11.1.21

रिपोर्टर के साथ हो रही बदसलूकी, खुद जिम्मेदार

राहुल शुक्ला की कलम से

किसान प्रर्दशन के दौरान न्यूज़ चैनल और फिल्ड रिपोर्टरों के साथ हो रही बदसलूकी, जिम्मेदार है ये लोग
 
इस साल सितम्बर माह में केंद्र सरकार नें 3 नये कृषि कानून बनाए हैं। जिसको लेकर देशभर के किसान संगठन इस कानून के लागू होने के बाद से लगातार खूद को असुरक्षित महसूस कर रहे है, किसानों का मानना है कि सरकार उनकी कृषिमंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को सौंपना चाहती है। इसलिये अब देशभर के किसान संगठन आर-पार के मूड में है। किसान अब बिना किसी मध्यस्था के सीधे सरकार से 121 करना चाहते है। इनका कहना है कि सरकार की नियत साफ नही है, लिहाजा किसानों का सरकार से विश्वास उठ गया है। इसी बीच अगर सरकार के अलावा किसी ने देश के आमजन से अपना विश्वास खोया है, तो वो है देश की मिडिया। जिसका परिणाम अब किसान प्रर्दशन के दौरान देखने को मिल रहा है। न्यूज चैनलो के फिल्ड रिपोर्टर की रीपोर्टींग के दौरान  किसान गोदी मिडिया हाय-हाय के नारे लगा रहा है।  
 

पिछले कुछ दिनों से किसान प्रर्दशन के दौरान देखा जा रहा है कि देश के तमाम बड़े और छोटे मिडिया घराने के रिपोर्टरों को किसान प्रदर्शन में किसानों से मुंह की खानी पड़ रही है। किसान ना सिर्फ रिपोर्टरों को खबर करने से बायकाट कर रहे बल्कि संस्थान का नाम लेकर गोदी मिडिया हाय-हाय के नारे भी लगा रहे है । इन सबके बीच अब मुद्दा ये खड़ा होता है कि आखिरकार किसान संगठन रिपोर्टरो के साथ ऐसा कर क्यों रहें है? तो जवाब सुनिए, रिपोर्टर की काबिलियत और खामियों  के चलते इस तरह के वाक्य सामने आ रहें है। कही न कहीं रिपोर्टर किसान के अंदर ये बात कायम नही कर पा रहा है कि, वह निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहा है, साथ ही रिपोर्टर किसानों को ये भी आश्वस्त करने में विफल हो रहा है कि वे बिना संवाद को तोड़े-मरोड़े सीधे तौर पर सरकार-किसनों की बात पहुंचा रहा है। लिहाजा रिपोर्टर किसानों के विरोध का सामना कर रहा है।



किसानों के विरोध को ऐसे रोक सकता है रिपोर्टर

निर्धारित शूट समय से 1 से 1:30 घंटे पहले किसानो/आमजन के बीच पहुंचे रिपोर्टर

मौके पर पहुंचते ही त्तकाल शूट शूरू ना करें

शूट करने से पहले कुछ मिनटों तक किसान व आमजन से बातचीत करें

उसी दरमियां पत्रकारिता कि काबिलियत को दर्शायें औऱ आमजन में अपने प्रति विश्वास पैदा करें

शूट शूरू करने से पहले एक बार फिर सामने वाले का मूड भांपे

इसके बाद अपने विवेक से कार्य करें, यकिनन ऐसा करने से इस तरह के विरोध को रोका जा सकता है। पिछले लंबे समय से देखा जा रहा है कि फिल्ड में पत्रकारों को आमजन के मुंह की खानी पड़ती है और विरोध झेलना पड़ता है, लेकिन य़कीन मानिये वो विरोध ना सिर्फ किसी चैनल के प्रति होता है, बल्कि वो विरोध उस पत्रकार के काबिलियत के प्रति होता है। जो मौके पर मौजूद लोगों में अपना विश्वास हासिल नही कर पाता है।

 


Rahul Shukla
shukla.rahulkmr@gmail.com

No comments:

Post a Comment