नियुक्तियां हुई, लेकिन दस्तावेज गायब ?
Rajinder K. Singla-
पंजाब यूनिवर्सिटी के अपीलीय अधिकारी व वर्तमान रजिस्ट्रार विक्रम नय्यर ने हाल ही में किए अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि पीयू एस्टेब्लिशमेंट ब्रांच के डिप्टी रजिस्ट्रार तथा बलाचौर स्थित कंस्टिचुएंट कॉलेज के प्रिंसिपल यूनिवर्सिटी द्वारा की गई कुछ असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्तियों के दस्तावेज नहीं दिखा पा रहे, जिनके चलते उन्हें 15 दिन के भीतर यह दस्तावेज उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं।
आरटीई एक्टिविस्ट डॉ राजेंद्र के सिंगला द्वारा उठाए गए इस मामले में यह तो स्पष्ट है कि वर्तमान उपकुलपति प्रोफेसर राज कुमार तथा पूर्व उपकुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार ग्रोवर ने कथित नियुक्तियां की थी, लेकिन इन नियुक्तियों से संबंधित कोई भी दस्तावेज जैसे विज्ञापन जिसके तहत आवेदन मांगे गए, सिलेक्शन प्रोसीडिंग्स, उम्मीदवारों का ए पी आई स्कोर वगैरा दिखाने से सूचना अधिकारी लगातार भाग रहे थे।
यहां एक तरफ सिंगला का दावा है कि यह नियुक्तियां पिछले दरवाजे से हुई है, वहां दूसरी तरफ यूनिवर्सिटी के सूचना अधिकारी न ही इस दावे को स्वीकार कर रहे थे, और न ही उक्त दस्तावेज दिखा रहे थे। रजिस्ट्रार के निर्णय से जल्दी ही इस रहस्य से पर्दा उठेगा कि आखिर कहां और क्यों गायब हुए यह दस्तावेज अगर कथित नियुक्तियां निर्धारित तरीके से हुई है ?
क्या है मामला।
एक पब्लिक संस्थान होने के नाते पंजाब यूनिवर्सिटी के खाली पद आम जनता से विज्ञापन द्वारा आवेदन लेकर साक्षात्कार से भरे जाते हैं, लेकिन पिछले दरवाजे से नियुक्ति करने के दोष भी यूनिवर्सिटी अधिकारियों पर लगते रहे हैं। इन्हीं तथ्यों की सच्चाई जानने के उद्देश्य से डॉ राजेंद्र के सिंगला ने बाबा बलराज पंजाब यूनिवर्सिटी कंस्टिचुएंट कॉलेज, बलाचौर में नियुक्त हुए कुछ असिस्टेंट प्रोफेसरों (गेस्ट फैकल्टी) की चयन प्रक्रिया के दस्तावेज मांगे। जनवरी 16, 2020 को एक आरटीआई आवेदन से तीन असिस्टेंट प्रोफेसरों के नाम सहित पूछा गया कि अगर उनकी नियुक्ति पिछले दरवाजे से नहीं हुई, तो उनकी चयन प्रक्रिया से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध करवाए जाएं। यह हैं पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के सरबजीत सिंह, अंग्रेजी के रणवीर सिंह और फिजिकल एजुकेशन के चरण सिंह। पदों के लिए मांगे गए आवेदनों का विज्ञापन, आवेदकों का ए पी आई स्कोर, सिलेक्शन कमेटी की प्रोसीडिंग्स वगैरा की कापियां दी जाए।
यहां एक तरफ यूनिवर्सिटी की एस्टेब्लिशमेंट ब्रांच के डिप्टी रजिस्ट्रार सुभाष चन्द्र तिवाड़ी ने अपना पल्ला झाड़ते हुए आवेदन संबंधित कालेज के प्रिंसिपल डॉ सुनील खोसला को भेज दिया, वहां प्रिंसिपल ने यह कहते हुए कि मांगे गए दस्तावेज उनके पास उपलब्ध नहीं है, आवेदन वापिस यूनिवर्सिटी की एस्टेब्लिशमेंट ब्रांच को भेज दिया। सूचना अधिकारियों ने नियुक्ति आदेशों की प्रतियां देते हुए माना है कि यह नियुक्तियां यूनिवर्सिटी के उपकुलपति द्वारा मंजूर की गई है, लेकिन खाली पदों के लिए दिया गया विज्ञापन और सिलेक्शन रिकॉर्ड कहां गए, हर अधिकारी बचता हुआ नजर आया। अकाउंट्स ब्रांच के असिस्टेंट रजिस्ट्रार का आरटीआई के तहत जवाब है कि यह असिस्टेंट प्रोफेसरों की निजी जानकारी है, इन्हे बताया नहीं जा सकता। पूरे मामले के खिलाफ डॉ सिंगला ने पीयू रजिस्ट्रार के समक्ष अपील दायर की।
प्रश्न चिह्न?
डॉ सिंगला का कहना है कि यूनिवर्सिटी अधिकारी यह भी स्पष्ट नहीं करना चाहते कि मांगे गए दस्तावेज यूनिवर्सिटी से गुम हो गए, या फिर कभी थे ही नहीं। बिना किसी विज्ञापन और सिलेक्शन से यह उम्मीदवार कैसे पंजाब यूनिवर्सिटी के कंस्टिचुएंट कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसरों की लिस्ट में दाखिल किए गए ? कैसे यूनिवर्सिटी के खजाने से तनख़ाह के रूप में भुगतान ऑडिट से पास हुआ, अगर यह नियुक्तियां गलत तरीके से हुई ?
अब तक की करवाई।
यूनिवर्सिटी के मुख्य सतर्कता अधिकारी को एक लिखित शिकायत द्वारा पूरे मामले की छानबीन करके दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गुहार लगाई जा चुकी है। रजिस्ट्रार तथा यूनिवर्सिटी के रेजिडेंट लेखा परीक्षा अधिकारी सुरिंदर पाल सिंह को भी मामले से अवगत करवाया गया है। कथित घोटाले में किसी भी करवाई की जानकारी शिकायत करता को अभी तक नहीं दी गई।
पीयू बनाम आरटीआई कानून।
पारदर्शिता,जवाबदेही और अच्छे प्रशासन के दावों के साथ सूचना का अधिकार कानून देश में भले ही किसी हद तक कारगर सिद्ध हुआ हो, पंजाब यूनिवर्सिटी, चण्डीगढ़ में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले नागरिक व आरटीआई कार्यकर्ता हमेशा असंतुष्ट ही नजर आते हैं। शायद यही वजह है कि न सिर्फ आरटीआई आवेदनों की संख्या बढ़ती जा रही है, बल्कि अधूरी तथा गुमराह करने वाली जानकारी के कारण यूनिवर्सिटी हमेशा सवालों में घिरती आ रही है, फिर मामला चाहे पेंशन सैल स्कैम जैसे वितिय घोटाले का हो या नियुक्तियों में भाई भतीजावाद का।
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