जिसकी सब सुनते थे उसकी बीवी की अब कोई सुनने को तैयार नहीं, प्रशासन ने दिखा दिया घर के बाहर का रास्ता
बिल्हौर। वह एक पत्रकार था। दूसरों की अंगुलियां थाम कर आगे बढ़ा था। अपनी कलम के जरिए लोगों के हक की खातिर लड़ता था। और लोगों के हक की यह लड़ाई इतनी लंबी हो गई। कुछ लोगों से अदावत इतनी बढ़ गई कि गोली मारकर उसे रास्ते से हटा दिया गया। बात यहीं पर खत्म नहीं हुई बल्कि सही मायने में बात की शुरुआत ही यहीं से हुई। पति नवीन गुप्ता की मौत होते ही भाई की नजर लाखों की दौलत पर पड़ गई। पति के द्वारा अपनी मेहनत से खड़ी की गई लाखों की दौलत की असली वारिस उसकी पत्नी किरन गुप्ता बनी। पत्रकार की बेवा से लाखों की चल अचल संपत्ति कैसे हड़पी जाए। इसके लिए घर के लोग ही इकट्ठा हो गए। सास ससुर ने अपने दूसरे बेटे को मजबूत करने के लिए मजबूर होकर उपजिलाधिकारी के कोर्ट में वरिष्ठ नागरिक का हवाला देते हुए गलत चाल चलन वाली बहू से अपनी जान को खतरा बता दिया।
करीब साल भर चले मुकदमें के बाद उपजिला मजिस्ट्रेट ने बेवा महिला के विरोध में फैसला सुना दिया। जब इसकी जानकारी नवीन गुप्ता की पत्नी किरन को हुई तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई। उसने तमाम पत्रकारों के सामने अपना दुखड़ा रोया लेकिन कोई नहीं पसीजा। लोक भारती ने बेवा के दर्द को महसूस किया। बताते चलें कि बीते 30 नवम्बर 2018 की शाम एक दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार नवीन गुप्ता की निर्मम हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद बेवा नवीन की पत्नी किरन खराब स्थिति में जैसे तैसे जीवन व्यतीत कर रही थी कि तभी वह घरेलू विवादों के बीच पिसती चली गई। बीते कुछ दिनों पूर्व बेवा पत्नी को सम्पत्ति के वंचित करने के चलते सास ससुर ने मुकदमा योजित किया था। मुकदमा वरिष्ठ नागरिक अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत न्यायालय उपजिलाधिकारी में कुछ समय विचाराधीन रहा। बेवा पत्नी अपनी पैरवी के लिए तहसील प्रशासनिक अधिकारियों की चौखट पर अपना दर्द सुनाती रही लेकिन उसकी सुनने वाला कोई न था। आखिरकार मुकदमे का फैसला सुनाया गया।
बीती 2 फरवरी को न्यायालय उपजिलाधिकारी ने बेवा किरन को सम्पत्ति से बेदखल करने का आदेश जारी किया और उसे मकान से एक माह के अंदर निकालने का हुक्म दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई, हुक्म की तामील कराने को प्रशासनिक अधिकारी समय रहने के बावजूद आए दिन बेवा को परेशान कर रहे हैं। घरेलू विवाद के चंगुल में फसी बेवा किरन की ज़िन्दगी ऐसी उलझनों का शिकार है मानो वह नवीन से शादी कर के जुर्म की भागीदार रही हो। सास, ससुर और देवर की राय एकजाई है और पीड़ित के लिए मुसीबत का घर। पीड़िता के अनुसार उसके घर में आए दिन नए कृत्य कर साजिशों में उसे फसाया जाता है। पीड़िता के पति नवीन गुप्ता के जीवित रहते प्रशासन से चोली दामन का साथ रहा। वहीं उनकी मृत्यु के पश्चात प्रशासन घरेलू वाद विवाद में बेवा किरन के साथ पक्षपात की भावना ज़ाहिर कर रहा है। किरन इन विवादों मे इस कदर उलझी है कि पति के जीवनकाल में लोगों की नज़रों में किरन नाम की महिला नहीं रही। जो उसकी मृत्यु के बाद तहसील, अदालत के चक्कर में बदनामी का भी भार उठाने पर मजबूर है। इलाके के काफी लोग किरन के दर्द की दास्तान से रूबरू है। लेकिन उसकी मदद के तौर पर आगे आने को कोई तैयार नहीं है। वह आर्थिक रूप से कमजोर होने के चलते पति की दुकान से किसी तरह खर्च खानगी की व्यवस्था करके ज़िन्दगी काट रही