28.1.21

दीप सिद्धू तो सरकार का ही मोहरा है किसानों के ख़िलाफ़ ...

 Dharam Veer-
    
 कोई भी ऐसा आंदोलनकारी हिंसा नहीं चाहता जो अपनी माँगें लोकतंत्र के रास्ते से मनवाना चाहता है । हिंसा के रास्ते से सरकार को कदम पीछे खींचने के लिए मज़बूर करना किसी भी देश में मुश्किल होता है और भारत जैसे बहुलतावादी देश में तो यह मुश्किल ही  नही नामुमकिन है । हिंसा फैल जाने का अर्थ ही है आंदोलन का सरकार के पक्ष में चले जाना इसीलिए हर सरकार शांतिपूर्ण आंदोलन को ख़त्म करवाने के लिए अंतिम रास्ता हिंसा को बनाती है ।


किसी भी शांतिपूर्ण आंदोलन को बिना आंदोलनकारियों की माँगें माने ख़त्म करवाना हो तो फ़िर हिंसा ही एक मात्र रास्ता बचता है । हिंसा हुई और सरकार को संवैधानिक हथियार मिल जाता है आंदोलन में फूट डालने का । आम जनता की सहानुभूति भी  आंदोलनकारियों के साथ नहीं रहती और जिस नेता को चाहें उसको जेल भेजकर आंदोलन की कमर भी तोड़ी जा सकती है ।

#दीप_सिद्धू जैसे बहरूपिये परोक्ष और अपरोक्ष तौर पे दरअसल सरकार का ही काम करते हैं भले ही वह कहें यह कि वह आंदोलन में भाग ले रहे हैं । कल हुई हिंसा और अराजकता में सम्भव है कि दीप सिद्धू और इसके साथ के कुछ लोग जेल भी चले जाएँ लेकिन आंदोलन को जो डेमेज इन्होंने पहुँचाना था वह यह पहुँचा चुके हैं .....। यह बंदा साफ़ साफ़  बोल रहा है कि इसके साथियों ने बेरीकेड्स तोड़े । इसने और इसके साथियों ने लाल क़िले पर पूरी कार्यवाही की । लाल क़िला जब रूट में ही नहीं था तो यह वहाँ तक पहुँचा क्यूँ और इसको रोकने की कोशिश पहले क्यूँ नहीं हुई ..? जाँच का विषय है । अगर यह बंदा किसानों का नेता होता तो किसान नेता इतनी आसानी से इसको अपने आंदोलन  से अलग नहीं बताते ।

यह तो शीशे की तरह साफ़  ही है कि लाल क़िले वाला कार्यक्रम किसान आंदोलन का हिस्सा नहीं रहा क्यूँकि अगर किसान आंदोलनकारी अपने ट्रैक्टर रैली को लाल क़िले ले  जाना चाहते तो फ़िर इस आंदोलन के  सबसे बड़े चेहरे को वहाँ जाने की कमान देते नाकि राजनैतिक दल और राजनेताओं के एजेंट अराजकतावादी  दीप सिद्धू को । लाल क़िले पर झंडा फहराने का कार्यक्रम इतना बड़ा कार्यक्रम है कि मूर्ख से मूर्ख आदमी भी इस पर यक़ीन नहीं करेगा कि इस आंदोलन के मुख्य कर्ताधर्ता के बिना इस कार्यक्रम को कर दिया जाता । स्पष्ट तौर पर दीप सिद्धू आंदोलन से बाहर के लोगों का मोहरा है ।

अब ऐसा लगता है कि शायद सरकार ने ट्रैक्टर रैली को इजाज़त देकर जो पासा फेंका उसके जाल में भोले भाले किसान आंदोलनकारी फँस गए । अब मैं तो यही कहूँगा कि जो भी हुआ बहुत ग़लत हुआ । काश ट्रैक्टर रैली का आयोजन किया ही नहीं जाता तो इस आंदोलन की पवित्रता बची रहती और आम जनता की सहानुभूति आम आंदोलनकारियों के पक्ष में बनी रहती ......!!!

अगर बिना क़ानून रद्द अथवा संशोधित करे आंदोलन ख़त्म हो गया तो फ़िर इस देश के गरीब और मध्यमवर्ग का भगवान ही मालिक होगा । ना सिर्फ़ मँहगाई बेतहाशा बढ़ेगी बल्कि पूरी खेती किसानी और अन्न - तेल - दाल पर कुछ लोगों का क़ब्ज़ा हो जाएगा ।  किसान तो ख़ैर बुरे हाल में कल भी था और उससे ज़्यादा बरे हाल में जाने वाला है पर इस देश के बहुसंख्यक  आम नागरिक अपनी रसोई के बजट को कैसे मेनेज करेंगे ..? आंदोलन के विफल हो जाने की स्थिति में  देश के उन करोड़ों बच्चों को कुपोषण की मार झेलनी पड़ेगी जिनके माँ - बाप आने वाले समय में मंहगी होने वाली खाने - पीने की वस्तुओं को ख़रीद नहीं पाएँगे । कम लिखा है ज़्यादा समझिएगा ।

Dharam Veer

( लेखक का अपना YouTube चैनल है  Dharam Veer Live के नाम से ।

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