29.1.21

बेदर्द हाकिम से फरियाद क्या करना

Rajanish Pandey
 
जहां बेदर्द हाकिम हों वहां फरियाद क्या करना...?

सत्ता का मूल चरित्र होता है..दमन करना.. चाहे राजशाही सत्ता हो या तानाशाही सत्ता या यह कह सकते है..जिस पर आप दम्भ भरते है..लोकतांत्रिक सत्ता..जिसे आप चुनते है या बनाते है या बिगाड़ते है.


यह पहली मर्तबा  सत्ता का भयानक चेहरा नही देखने को मिल रहा है..इससे भी सत्ता का कुरूप चेहरा हिंदुस्तान की जनता देख चुकी है।

खैर अपने बस में है क्या? नाराजगी बहुत है..तब भी नाराजगी थी ..जब देश मे एक पार्टी के अगुवाई में लोकतंत्र का दमन हुआ..फिर क्या हुआ..कुछ दिन बाद ही उस सियासी दल की सत्ता में वापसी हुई.केवल वापसी ही नही हुई वो पार्टी दमदारी तरीके से शासन भी की।

जूता खा कर तमाशा देखने की जनता की पुरानी आदत रही है.रहेगी भी क्यो नही?आप  सरकार की जूता खाने की लत  जो लगा रखी है.. सरकार भी उसे समझ चुकी है.

सरकार चाहे इस दल की हो या उस दल की..उनकी नियति बन चुकी है आपको ठीक करने की...।

कितना शोर मचाएंगे...आपके शोर से आपके हल्ला बोल ,प्रदर्शन से आमरण अनशन से अंग्रेज भले ही डर गए थे ,ये हिंदुस्तान की सरकारें जिसे आप चुनते है..वो डरने वाली नही है.

आज किसान रो रहे है...कल आप रोयेंगे..आज उनकी बारी ...कल आपकी बारी... फिर सोचिएगा ?

नसबंदी पर कौन खुश था?

नोटबन्दी पर कौन खुश हुआ?

GST पर आप पटाखा भी फोड़े... उसका रिजल्ट क्या आया...चलिए..आपकी ही नही..हरेक लोकतांत्रिक देश की जनता को भुलने और भुलाने की आदत  उसके डीएनए में है.

लोहिया जी का भाषण होता था...अगर सड़कें खामोश हो जांए तो संसद आवारा हो जाएगी..।

लोहिया जी आपके अनुवायी भी आपके कथनी से कही  से भी इत्तेफाक नही रखते है..जब वो भी सरकार में होते है..तो उनको भी जनता का प्रदर्शन ठीक नही लगता है..।

पुलिस के लाठियो से  सड़के लहू-लुहान हो जाती है.

खैर अब सरकार के नीतियों  खिलाफ प्रदर्शन सड़को पर नही किसी चौराहों पर नही..अपने ड्राइंग रूम और बेडरूम के सोफा और गद्दिनुमा बेड से करियेगा..काहे की सरकार को सड़क पर प्रदर्शन ना  तब ठीक लगता था...ना अब ठीक लगता है.


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