है। लेकिन तहसील, अदालत के चक्करों में फसी किरन की छोटी कमाई भी तहसील खर्चों के चलते आधी ही रह गई। अब वह छोटी कमाई का बड़ा हिस्सा तहसील कार्यों में खर्च करती रही है और कड़ी मशक्कत से अपना गुज़ारा कर रही है। कोर्ट के फैसले ने उसके पैरों से ज़मीन निकाल दी है। किरन के कथनानुसार फैसले के बाद से अब तक वह रात में सो नहीं सकी है। कुछ दिनों बाद वह फुटपाथ पर जीवन बसर करने को मोहताज होगी। पति की मृत्यु के पश्चात पत्रकारों के संगठन मदद को आगे आए थे। लेकिन अब कोई इस बेसहारा की मदद करने को तैयार नहीं है। कुछ जानकार इसका बड़ा कारण मृतक पत्रकार के छोटे भाई नितिन गुप्ता की मजबूत साख को मानते है।
कागजों में सिमट कर रह गए अफसरों के वादे
बिल्हौर। 30 नवंबर की वह काली शाम जब महज 6.15 बजे का समय रहा होगा। कानपुर से भिवानी को जाने वाली कालिंदी एक्सप्रेस अभी बिल्हौर स्टेशन नहीं पहुंच पाई थी। प्लेटफार्म से महज 50 कदम की दूरी पर एकाएक ताड़ ताड़ की आवाज से पूरे इलाके में अफरा तफरी मच जाती है। पत्रकार की गोली मारकर हत्या की खबर पूरे देश में फ़ैल जाती है। पत्रकारों के तमाम संगठन पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए अपनी लड़ाई सड़क पर लाते हैं। कई दिनों की जद्दोजहद के बाद मृतक पत्रकार की पत्नी किरन को क्षेत्रीय सांसद अंजू बाला की पैरवी के चलते मुख्यमंत्री से मिलने का मौका मिलता है। वह अपनी बात उनसे कहती है। एक महिला का दुःख दर्द सुनकर मुख्यमंत्री का दिल पसीजता है और आनन फानन 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी का आश्वासन दिया जाता है। चंद दिनों में जिलाधिकारी के जरिए आर्थिक सहायता दे दी जाती है। लेकिन नौकरी का आश्वासन फाइलों में ही सिमटकर दम तोड़ देता है। और फिर शुरू होती है बेवा के दर्द की ऐसी अंतहीन कहानी जिसे सुनकर पत्थर दिल भी पसीज जाए।
नियत समय के अन्दर भी नहीं थम रहा प्रताड़ना का सिलसिला
बिल्हौर। मृतक पत्रकार नवीन की बेवा पत्नी किरण कहती हैं कि आदेश में एक माह का समय नियत होने के बाद भी उसके घर वालों की प्रताड़ना कम नहीं हो रही है। आदेश के बाद एक के बाद एक साजिश कर पारिवारिक सदस्यों द्वारा उसे फसाया जा रहा है और विवाद की स्थिति पैदा की जा रही है। वह बताती है कि बीते शनिवार को उसके साथ विवाद किया गया और सास ने उसे घर से बाहर निकाल दिया। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने भी किरन का सहयोग नहीं किया और खुले लफ्जो में विपक्षी लोगों की नियत के आधार पर घर से बाहर रहने की हिदायत दी। वह नम आंखों से अपनी परेशानी पुलिस के आगे सुनाती रही लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं की गई उल्टा उसे घर से बाहर करने की धमकियों से नवाजा गया। वह कहती है कि पति के मृत्यु के बाद मानो वह सारे ज़माने से लड़ रही हो। रोज़ रोज़ नए कृत्यों में फंसकर वह मानसिक रूप से बीमार होती चली जा रही है।
दो दशक में बिल्हौर ने चार पत्रकार गंवाए
बिल्हौर। बीते दो दशक में बिल्हौर के चार पत्रकार ऐसे हैं जिनकी मौत हुई है। जिनमें एक की सड़क हादसे में दूसरे की लंबी बीमारी के चलते मौत हुई। दो पत्रकारों की हत्या हुई है। जिनमे एक अमर उजाला के पत्रकार छोटेलाल कुरील हैं और दूसरे हिंदुस्तान के नवीन गुप्ता। बिल्हौर के इतिहास में यह बात लंबे समय तक दर्ज रहेगी। दोनों ही हत्याओं की वजहें आज तक अंधेरे में हैं। शायद उनका जवाब कभी मिल भी नहीं पायेगा। हम केवल कयास पर कयास लगाते रहेंगे।
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