CHARAN SINGH RAJPUT-
भाजपा के लिए खतरा बनता जा रहे किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए मोदी सरकार में चल रही माथा-पच्ची
नई दिल्ली। नये किसान कानूनों को वापस कराने के लिए 9 महीने से चल रहा किसान आंदोलन न केवल मोदी सरकार बल्कि भाजपा के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गुजरात और गोवा में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन भाजपा का चुनाव प्रभावित का सकता है। भाजपा को सबसे ज्यादा डर उत्तर प्रदेश में सता रहा है। किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश मुजफ्फरनगर के होने की वजह से भाजपा को 100 सीटें गड़बड़ाने का अंदेशा है। किसान आंदोलन में भाकियू का उत्तर प्रदेश में न केवल गन्ना भुगतान बल्कि बिजली की बढ़ी दरों को शामिल करने की वजह से योगी सरकार पर बड़ा दबाव बन गया है। ऊपर से जाटों का पार्टी माने जाने वाली रालोद के साथ सपा के साथ होने जा रहा गठबंधन। यही वजह है कि योगी और मोदी सरकार यूपी विधानसभा चुनाव से पहले किसी भी सूरत में आंदोलन को खत्म कराना चाहती हैं। इसमें दो राय नहीं कि भले ही किसान तीनों किसान आंदोलनों को खत्म करने की बात कर रहे हों पर एमएसपी खरीद पर कानून पर काफी हद तक किसानों और सरकार में सहमति बन सकती है। वैसे भी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ राकेश टिकैत के मधुर संबंध रहे हैं।
विश्ववसनीय सूत्रों पर विश्वास करें तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार एमएसपी पर कानून ला सकती है। एमएसपी पर कानून लाने से भाजपा को न केवल यूपी बल्कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिलने की उम्ीमद है। भाजपा को अंदेशा है कि किसानों की नाराजगी उसका सारा खेल बिगाड़ सकती है। जहां तक पूंजीपतियों की नाराजगी की बात है तो मोदी सरकार को उनको यह समझाने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी कि जब सरकार ही नहीं रहेगी तो उनके लिए काम कैसे किया जाएगा।
किसान आंदोलन में किसानों का आरोप है कि सरकार ने हाल ही में जो तीन नए कृषि कानून बनाए हैं उनके पीछे सरकार की मंशा न्यूनतम समर्थन मूल्य सिस्टम को खत्म करने की है। हालांकि, सरकार बार-बार यही दुहाई दे रही है कि नए कानूनों से वर्तमान व्यवस्था पर कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा, उल्टा किसानों को फायदा ही होगा। एमएसपी सिस्टम पहले की तरह ही चलता रहेगा। दरअसल न्यूनतम समर्थन मूल्य टॉप ट्रेंड बना हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि भले ही देश में किसान आंदोलन में एमएसपी शब्द बार-बार सुनने को मिलता है पर देश में आम लोगों का तो छोड़ दें किसानों और सरकार में भी ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें एमएसपी का मतलब ही मालूम नहीं। यह बात समझने की जरूरत है कि एमएसपी क्या होता है। या फिर ये कैसे तय किया जाता है, इससे किसानों को क्या फायदा है।
एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम सर्मथन मूल्य। एमसपी सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की गारंटी होती है। राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए इस एमएसपी पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है। बाजार में उस फसल के रेट भले ही कितने ही कम क्यों न हो, सरकार उसे तय एमएसपी पर ही खरीदेगी। इससे यह फायदा होता है कि किसानों को अपनी फसल की एक तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल के दाम कितने चल रहे हैं। हालांकि मंडी में उसी फसल के दाम ऊपर या नीचे हो सकते हैं। यह किसान की इच्छा पर निर्भर है कि वह फसल को सरकार को बेचे एमएसपी पर बेचे या फिर व्यापारी को आपसी सहमति से तय कीमत पर।
कौन तय करता है एमएसपी : फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सीएसपी यानी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग तय करता है। सीएसीपी तकरीबन सभी फसलों के लिए दाम तय करता है। हालांकि, गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है। आयोग समय के साथ खेती की लागत के आधार पर फसलों की कम से कम कीमत तय करके अपने सुझाव सरकार के पास भेजता है। सरकार इन सुझाव पर स्टडी करने के बाद एमएसपी की घोषणा करती है।
किन फसलों का तय होता है एमएसपी : रबी और खरीफ की कुछ अनाज वाली फसलों के लिए एमएसपी तय किया जाता है। एमएसपी का गणना हर साल सीजन की फसल आने से पहले तय की जाती है।
फिलहाल 23 फसलों के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। नमें अनाज की 7, दलहन की 5, तिलहन की 7 और 4 कमर्शियल फसलों को शामिल किया गया है। धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर, सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास, जूट आदि की फसलों के दाम सरकार तय करती है।
एमएसपी का फायदा : एमएसपी तय करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अगर बाजार में फसल का दाम गिरता है, तब भी यह तसल्ली रहती है कि सरकार को वह फसल बेचने पर एक तय कीमत तो जरूर मिलेगी।
एमएसपी तय करने का फार्मूला : केंद्र में जब मोदी सरकार आई थी तब उसने फसल की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी तय करने के नए फार्मूले अपनाने की पहल की थी। ज्ञात हो कि कृषि सुधारों के लिए 2004 में स्वामीनाथन आयोग बना था।
आयोग ने एमएसपी तय करने के कई फार्मूले सुझाए थे। डा. एमएस स्वामीनाथन समिति ने यह सिफारिश की थी कि एमएसपी औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू किया और 2018-19 के बजट में उत्पादन लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना एमएसपी करने की घोषणा की। वह बात दूसरी है कि यह सब अमल में न लाई जा सकी।
कैसे होती है किसानों से खरीद : हर साल बुआई से पहले फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाता है। हर खरीफ और रबी सीजन के लिए एमएसपी तय होता है. बहुत से किसान तो एमएसपी देखकर ही फसल बुआई करते हैं।
एमएसपी पर सरकार विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से किसानों से अनाज खरीदती है। एमएसपी पर खरीदकर सरकार अनाजों का बफर स्टॉक बनाती है। सरकारी खरीद के बाद एफसीआई और नैफेड के पास यह अनाज जमा होता है। इस अनाज का इस्तेमाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)के लिए होता है।
अगर बाजार में किसी अनाज में तेजी आती है तो सरकार अपने बफर स्टॉक में से अनाज खुले बाजार में निकालकर कीमतों को काबू करती है।
एमएसपी सिस्टम की दिक्कत : किसानों की फसलों की लागत तय कर पाना मुश्किल होता है। छोटे किसान अपनी फसल को एमएसपी पर नहीं बेच पाते हैं। बिचौलिये, किसान से खरीदकर फसल खरीदकर एमएसपी का फायदा उठाते हैं। अभी कई फसलें एमएसपी के दायरे से बाहर हैं।
केरल में सब्जियों का भी एमएसपी : केरल सरकार ने सब्जियों के लिए आधार मूल्य तय कर दिया है। केरल सब्जियों के लिए एमएसपी तय करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। यह व्यवस्था गत 1 नवंबर से लागू हो गई है। सब्जियों का यह न्यूनतम या आधार मूल्य उत्पादन लागत से 20 फीसदी अधिक होगा। एमएसपी के दायरे में फिलहाल 16 तरह की सब्जियों को लाया गया है।
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