आरटीआई के नजरिए से अपने फेसबुक पेज पर एक तीखी पोस्ट लिखी है। बच्चों की लगातार मौत के कारण सुर्खियों में बने आदिवासी बहुल शहडोल जिले की डंवाडोल हालत पर यह पोस्ट पूरे प्रशासनिक तंत्र पर सवाल खड़े कर रही है। उन्होंने इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यहाँ केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी कौशल विकास योजना में भारी गोलमाल है...
डंवाडोल शहडोल की दूसरी मिसाल
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मेरी यह पोस्ट प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए ध्यानाकर्षण है। इन दिनों मध्यप्रदेश का शहडोल जिला सुर्खियों में है। खस्ताहाल मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर और लचर प्रशासनिक तंत्र का यह नमूना बच्चों की लगातार मौत को लेकर सबकी चिंता का सबब बना है। कई दिनों से बुरी खबरें ही आ रही हैं। शहडोल की डंवाडोल हालत का एक और नमूना है, जिसकी तरफ मैं ध्यान दिलाना चाहता हूं। यह एक दिलचस्प केस है। राज्य सूचना आयुक्त के रूप में मैं इस तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं, जो मेरी टेबल पर है। आरटीआई के लंबित मामलों को लगातार सुनते हुए कुछ मोटी होती फाइलों के कागजी जंगल में इत्मीनान से घूमें तो बेशकीमती जड़ी-बूटियां हाथ लगती हैं। ये हमारे जड़ सिस्टम की मिसालें हैं। यह केस ऐसा ही है। ऐसे और भी हैं, लेकिन यह प्रधानमंत्री के सपनों की एक योजना से जुड़ा हुआ है।
प्रधानमंत्री स्किल डेवलपमेंट स्कीम केंद्र सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड के कालखंड में बार-बार ‘लोकल के लिए वोकल’ होने का मंत्र जनमानस में फूंका है। यह योजना इसी मंत्र की जमीनी सिद्धि का एक उपक्रम है, जो स्थानीय स्तर पर पढ़े-लिखे युवाओं के कौशल विकास के लिए है। कौशल विकास के बिना गुणवत्तापूर्ण स्थानीय उत्पादन असंभव है। ऐसी बुनियाद, जो चीन से हमारी निर्भरता को खत्म कर दे। शहडोल जिले में भी इस योजना के तहत युवाओं को कहीं ट्रेनिंग दी गई। अब अगर प्रधानमंत्री स्वयं एक सामान्य नागरिक के रूप में यह जानना चाहें कि इस योजना के तहत किन्हें क्या ट्रेनिंग दी गई, जरा इसका ब्यौरा दे दीजिए तो वे पाएंगे कि कलेक्टर कार्यालय से लेकर उस ब्लॉक तक सब शून्य में हैं, जहां एक एनजीओ ट्रेनिंग के बाद अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर जा चुका है। आरटीआई के एक आवेदन से ही पता चला कि दो साल बाद भी किसी को कुछ पता नहीं है।
कहानी यह है कि आरटीआई के तहत कलेक्टर कार्यालय में प्रस्तुत एक आवेदन में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत दी गई ट्रेनिंग के बारे में कुछ जानकारियां मांगी गईं। कलेक्टर कार्यालय ने इस आवेदन को औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, शहडोल के प्राचार्य के पास ट्रांसफर कर दिया, क्योंकि चाही गई जानकारी जिस ब्लॉक में हुई ट्रेनिंग से संबंधित थी, वह शहडोल जिले में ही है। शहडाेल के संस्थान ने यह आवेदन गोहपारू ब्लॉक की आईटीआई के प्रमुख के पास सरकाया। गोहपारू में एक एनजीओ को ट्रेनिंग का काम मिला था। जब कहीं से कुछ नहीं मिला तो यह अपील आयोग के सामने पेश हुई। कलेक्टर कार्यालय ने अपने जवाब में स्पष्ट किया कि औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शहडोल के प्राचार्य को ही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से संबंधित जानकारी के लिए नोडल अधिकारी मनोनीत किया गया था। इस योजना से संबंधित सभी कार्य उन्हीं के स्तर पर किए जा रहे थे। जानकारी देने का काम उन्हीं का है। लेकिन प्राचार्य ने एक पत्र के जरिए कलेक्टर कार्यालय के इस कथन का खंडन किया कि वे इस योजना के तहत लोक सूचना अधिकारी हैं। यानी अभी यही पता नहीं कि इस महात्वाकांक्षी योजना की जानकारियां हैं किसके पास?
