5.7.21

सरकार के लिए बड़ी चुनौती बने कोरोना के साइड इफेक्ट

CHARAN SINGH RAJPUT
    
इसे जीत कहा जाए या पराजय, इसे जिंदगी कहा जाए य मौत, कोरोना महामारी की चपेट में आने वाला व्यक्ति तरह-तरह के साइड इफेक्ट से जूझ रहा है।   ये साइड इफेक्ट घर पर इलाज करने वालों से ज्यादा अस्पताल में गये व्यक्तियों ेमं ज्यादा देखे जा रहे हैं। कोरोना महामारी को परास्त करने वाले लोगों में तरह-तरह की बीमारियां होने की खबरें सामने आ रही हैं। यह कोरोना का साइड इफेक्ट है या फिर उनको दी जाने वाले दवाओं का आये दिन कोरोना से सही हुए लोगों में तरह-तरह की बीमारियां होने की खबरें आ रहे हैं। इन लोगों में ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमाइकोसिस नाम की बीमारी तो जगजाहिर हो ही चुकी है। गत दिनों कई राज्यों में इसे महामारी भी घोषित किया था, अब  इसी कड़ी में एक नई बीमारी और जुड़ गई है, जिसका नाम है अवैस्क्यूलर नैक्रोसिस यानी बोन डेथ है। इस बीमारी ने मुंबई के डॉक्टरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुंबई में इस बीमारी के 3 मरीज सामने आए हैं। इस बीमारी की सबसे खास और डराने वाली बात यह है कि इसमें मरीजों की हड्डियां गलने लगती है।  


दरअसल इस बीमारी में हड्डियां गलती की वजह बोन टिशु तक खून की सप्लाई न हो पाना और मरीजों की हड्डियां कमजोर होना है। डॉक्टर इस बीमारी के होने की बड़ी वजह  कोरोना माहमारी के दौरान स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल करना भी मान रहे हैं। मतलब अस्पताल के बजाय घर पर ही कोरोना का इलाज करने वाले लोगों में इस बीमारी की आशंका कम है। परेशानी बढ़ाई वाली बात यह है कि डॉक्टरों को इस बात की भी आशंका है कि आने वाले समय में इस बीमारी के मामले और भी बढ़ सकते हैं।  मतलब अब देश के सामने कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के साथ ही कोरोना को मात देने वाले लोगों में हो रहे साइड इफेक्ट भी बड़ी चुनौती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में इस बीमारी के तीन मरीजों का इलाज किया गया। तीनों मरीजों को कोरोना से उबरने के बाद इस बीमारी का पता चला। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के बचाव के लिए फायदेमंद दवा कॉर्टिकोस्टेरॉड्स का भारी मात्रा में उपयोग किया गया है।
देखने को मिल रहा है कि कोरोना से ठीक होने के बाद काफी लोग अब दूसरी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। कुछ  को थोड़ा सा भी काम के बाद थकान हो जा रही है तो कुछ को सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। कुछ को दिल का नया रोग लग गया है, तो कुछ में और दूसरी परेशानियां घर कर गई हैं। अभी तक अधिकतर लोग कोरोना को  सर्दी जुकाम वाली बीमारी ही मानकर चल रहे हैं। आम लोगों को लगता है कि कोविड-19 में केवल फेंफड़ों पर ही असर होता है। चूंकि बीमारी नई है, इस वजह से धीरे-धीरे ही शरीर के दूसरे अंगों पर इसके असर के बारे में पता चल पा रहा है।

देखने में आ रहा है कि कोरोना महामारी में दिल, दिमाग, मांसपेशियां, धमनियां और नसों, खून, आंखें जैसे शरीर के कई दूसरे अंग पर भी असर पड़ा है। मतलब पूरा शरीर बेकार हो जा रहा है। यही वजह है कि लोग हार्ट अटैक, डिप्रेशन, थकान, बदन दर्द, ब्लड क्लॉटिंग और ब्लैक फंगस जैसी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि 90 फीसद से ज़्यादा कोविड19 के मरीज़ घर पर रह कर ही ठीक हो जाते हैं। इसके बारे में  सर गंगाराम अस्पताल में मेडिसिन विभाग के हेड डॉ. एसपी बायोत्रा का कहना है कि हल्के लक्षण वाले मरीज़ो को भी पूरी तरह ठीक होने में 2-8 हफ्तों का समय लग सकता है। कमज़ोरी, एक साथ ज्य़ादा काम करने पर थकान, भूख न लगना, नींद बहुत आन, या बिल्कुल न आना, शरीर में दर्द, शरीर का हल्का गरम रहना, घबराहट ये कुछ ऐसे लक्षण है जो माइल्ड मरीज़ों में आम तौर पर ठीक होने के बाद भी देखने को मिलते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भी इस बारे में कोई विस्तृत जानकारी या गाइडलाइन तो जारी नहीं की गई है। हां इसी साल जनवरी के महीने में जारी एक नोट में अस्पताल जाकर लौटे कोरोना मरीज़ों के लिए फॉलो-अप चेकअप और लो-डोज़ एन्टीकॉग्युलेंट या ब्लड थिनर के इस्तेमाल की सलाह दी गई थी।

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