16.2.21

उत्तराखंड सीएम हेल्प लाइन का हाल-बेहाल

arun srivastava-
    





बात न किसी घपले-घोटाले की है और न वित्तीय अनियमितता की। फिलहाल  बात "उत्तराखंड सीएम हेल्प लाइन" की है। पता नहीं कहां से मैंने सुन रखा था कि, सीएम हेल्प लाइन काफी कारगर होती है, इसकी निरंतर समीक्षा होती है। यहां से शिकायत आने आने पर अधिकारियों की पुलपुली (कहां होती है पता नहीं) कांप जाती है। मैंने भी सोचा चलो क्यों न देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के सीएम हेल्प लाइन की शरण ली जाए। मैंने 18 सितंबर 2020 को श्रम विभाग से संबंधित एक शिकायत 1905 के माध्यम से दर्ज कराई जो 106393 के क्रम में पंजीकृत हुई। पर आज की तारीख तक नतीज़ा " ढाक के तीन पात" रहा। मामला पत्रकारों/गैर पत्रकारों के लिए गठित मजीठिया वेजबोर्ड की संस्तुतियों के आधार पर वेतन एवं अन्य पर परिलाभ के लिए था। श्रम विभाग में (01/2016) दायर किया गया था। किंतु सीए की  वजह से पदनाम गलत हो गया। महीनों की लंबी लिखा-पढ़ी के बाद भी पद नाम में विभाग ने सुधार नहीं किया। 

इसकी वजह से श्रम न्यायालय से मामला वापस लेना पड़ा। उसके बाद 21 अगस्त 2018 को नये सिरे से वाद दायर किया। जो वाद संख्या (05/ 2018) पंजीकृत हुई। इस मामले को वर्तमान सहायक श्रमायुक्त सुरेश चंद्र आर्य जो कि सक्षम प्राधिकारी भी हैं, लटकाये हुए हैं। आज तक उन्होंने एक भी तारीख पर किसी एक के मामले की सुनवाई नहीं की। मामला मेरा अकेला भी नहीं हैं। सूचना का अधिकार से पता चला कि चार दैनिक जागरण के क्रमश: नागेन्द्र सिंह नेगी दैनिक जागरण 9-5-2018, वीरेंद्र दत्त डंगवाल दैनिक जागरण 4-6-2018, अमित ठाकुर दैनिक जागरण 9-7-2018, अरुण श्रीवास्तव राष्ट्रीय सहारा 21-8-2018, गौरव गुलेरी दैनिक जागरण 23-7- 2019 का मामला लंबित है। इस बीच तीन-तीन सहायक श्रम आयुक्तों का तबादला हो चुका है लेकिन मामला "टस्स से मस्स " नहीं हुआ। तत्कालीन सहायक श्रमायुक्त उमेश चंद्र राय ने मामले को अंजाम तक पहुंचाते उनका तबादला कर दिया गया। यही हाल कमल जोशी जी का था। जब तक वो फैसला लेने की स्थिति में आये उनका भी तबादला कर दिया गया। उमेश चंद्र राय और कमल जोशी जी के बाद सुरेश चंद्र आर्य (दो बार) राजधानी जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर दो बार आये। जबकि यहां से 4-4 अखबार छपते हैं और मजीठिया वेजबोर्ड के सबसे ज्यादा मामले यहीं हैं। बहरहाल वे सारे के सारे   मामले पर ये "कुंडली मार कर" बैठे हुए हैं। मामले को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं जब भी वे तारीख देते हैं नदारत हो जाते हैं। कभी शासकीय कार्य के बहाने तो कभी बीमार हो जाते हैं। ऐसा इसलिए कि वे RTI के तहत जानकारी भी नहीं देते कि, अपन दो-दो कार्यकाल में कितने मामले सुने। मेरी जानकारी के अनुसार   मजीठिया वेजबोर्ड से संबंधित एक भी मामले को उन्होंने सुना नहीं। इस मामले में सूचना का अधिकार के तहत दो चरण में सूचना मांगी गई थी किंतु उन्होंने सूचना नहीं दी। एक बार सूचना आयोग ने इनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति भी की।

बात मुद्दे की यानी सीएम हेल्प लाइन की। 18 सितम्बर 2020 को दर्ज मामले की जानकारी  11-12-2020 को श्रम विभाग ने दी। हेल्प लाइन के अनुसार शिकायत उसी दिन विभाग को भेज दी जाती है। हेल्प लाइन के प्रतिनिधि के कथनानुसार चिट्ठी L-1 अधिकारी  सहायक श्रम आयुक्त कमल जोशी को भेजी गयी थी। जबकि इस अधिकारी का तबादला काफी पहले हो गया था। इससे जाहिर होता है कि सीएम जैसी महत्वपूर्ण हेल्प लाइन भी अपडेट नहीं है। बात यहीं तक सीमित हो तो भी गनीमत है। सहायक श्रम आयुक्त (L-1 लेबल सीएम हेल्प लाइन) 208 -हिमगिरी विहार देहरादून के कार्यकाल से जो पत्र आया वो मेरी शिकायत नहीं शिकायत का हिस्सा थे। मैंने सीएम हेल्प लाइन 1905 पर कहा कि, विभाग मेरा मामला लेबर कोर्ट नहीं भेज रहा है, मैं नौकरी से निकाल दिया गया हूं न वेतन मिल रहा है न पेंशन, पीएफ भी फंसा हुआ है। मेरे मामले को कोर्ट भिजवाया जाए। कोर्ट का नाम सुनते ही सीएम हेल्प लाइन के विद्वान प्रतिनिधि ने हाथ खड़े कर दिये कि कोर्ट के मामले यहाँ नहीं सुने जाते। काफी जद्दोजहद के बाद मामला पंजीकृत किया तो लेकिन भविष्य निधि और पेंशन संबंधी मामलों को लिया किंतु जिसकी वजह से पेंशन नहीं मिल रहा है और पीएफ भी फंसा हुआ है उसे तवज्जों ही नहीं दी।नतीजा यह कि सहायक श्रम आयुक्त (उस दिन अतिरिक्त प्रभार वाले थे) ने पत्र संख्या 7047-49/दे.दून-सी.एम. हेल्पलाइन/2020 दिनांक 11-12-2020 के पत्रांक से अपने स्तर से मामले का समाधान किया। किंतु मुख्य समस्या मजीठिया वेजबोर्ड संबंधी वाद जो कि श्रम न्यायालय भेजा जाना है "जस का तस" है।

