15.5.21

कोरोना के बहाने शादियों को लेकर कुदरत का यह संदेश

Krishan pal Singh-
    
कोरोना की दूसरी लहर ने ऐसे समय में दस्तक दी जब शादियों की लगन शुरू हो गई थी। लोगों ने गेस्ट हाउस से लेकर डीजे तक बुक करा लिये थे और थोक के भाव में निमंत्रण कार्ड बांट डाले थे। लेकिन सारा खेल खराब हो गया। अप्रैल में काफी दिनों तक खतरे के बावजूद मेजबान तो कोरोना का मुंह चिढ़ाते रहे जबकि मेहमानों ने संयम बरता। बाद में जब हर रोज जाने पहचाने लोगों में एक दो की मौत की खबरें आने लगी तो मेजबानों को भी झुरझुरी आ गई और उनका उत्साह मंद पड़ गया। खासतौर से मई में अब जो शादियां हो रही हैं उनमें सीमित मेहमान बुलाये जा रहे हैं। फालतू के तामझाम में भी बड़ी कमी देखी जा रही है।


गत वर्ष तो संपूर्ण लाकडाउन ही घोषित हो गया था जिसकी वजह से प्रशासन की अनुमति लेकर लोग जैसे तैसे शादियां कर सके थे। अगर यह माना जाये कि अनहोनी घटनाओं के माध्यम से कुदरत कोई इशारा देती है तो दो साल से शादियों में होने वाले पागलपन भरे खर्च पर उसका जो कहर टूटा है उससे यह अंदाजा भी किया जा सकता है कि इस मामले में कुदरत किसी नई परंपरा को कायम करने के मूड में आ गई है।

पुराने समय में भी आलीशान शादियों का वर्णन मिलता है जिनमें हाथी, ऊंटों से बारात आती थी, बारात को पखवारे भर से लेकर महीेने भर तक रूकवाया जाता था, बारातियों के लिए हर रोज नये तरीके से खातिरदारी की व्यवस्था होती थी, नाच गाना आदि पर भी जमकर पैसा लुटाया जाता था और विदाई के समय बारातियों को सोने चांदी के उपहार दिये जाते थे लेकिन यह आम नहीं था। ऐसी तड़कीली भड़कीली शादियां राजाओं और बड़े जमीदारों के यहां ही सुनी जाती थी। आम लोगों के यहां शादियां बड़ी किफायत से हो जाती थी। घर पर ही बारात आती थी इसलिए गेस्ट हाउस का खर्चा नहीं होता था। खाना बनाने से लेकर परोसने तक के तमाम काम गांव वालों और रिश्तेदारो, परिचितों के जरिये स्वयं सेवा से हो जाते थे।
शुरू में जब गेस्ट हाउसों में शादियों का रिवाज शुरू हुआ तो लोगों को यह सुविधा जनक भी लगा और किफायती भी। गेस्ट हाउस मालिक को किराया थमाकर लोग सामान फर्नीचर आदि की व्यवस्था के झंझट से निजात पा लेते थे। किराया भी मामूली था और कोई अतिरिक्त खर्चा नहीं था। वेटर भी सीमित होते थे। गेस्ट हाउस संस्कृति की शुरूआती शादियों का एक औसत खर्चा था जिसे लेकर यह कहा जाता था कि घर से शादी करने से गेस्ट हाउस में शादी करना सुविधा जनक के साथ-साथ सस्ता भी पड़ता है।

लेकिन आज के जमाने में समाज के हाथ में बाजार का कंट्रोल नहीं रह गया बल्कि बाजार ने ऐसी आंधी का रूप ले लिया है जिसके मुताबिक समाज उड़ने को मजबूर हो गया है। शादियों के मामले में बाजार का रोल पहुंचा पकड़कर हाथ पकड़ लेने की तरह दिखाई देने लगा है। लोगों को जब तक अपनी ओर मोड़ने की गरज थी गेस्ट हाउस का बाजार भड़कीला नहीं बना था। अब तो गेस्ट हाउस बुक करने के बाद उसकी स्पेशल सजावट के मामले में लोगों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ दिखती है। बाहर के प्रोफेशनल डेकोरेटरों की सेवायें लेना अनिवार्य हो गया है जो ग्राहक की हैसियत देखकर उनमें एक रात के लिए अपने ही यहां लंदन-पेरिस उतार लाने की दीवानगी भर देते हैं। इस तरह डेकोरेशन का बजट आसमान पर पहुंच जाता है। यहीं हाल कैटरिंग का है। खाना चार रोटियां है लेकिन दाल, कोफ्ता और अनगिनत सब्जियां बन जाती हैं। चाट, दूध, आइसक्रीम आदि के स्टाल अलग से सजवाना आज अनिवार्य हो गया है। शादी के समारोह की व्यवस्था का एक पूरा पैकेज तैयार कर दिया गया है।

