5.3.21

दुख हुआ चंडीगढ़ संजीव महाजन से जुड़ी खबर सुनकर

 Om Raturi
    
 
 क्यों संजीव, यह सच है क्या ?  हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक पत्रकारिता का सफर तय करने का मौका मिला जाने अनजाने गिरते पड़ते। पता नहीं जीवन में कितनी तरह का नशा हमने किया, रिपोर्टिंग की, लेकिन सबसे बड़ा नशा इंसानियत का लगा ।  दुख हुआ चंडीगढ़ संजीव महाजन से जुड़ी खबर सुनकर।  चंडीगढ़ में दिल्ली के बाद वेतनमान अच्छा है लेकिन पत्रकारों की भौतिक तावादी भूख, नेताओं की संगत में रहकर बढ़ जाती है असलियत यह है कि संजीव महाजन के नाम पर खबर किसी दूसरे ग्रुप में भेजी होगी । 

संंजीव, जल्द सिटी संपादक हो गए थे। अमर उजाला से भास्कर में आये  वरिंदर रावत , दैनिक जागरण चंडीगढ़ में गए तो संजीव को मौका मिल गया ।संजीव, युवा हैं डीएसपी क्राइम से लेकर पुलिस विभाग में उनके अच्छे संबंध है और भी अच्छी स्टोरी की लाते हैं कई गेम खेले होंगे ।लेकिन हमारे मित्र रहे,  चंडीगढ़ में पूरे 10 साल बिताएं । अब जाकर के बेंगलुरु में संपादक होंने का मौका मिला । संजीव महाजन का दोष क्या है आखिर, चूहा कितना खाएगा, नेता कितना खाता है । चंडीगढ़ में लगभग हर संपादक किसी न किसी  सरकारी मकान को कब्जे में लीये है। नो संपादकों के मकान कैंसिल होने के बाद ,  भाइयों ने पॉलिसी बदलवा दी।  जबकि उनकी सैलरी पत्रकारों से बहुत अच्छी है कोई जरूरत नहीं है । लेकिन मुफ्त का मजा लेने के शौक ने उन्हें सरकारी मकानों का कब्जा दार बना रखा है ।गवर्नर तक को पॉलिसी बदलनी पड़ी, जिससे हक मारा गया आम श्रमजीवी पत्रकार।  संपादक महोदय अपना मजा लेते रहे।  स्वर्गीय बाबूलाल शर्मा , नीतिश त्यागी,  संजय पांडे संपादकों ने सरकारी मकान के लिए आवेदन ही नहीं किया, न सरकारी सुविधाएं  ली । लेकिन हरामखोरी की आदत पड़ जाए तो छूटती नहीं है । ऐसे में अब महाजन ने कुछ किया तो क्या किया, पूरा गैंग होगा भाई, हो सकता है । चलो ,मामले की जांच होगी ।दोषी पाया जाएगा, सजा मिलेगी । आखिर छोटा बनकर रहने में बुराई क्या है ,कम से कम नींद अच्छी आती है । धन-संपत्ति तो यहीं छूट जाती है  हमें तो ,जो आनन्द जमीन पर गद्दा या दरी बिझाकर सोने में आया , कही नहीं।

दैनिक भास्कर पानीपत में जॉइन किया और प्रबंधक श्री जगदीश जी शर्मा से गेस्ट हाउस की बात की। तो उन्होंने प्रसार प्रबन्धक विजय सिंह सिपहिया जी को गेस्ट हाउस में इंतजाम करने के आदेश दिये। अब रात लगभग 2-ढाई बजे का समय और एक पिठ्ठू , जिसने एक पेंट , कमीज व एक धोती ब्राह्मणों वाली या लुंगी लेकर पहुंचे हमें पानीपत में हरियाणा विकास प्राधिकरण के खाली मकानों, जो किराये की प्रेस के पीछे जीटी रोड पर करनाल जाने सड़क के पास थी और खाली ही थी। कालोनी में पहुंचे तो एक फ्लैट में श्री तिवारी जी , पूरा नाम भूल रहा हूँ, बरेली के थे, अमर उजाला से वरिष्ठ मशीनमैन या आपरेटर के तौर पर आए थे, फिट थे, उन्होंने मुझे एक दरी दी और कहा , भाई यहाँ सोना है तो यहां छत पर सो जाओ या फिर कहीं और। अब मैने सोचा भाई लोग बड़े हैं , थके होंगे , इनकी पार्टी या नींद क्यों खराब करनी अपने शेर दिल मजदूरी खुराटों से। सो अपन ने आव देखा न ताव , होटल लगभग 3-4 किलोमीटर दूर थे। शहर से बाहर जाने का साधन भी नहीं। नौकरी का पहला दिन और वर्ष 2000 या 2001 में 5,500 रुपये की नौकरी , वह भी 1 माह के ट्रायल पर । सेलेक्शन भी चंडीगढ़ में किया तो किसने अति स्वाभिमानी, विद्वान, अनुभवी ग्रुप एडिटर श्री श्रवण जी गर्ग ने, पूछा कहां जाओगे , कहा शिमला, तो पू्छा शिमला क्यों, अब अपन पहले राष्ट्रीय सहारा से पहले शिमला के श्री द्वारिका प्रसाद उनियाल जी के हिमालय टाइम्स में बतौर उप सम्पादक काम कर चुके थे, शादी हुई नही थी, शिमला में कपड़े धो लो तो प्रेस से सुखाने पड़ते थे। पसीना कम आता था और अपन को गर्मी बहुत लगती थी। अब पसीना निकलेगा तो कुँवारे के कपड़े धुलेगा कौन, फिर हम थे भी सुकुमार , हसीना की तरह, अब हसीना को पसीना तो पसं नहीं या यूं कह लें हमें जो हसीना का सामना कालोनी, शहर, आफिस में करना पड़ता तो उन्हें व अपन हीरो को उसकी दुर्गन्ध नहीं सुगंध ही कह लो, का सामना करना पड़ता और लव स्टोरी या आंख मिचौनी का द एन्ड हो जाता। इसीलिए तुरन्त जवाब दिया , शिमला में पसीना नहीं आता या कम आता है, कपड़े कई दिन चल जाते हैं। श्रवण जी पता नहीं किस मूड में थे या प्रबन्धन की जरूरत थी। उन्होंने श्री गिरीश अग्रवाल , श्री सुधीर अग्रवाल जी से -बहुत काम का लड़का भेज रहस होकेन। बात कर हिसार लॉन्चिंग पर भेज दिया, रिसेप्शन पर बैठी सुंदरी से कहा इन्हें हिसार के गिरीश जी मोबाइल, से लेकर गेट तक के सब फ़ोन नम्बर दे दो। अनमने मन से हिसार पहुंचे , काम किया। जाने अनजाने अच्छा ही हो गया। लेकिन यहां भी गर्म, यहीं आज दैनिक भास्कर के वर्तमान नार्थ स्टेट हैड , उस समय सब एडिटर थे बलदेव कृष्ण शर्मा जी से भी मुलाकात हुई और संपादक श्री हरिमोहन शर्मा जी से भी। जो अपनी कार्यशैली के कॉयल थे। लेकिन गर्मी और इस तामसी शरीर का क्या करते। हमने गिरीश जी से हिसाब मांग लिया।अब गिरीश जी ने कहा आप दिल्ली बहुत अप डाउन करते हो , पानीपत संपादक श्री बलदेव भाई शर्मा जी व जीएम व अब जयपुर जे प्रबंध संपादक श्री जगदीश शर्मा जी से मिलो। अब एक तो श्रवण जी, दूसरे बकदेव जी और जगदीश जी, सबकी परीक्षा पर भी खरा उतरना था। सो सी तिवारी द्वारा दी दरी को कन्धे पर डाला और आ गए कॉलोनी के बीच मे बने पार्क में । गर्मियों के दिन और मच्छरों की भरमार। मरता क्या न करता? याद आया पुराने लोगों का मुहावरा -नींद न जाने टूटी खाट..........., भूख न जाने जूठा भात,..... न जाने ....... आगे में नहीं लिखता। बच्चे बड़े हो रहे हैं।