प्राचार्य ने गोहपारू की आईटीआई के पास आवेदन भेजकर छुट्टी पा ली। आईटीआई वालों ने उस कॉलेज में पूछा, जहां ट्रेनिंग दी गई थी। कॉलेज वालों ने ब्रेकिंग न्यूज यह दी कि किसी एनजीओ ने उनके दो कमरे 11 महीने के लिए किराए पर लिए थे। ट्रेनिंग देकर वह अपना सामान समेटकर जा चुका है। अब ड्यूकॉन सोशल वेलफेयर सोसायटी नाम का वह एनजीओ तस्वीर में आता है, जिसने प्रधानमंत्री के सपनों की योजना के लिए जमीन तैयार करने का काम शहडोल में किया था। अब शहडोल का सरकारी तंत्र उस एनजीओ के भोपाल स्थित ऑफिस में लिखा-पढ़ी कर रहा है कि किसे कब क्या ट्रेनिंग दे दी गई, यह बताया जाए। सबसे मजेदार ड्यूकॉन नाम के एनजीओ का जवाब है, जो शहडोल की सरकार के गालों पर तमाचे की तरह पड़ा है। यह एक ऐसे लैटर हेड पर है, जिसमें किसी का नाम तक नहीं है। एनजीओ ने टका सा जवाब दिया है कि सब कुछ ऑनलाइन है। ट्रेनिंग पर हुए खर्च की जानकारी साझा नहीं की जा सकती। यानी कलेक्टर कार्यालय जिस प्राचार्य को नोडल अधिकारी बता रहा है, वह इतनी सी जानकारी के लिए एनजीओ पर निर्भर पाए गए।
कई सवाल अनुत्तरित हैं। जैसे-ट्रेनिंग लेने वाले युवक-युवतियों की डिटेल किसके पास है? ट्रेनिंग के बाद हुई परीक्षा में प्रतिभागियों की उपस्थिति का रिकॉर्ड कहां है? प्रमाणपत्र और स्कॉलरशिप पाने वाले कौन युवा हैं? बजट संबंधी जानकारी कहां है और क्यों गोपनीय है? क्या सब कुछ एनजीओ के ही हवाले है? फिर ये नोडल अधिकारी क्या बला है? क्या किसी खुफिया कार्यक्रम की तरह कोई ट्रेनिंग अज्ञात युवाओं को देकर एक एनजीओ अपना सामान समेटकर गायब हो गया और किसी के पास कोई जानकारी नहीं है? अभी यह रोचक केस खत्म नहीं हुआ है। सारतत्व आना बाकी है। आरटीआई के तहत आया यह केस शहडोल जिले में सूचना के अधिकार की दयनीय स्थिति का भी एक घृणित नमूना है। यहां के ज्यादातर सरकारी विभागों में, पंचायत से लेकर जिला मुख्यालय तक ज्यादातर लोक सूचना अधिकारी 2015 में आए सूचना के अधिकार कानून के लिहाज से निरक्षरता के अंधेरे में हैं। उन्हें अपनी भूमिका का ज्ञान तक नहीं है। हालांकि आरटीआई का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर नागरिक भी दूध के धुले नहीं हैं और इन पर एक अलग अध्याय लिखे जाने की जरूरत है।
फिलहाल प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से जुड़ी सामान्य सी जानकारी के इस केस में कागजी जवाबों से जाहिर है कि शहडोल में अगर कोई ट्रेनिंग दी गई हैं तो यह पूरी योजना जमीन पर सिरे से धराशायी है। इस केस ने मुझे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का वह चर्चित कथन याद दिलाया, जिसमें उन्हाेंने कहा था कि दिल्ली से एक रुपया निकलता है और नीचे 15 पैसे पहुंचते हैं। 35 साल पहले सरकारी धन के 85 फीसदी हिस्से के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने की यह एक ईमानदार स्वीकारोक्ति थी। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भविष्य का मजबूत भारत गढ़ने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और अपनी हर स्पीच में बच्चों की तरह हरेक को पढ़ा और समझा रहे हैं, किंतु शहडोल बता रहा है कि जमीन पर वह सपना उसी सिस्टम के हाथों में आकर दम तोड़ रहा है, जो खुद को बदलने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री कार्यालय को देखना हाेगा कि देश भर में ऐसे कितने शहडोल हैं?
शहडोल खस्ताहाल मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर का ही एक नमूना नहीं है, जहां मासूम बच्चे मारे जा रहे हैं। सबसे पहले तो अफसरों का कौशल विकास किया जाना चाहिए, जो पुरानी आरामदेह जड़ व्यवस्था में ही बने रहने पर आमादा हैं, जबकि दुनिया हर दिन बदल रही है। उन ढीट कर्मचारियों के नट-बोल्ट भी कसे जाने चाहिए, जिन्होंने वक्त के हिसाब से खुद को नहीं बदलने की कसमें खाई हुई हैं। बेशक, ऐसी डंवाडोल हालत में पड़े शहडोलों से वोटों की ताकत हासिल कर राजधानियों तक आने वाले माननीय जनप्रतिनिधियों को भी एक साफ आइने की जरूरत है। यह केस सबके लिए एक आइना ही है।
VIJAY MANOHAR TIWARI
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