बताते चलें कि श्रम विभाग का काम उसके सम्मुख प्रस्तुत मामले को सुनना है, यदि विवाद होने पर श्रम न्यायालय भेजा जाता है। गौरतलब है कि ज्यादातर मामले श्रम न्यायालय को जाते हैं। शायद ही एक फीसद मामले ही श्रम विभाग निपटा पाता हो या निपटा पाया हो। एक तरह से श्रम विभाग की भूमिका मध्यस्थ की ही होती है फिर भी वह मध्यस्थता तक नहीं कर पाता।

उल्लेखनीय है कि सूचना का अधिकार के तहत भी वादों को न सुनने का मामला उठाया गया। प्रथम अपीलीय अधिकारी मामले को अपील संख्या 11/2020 के रूप में पंजीकृत करते हुए मांगी गई सूचना (मजीठिया वेजबोर्ड के कितने मामले सक्षम अधिकारी ने सुने) की स्पष्ट  सूचना देने का निर्देश दिया किंतु सहायक श्रम आयुक्त ने गोलमोल जवाब दिया।

हाँ एक बात और CM हेल्प लाइन पर शिकायत दर्ज कराना भी "टेढ़ी खीर" है। उस दफे आप बड़ी किस्मत वाले होंगे जब एक बार में फोन संबंधित प्रतिनिधि तक पहुंचा दिया जाए वर्ना एक ही घिसी-पिटी आवाज... हमारे सभी प्रतिनिधि अन्य काल पर व्यस्त हैं कृपया प्रतीक्षा करें ही सुननी पड़ेगी। यह सुनी-सुनयी नहीं है, मैंने अपने कानों से दर्जनों बार घंटों सुनी है। कई दफे तो सपने में भी सुनी है। अब  दो फरवरी 2021 को ही छह बार फोन किया 30 मिनट तक और उससे पहले एक फरवरी 2021 को नौ बार फोन किया नौ मिनट तक नहीं उठा। 22-01-2021 को नौ मिनट, 20 जनवरी को दो बार 7 मिनट, 19 जनवरी को नौ बार 45 मिनट और 21 अक्तूबर को 7 बाल 15 मिनट तक फोन नहीं उठा। यह नयी तकनीक का कमाल है कि, सबके स्क्रीनशॉट हैं। ऐसा भी नहीं कि कभी फोन उठा ही नहीं। दो बार कुसुम जी से, एक बार इस्माइल जी, पंकज जी से और सुमित जी से बात हुई थी अन्य के नाम याद नहीं हैं।

2 फरवरी 2021 को मिली जानकारी के अनुसार मेरा मामला लेबल-4 स्तर के अधिकारी श्री चुघ जी जो कि उत्तराखंड शासन में श्रम सचिव हैं के यहाँ भेजा गया है। इसे कहतें हैं,"पिद्दी को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र" अब श्रम सचिव तो उसे श्रम न्यायालय लेकर जाएंगे नहीं वे भी सहायक श्रम आयुक्त को चिट्ठी लिखेंगे। अब चिटठी में क्या लिखेंगे राम जाने। राम जाने इसलिए कि, सीएम हेल्प लाइन RTI के दायरे में नहीं आती कि कोई टीपें/आख्याएं की सत्यापित प्रति मांग ले। आवेदन पत्र भी लिखित रूप में नहीं जाता है। आवाज़ रिकार्ड कर चिट्ठी बनाकर संबंधित विभाग को फार्वर्ड की जाती है। शायद इसीका नतीज़ा है कि मेरी प्रमुख समस्या की अंत्येष्टि  कर दी गई। इसे टाइप करने से कुछ ही घंटे पहले बताया गया कि, आपकी शिकायत लेबल-४ स्तर के अधिकारी हरवंश चुघ ( कृपया नाम गलत होने पर अवमानना का मामला दर्ज न करें नौकरी है नहीं पेंशन भी नहीं कहां से भरूंगा) के यहाँ भेजा गया है। मैंने पूछा कब दुबारा संपर्क करूँ तो जवाब आया... कह नहीं सकते इस स्तर के अधिकारी के लिए कोई समय सीमा नहीं है। यानी 25-50 साल भी सकते हैं यह उसने नहीं कही, बुदबुदाहट के रूप में मेरे अंदर से निकली। मैंने आज उत्तराखंड सीएम हेल्प लाइन में दर्ज कराई गई अपनी शिकायत वापस ले ली। "तंत्र से लड़ना इतना आसान नहीं, पर इतना मुश्किल भी नहीं है। फिर नये सिरे से शिकायत दर्ज करूंगा। एक शिकायत के रहते दूसरी शिकायत नहीं दर्ज की जा सकती। अंत फैज अहमद फैज के शेर " से... हम लड़ेगे, हम जीतेंगे।

अरुण श्रीवास्तव
8218070103
देहरादून।

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