दरी बिझाई , लुंगी या पण्डित की धोती ओढ़कर सो गये। कुछ देर तो मच्छरों का गाना सुना। बाद में थके कथित बुद्धिजीवी बनने वाले कसरती युवक को नींद आ गई। अगले ही दिन 700 रुपये माह पर कॉलोनी में ही कमरा लिया, वहीं दरी व तख्त खरीद लिया। जमीन पर भी सोये। बाद में संपादक बने श्री मुकेश भूषण जी ने शायद कान, लगन व ज्ञान , 2 बार बेस्ट ले आउट जर्नलिष्ट का ग्रुप में पुरुष्कार जीतने के बाद देख समझकर प्रबन्धन की सहमति या श्री जगदीश शर्मा जी के सुझाव और  सेंटर से पेज बनवाकर भिजवाने, रिपोर्टिंग, सम्पादन के लिये करनाल का जिला प्रभारी बनाया दिया, तो सम्पादकीय साथी रविकांत ओझ , जो बाद में आज तक दिल्ली में रहे, हमारी ईमानदारी, सरलता , या कम खर्च में सादगी, चाहे मजबूरी की हो, को देख या पता नहीं उनके मन मे सहानुभूति तो थी ही। बोले गुरु हरियाणा में चुनाव हैं और आप बन गए ब्यूरो चीफ, ऑफ कमरे में सामान मत रखना, सारा खुद  आ जायेगा। करनाल पहुंचे तो वहां सदर बाजार में ऊपर की मंजिल का मकान श्री सन्दीप साहिल ने दिलवाया। इसलिये यहां भी दरी फर्श पर ही बिझी कई दिन। एक दिन वरिष्ठ सम्पादकीय साथी श्री प्रदीप द्विवेदी जी आफिस के काम से शहर व  कमरे में आये, तो जमीन  पर सोने की व्यवस्था देख बोले , यार अब ब्यूरो चीफ बन गए हो, ढंग से रहो। बाद में निर्मल कुटिया गुरुद्वारे के पास सेक्टर में सरदार जी का मकान व डबल बेड भी काम आया। यहीं हाल हमारा चंडीगढ़ में दैनिक भास्कर व दैनिक जागरण कार्यकाल के दौरान रहा। और अब बेंगलुरु और हैदराबाद है । हैदराबाद मैं हम मित्र प्रशांत श्रीवास्तव ,डॉक्टर कांबले के साथ हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कमलेश महाराज के  आश्रम में दरी बिछाकर सोते थे।  संजीव जैसे पत्रकारों को सबक लेना होगा कि अपराध करो तो नेताओं की तरह करो, पकड़ते ही न बने,  या अपराध मत करो । भाई यशवंत भी तो तुम्हारे सामने उदाहरण है। हाउस डॉट कॉम,  पत्रकारों का हितेषी उनको सूचना देने वाला ,उनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ खड़ा होने वाला पोर्टल खड़ा किया। देश में कई ऐसे पत्रकार रहे जो इस दुनिया में नहीं है लेकिन उन्होंने जमीर से समझौता नहीं किया ।

- प्रभु ओम अद्भुत आनंद द्वारा प्रेषित
Om Raturi
omraturinews@gmail.com

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