9.12.20

किसान आंदोलन की गूंज अब भारत के खेतों तक पहुंची

नरेंद्र तिवारी

सेंधवा : बेशक दिल्ली में जारी किसान आंदोलन अब राष्ट्रव्यापी हो गया है। केंद्र सरकार इन कानूनों को वापिस लेती है,या आंशिक संसोधन करती है,यह आगामी दिनों में साफ हो पाएगा। आंदोलन कब तक जारी रहेगा यह भी किसान संगठनों की आगामी रणनीति के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।बहरहाल किसानों के दिल्ली जाने वाले रास्तो को खोद देने वाली सरकार,किसानों पर वाटर केनन,अश्रुगैस,लाठियां चलाने वाली सरकार, बयानों ओर तर्को के माध्यम से पूरे आंदोलन पर दोषारोपण करने वाली सरकार, आंदोलन को विपक्षी राजनीति से प्रेरित बताने वाली सरकार अब किसानों की मांगों को सुनने के लिए बाध्य हुई है। बातचीत के अनेको दौर अब तक बेनतीजा रहे है। भारत बंद के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को किसान संगठनों के नेताओ को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। किसान आंदोलन को लेकर सरकार के मंत्रियों ,पक्ष-विपक्ष नेताओ, एवं सोशल मीडिया पर चल रही बहसों पर देश का किसान कान लगाए हुए है।वे किसान जो दिल्ली पहुचकर आंदोलन में तो शामिल नही हो सके वे यह सब देखकर,सुनकरअपनी धारणाए निर्मित कर रहे है।वह यह भी जान रहे है की सरकार का किसानों के प्रति क्या रवैय्या है? और विपक्षी दल क्या चाहते है?दरअसल अब यह आंदोलन भारत के खेतों में कार्यरत किसानों की चर्चा का विषय बन चुका है।


लोकतंत्र में अपनी बात रखने का अधिकार संविधान प्रदत्त है, इसी अधिकार के तहत 26 नवम्बर को दिल्ली पहुचने वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों को जो हाल ही में पारित कर्षि कानूनों का विरोध करने हेतू दिल्ली जाना चाह रहे थै,उन्हें रोकने के लिए ऐसे प्रयास किये गए जो आपत्ति जनक दिखाई दिए इन प्रयासों को लोकतांत्रिक तो बिल्कुल भी नही कहा जा सकता है।दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसानों के काफिलों पर लाठियाँ चलाई गयीं वाटर केनन का उपयोग किया गया,सड़को को खोद डाला गया,यहां तक तो ठीक था,यह माना जा सकता है कोरोना महामारी के चलते किसानों की इस भीड़ को दिल्ली नही पहुचने की सरकारी मंशा हो सकती है, किंतु सरकार में शामिल मंत्रियों,राज्यो के मुख्यमंत्रियों ओर सत्ताधारी दल के नेताओं के बयान तो किसानों के आंदोलन की ऐसी मुखालपत करते हुए सुनाई दिए जैसे किसानों का अपनी मांगों के समर्थन में दिल्ली पहुचना एक जुर्म है,अपराध है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर किसान आंदोलन के सबसे बड़े विरोधी के रूप में सामने आए जिन्हें किसान आंदोलन में अराजक तत्व दिखाई दिए उनकी सरकार ने किसानों को रोकने के हरसम्भव प्रयास किए दिल्ली पहुचने वाली सड़को पर जेसीबी से गड्ढे तक करा दिए गए किन्तु दृढ किसानों के रास्तो पर अटकाए सभी रोडे नाकाफी सिद्ध हुए है।

किसान आंदोलन के दौरान केंद्र द्वारा पारित कृषी कानूनों को किसानों के हित में बताते हुए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा वन नेशन वन मार्केट की अवधारणा को नए कानून में शामिल किया है उन्होंने कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों पर किसानों को भड़काने का आरोप लगाया उन्होने कहा यह राजनैतिक दल किसानों के कंधों पर बंदूक रख अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे है।

यहां यह सवाल भी लाजमी है क्या विपक्षी पार्टियों को देश के किसानों की जायज मांगो के समर्थन में आना क्या अप्रजातांत्रिक है ?क्या देश की विपक्षी पार्टियां किसानों के हित में बात नही कर सकती है? इस तरह अजीबोगरीब तर्क दिए जा रहे है जिस पर देश के किसान एवं आमजन विचार कर रहे है।

किसान संगठन खासतौर से इस बात पर जोर देते है कि नई व्यवस्था में मंडी ओर एमएसपी प्रणाली खत्म कर दी जाएंगी और सरकार गेहूं एवं चावल लेना बंद कर देगी।उन्हें खतरा इस बात से दिखाई दे रहा है कि उनका माल प्रायवेट ओर बड़े कार्पोरेट घरानो को बेचना पड़ेगा जो उनका शोषण कर सकते है।

तमाम दावों के बावजूद भी सरकार किसानों की आशंकाओं को दूर करने की बजाय किसानों के आंदोलन को ही सन्देह की दृष्टि से देख रही है जबकि सरकार को किसानों की आशंकाओं को दूर करने के पुख्ता प्रयास करने चाहिए।

8 दिसम्बर को किसानों के भारत बंद का असर मिला जुला रहा है।किन्तु भारत बंद ओर किसान आंदोलन की गूंज दिल्ली के आंदोलन से निकल कर भारत के खेतों तक पहुचने लगी है।किसान कानूनों के पक्ष विपक्ष में चर्चा कर रहे है और अपनी धारणाओं का निर्माण भी कर रहे है।

भारत कृषि प्रधान देश है। सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों को लेकर किसानों के मन मे जन्म ले रही आशंकाओ को दूर करने की बजाय किसानों के आंदोलन को अराजक बताना उचित नही कहा जा सकता है।

देश मे एक बहुत बड़े वर्ग की यह धारणा भी बन चुकी है कि वर्तमान सरकार बड़े कारपोरेट घरानों के हित मे निर्णय ले रही है। इन कानूनों के मामले में भी किसान संगठन यह बात दोहरा रहे है।आशा की जानी चाहिए सरकार इन धारणाओं को निर्मूल साबित करते हुए किसान संगठनों के साथ बातचीत कर किसानों को समझा पाने  में सफल होगी और बीच का रास्ता निकाल पाएंगी।

यह सही है वर्तमान कि केंद्र सरकार पूर्ण बहुमत से चुनी गई प्रजातांत्रिक सरकार है जिसे विरोधी स्वर सुनने की आदत नही रही किन्तु यह भी सही है कि किसानों के एक बड़े वर्ग में इन बिलो को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं जन्म ले रही है।सरकार को चाहिए कि देश के कृषक वर्ग की समस्याओं का लोकतांत्रिक निराकरण करे।


नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'
सेंधवा जिला बड़वानी मप्र
मोबा-9425089251


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