इस तरह शादी में कितना खर्चा हो जायेगा इसका अंदाजा नहीं रह गया। अब हर गली गांव में तीन तिकड़म से कुछ ही वर्षो में अंधाधुंध कमाने वालों की बड़ी नस्ल तैयार हो गई है जो सामाजिक मान्यता के लिए ऐसे कामों में पानी की तरह पैसा बहाते हैं फिर उनकी भी मजबूरी अपने बेटे बेटियों की शादी के समय भरपूर दिखावा करने की हो जाती है जिनकी सामथ्र्य सीमित है। बिडंवना तो यह है कि इस होड़ के चलते फिजूलखर्ची तो बढ़ी ही है खाने की बर्बादी भी बहुत हो रही है। ज्यादा से ज्यादा निमंत्रण कार्ड बांटना भी स्टेटस सिम्बल हो गया है जिससे हर चलते पुर्जा के पास लगन के दिन दर्जन भर कार्ड हो जाते हैं। अब वह कहां-कहां खायेगा लेकिन मेजबान खाने की व्यवस्था तो उसने जितने कार्ड बांटे हैं उतनी ही करेगा। इसके अलावा खाने के इतने विकल्प सजे रहते हैं कि खाना बहुत सीमित हो पाता है और शादी के बाद बहुत सा खाना फिकवाया जाता है।

हालांकि यह सही है कि उत्सवधर्मिता मानवीय स्वभाव की मौलिक विशेषता है लेकिन इसका एक दायरा होना चाहिए। अपने बेटे, बेटी की शादी को सबसे भव्य बनाने का जुनून जैसा लोगों में सवार हो गया है जिससे कई सामाजिक समस्यायें पैदा हो गई हैं। पहले के समय में कहा जाता था कि लोगों की आमदनी जरूरत से कम होने के कारण चोरी यानी भ्रष्टाचार पनपता है। पर अब सरकारी क्षेत्र में लोगों को आकर्षक वेतन मिलने लगा है, व्यवसाय व्यापार में भी आमदनी बहुत बढ़ी है लेकिन इससे चोरी और लालच घटने की बजाय बढ़ गया है। भ्रष्टाचार ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि गवर्नेंस चीत्कार कर रही है। व्यवस्था चरमरा चुकी है निरीह जनता जंगल राज जैसी स्थिति के कारण चीत्कार कर रही है।
इस तरह की स्थिति के लिए अप्रत्याशित खर्चा बहुत बड़ा कारक है जो पहले नहीं था। शादियों में हर दिन बढ़ने वाली फिजूलखर्ची अप्रत्याशित खर्च का ही एक नमूना है। लोगों के लिए जिंदगी का एक बजट बनाना मुश्किल हो गया है। बच्चों की शिक्षा से लेकर शादियों तक का पहले एक निर्धारित खर्चा था लेकिन अब इन चीजों के इतने आयाम हर रोज तैयार हो रहे हैं कि लोग आमदनी के मामले में असुरक्षा से पीड़ित रहने लगे हैं। लगता है कि कितना भी कमा लो लेकिन जरूरतों की पूर्ति नहीं हो पायेगी। इस सोच ने भ्रष्टाचार के मामले में लोगों को बर्बर बना दिया है।

पहले राजनीतिक पार्टियां राजनीति के काम के साथ-साथ समाज सुधार के कार्यक्रमों को भी अपने एजेंडे में शामिल रखती थी। यहां तक कि इमरजेंसी में संजय गांधी ने जो पांच सूत्रीय अभियान सरकारी कार्यक्रम के बतौर चलाया था वह भी इसी अपेक्षा के अनुरूप था। पर आज राजनीतिक पार्टियों को समाज सुधार और रचनात्मक कार्यो से कोई सरोकार नहीं रह गया अन्यथा उनकी भी निगाह शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची पर पड़ चुकी होती। पर राजनीतिज्ञों का आलम तो यह है कि नोटबंदी के समय जब आम लोग कुछ हजार रूपये बदलवाने के लिए लंबी लाइनों में लगे थे तब एक केन्द्रीय मंत्री ने अपने यहां की शादी में करोड़ों रूपये फूंककर सरकार और अपनी पार्टी की छवि खराब करने में भी गुरेज नहीं किया था। जबकि अगर शीर्ष पर बैठे लोग अपनी संतानों के वैवाहिक कार्यक्रम संक्षिप्त तरीके से संपादित कराने का व्रत ले लें तो उसका प्रभाव जमीन तक दिखाई दे सकता है। व्यवहार और संस्कृति के स्तर के बदलाव प्रशासन और कानूनों से नहीं हो सकते उसके लिए तो प्रमुख लोगों को ही अपने का उदाहरण बनाकर आगे आना होता है।

बहरहाल जब लोग अपनी जिम्मेदारी से विमुख हैं तो कुदरत ने लगता है कि इसका बीड़ा उठा लिया है। कोरोना काल में लोग महसूस कर रहे हैं कि बेटे बेटियों की शादियां चन्द नजदीक के रिश्तेदारों और परिचितों को बुलाकर सादगी में भी उत्साह के साथ संपन्न कराई जा सकती हैं। क्या यह तरीका भविष्य में हमेशा के लिए एक लीक बन सकेगा।
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Regards,
K.P.Singh  
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