12.7.21

हम केवल ख़बर, वीडियो नहीं बनाते, जान भी बचाते हैं... क्योंकि हम पत्रकार हैं

Yogesh Mishra-
    
जब भी हमारे, आपके आसपास किसी तरह की घटना होती है और पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर, रिस्क लेकर लोगों को बचाने का प्रयास करते हैं, तो विरोध करने वाले कई लोग बड़ी आसानी से कहते हैं कि 'पत्रकार हो इसका मतलब क्या? छोटी बात को बड़ा क्यों बना रहे हो भाई? पत्रकार है, मतलब मदद नहीं करेगा, देखना वीडियो बनाएगा? मजलूमों पर अत्याचार करते, गलत काम करते कई असामाजिक लोग धमकाकर कहते हैं, क्यों बीच में आ रहे हो? क्या तुमने ही क्या ठेका लिया है? यह सवाल बिल्कुल सही है, पर जवाब ये है कि 'हां हमने ठेका लिया है। हाँ हम पत्रकार हैं, औरों की तरह तमाशा नहीं देखेंगे, कमज़ोरों को बचाएंगे।'


परसों की एक घटना साझा कर रहा हूँ।

.....परसों मेरे गृहग्राम कटगी में साप्ताहिक बाज़ार वाली सड़क 50-55 वर्ष का एक व्यक्ति नशे की हालत में साइकिल में लहूलुहान अचानक सड़क पर गिरा हुआ था, उनके सिर से खून लगातार बह रहा था, व्यक्ति बेहोश था, तड़प रहा था। हर बार की तरह और हर जगह की तरह अनेक लोग उस व्यक्ति को तड़पता देख 'हटा' समझ वहाँ से चुपचाप तमाशा देख गुजर थे।

मैं आसपास था, मुझे कुछ लोगों ने आवाज़ देकर बुलाया, मैं वहां पहुंचा। मैंने लोगों से कहा कि मैं इनके हुलिये के आधार पर इनका पता लगाता हूं, आप एंबुलेंस को फोन लगा लीजिए। लोग कहने लगे 'एम्बुलेंस म हमर फोन से नहीं लगत हे, महाराज आप लगा लेवा न'। (हमारे फोन से एम्बुलेंस को फ़ोन नहीं लग रहा है महाराज, आप लगा दीजिये।)

मैंने एम्बुलेंस को फोन लगाया, स्थानीय चिकित्सक को फोन लगाया। व्यक्ति तड़प ही रहा था। तब तक एक-दो ज़िम्मेदार लोगों की मदद से उस व्यक्ति को बेहोशी की हालत से होश में लाया गया। उपस्थित एक पंच और 2-3 लोग अपनी जिम्मेदारी समझते उसे पानी पिलाने लगे, जैसे तैसे उन्हें होश में लाया गया। लड़खड़ाते उस व्यक्ति ने अपना नाम और गाँव बताया। फिर उनका नाम पूछकर, उनके गाँव के समीप गाँव के शेखर मामा जी, गुरुजी को मैंने फ़ोन किया, उन्होंने व्यक्ति के गांव कोट के ग्रामीणों को सूचना दी। उनका गांव, उनका परिवार पता चला। किस्मत से कुछ देर के बाद उनके परिवार से संपर्क हो पाया, और उनके परिजनों ने मेरे नम्बर में सम्पर्क कर अपने मुखिया का हालचाल मुझसे पूछा और तब तक इधर वह व्यक्ति होश में आ गया। उनके परिजनों के मैं सतत सम्पर्क में था।

व्यक्ति के होश में आते, हम लोगों ने उन्हें हाथ देते एक जगह आराम से बिठाया गया। थोड़ी देर बाद व्यक्ति का पुत्र घटनास्थल पर पहुंचता है और अपने पिता को बाईक में बिठाकर उपचार के लिए अस्पताल ले जाता है। पास मौजूद अनेक लोग इस समय अब हिम्मत कर पाते हैं। व्यक्ति के सायकल को पास के एक मकान में सुरक्षित तरह से रखा जाता है। (शहर के मुकाबले ये संवेदनशीलता गाँव के ग्रामीणों में अधिक दिखी, जो सदैव दिखती ही है।)

इस पूरी घटना के दौरान जिसने भी उस व्यक्ति की हालत देखी और घटना के बारे में जाना, सब ने कहा कि 'आज उस व्यक्ति (छेड़ूराम यादव) को नया जीवन मिला है।'

सोचिए अगर वहां मदद करने वाले दो चार लोगों ने सहायता नहीं की होती, अगर 'हमें क्या करना है' जैसा कई लोग कर रहे थे, सोचकर वहां से निकल जाते, अगर उनके परिजनों को जानकारी नहीं मिल पाती, उनके परिजन नहीं आ पाते और व्यक्ति बेसुध अगर वहीं पड़े रहते, तो सोचिये क्या उनका जीवन बच पाता?

कई बार पत्रकारों के बारे में लोग आसानी से कह देते हैं कि 'हम छोटी बात को बड़ा बनाते हैं, सहायता करना छोड़ वीडियो बनाते हैं, और न जाने क्या-क्या, मीडियाकर्मियों के विषय में बोला, लिखा जाता है।

आप इस बात को महसूस करते ही होंगे कि पत्रकार आम लोगों के मुकाबले ज्यादा रिस्क लेता है, वह अपनी जान जोखिम में डालकर सामने आकर औरों की जान बचाते नजर आता है।

 ....लेकिन लोगों का क्या है, वो तो अपनी जिम्मेदारी से खिसक लेंगे। अगर पत्रकार या समाज के कुछ ज़िम्मेदार कुछ ना करें, तो उन्हें बड़ी आसानी से गैरज़िम्मेदार कह जाता है।

ख़ैर...आपका मुँह, आपकी सोच, पर ये जान लीजिये कि पत्रकार सदैव समाज के प्रहरी रहा है, वो आमलोगों की हितों की रक्षा ही करता है और करता रहेगा। वो ख़बर के दौरान ख़ुद भूखा रहकर कभी किसी भूखे को अपनी ख़बरों के जरिये अन्न दिला देता है, ख़ुद किराये के मकान में जीवनभर रहकर कभी किसी बेघर को घर की छत उपलब्ध करवा देता है, ख़ुद प्राइवेट जॉब वाला होकर अनेकों युवाओं को सरकारी नौकरी दिलवा देता है, तो कभी ख़ुद एफआईआर, धमकी, उत्पीड़न, शोषण झेलकर कईयों की जान बचा देता है। 

ये भूख, बेघर रहना, ये बेरोजगारी पसंद है, सत्ता का एफआईआर पसंद है। बस हम कमज़ोरों की आवाज़ बनते रहें, निर्बलों को बल देते रहें, पत्रकार होने के नाते इतना ही सम्मान काफ़ी है।

(नोट- इस घटना का उल्लेख लिखते अभी मेरे सामने उस व्यक्ति की हालत, बहता खून याद आ रहा है, गर्व ये हो रहा है कि पत्रकार हूँ, तभी इतनी हिम्मत कर पाया।)

जय हिंद

(ये अनुभव सुदर्शन न्यूज़ के छत्तीसगढ़ ब्यूरो प्रमुख योगेश मिश्रा ने लिखा है)

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