Shashi kant kushwaha-
सिस्टम की खामियों का खामियाजा भुगत रहे मासूम बच्चे
सिंगरौली: चिराग तले अंधेरा की कहावत तो हम सभी पूरी तरह से वाकिफ हैं ऐसा ही एक मामला सिंगरौली जिले से निकल कर सामने आया है दरसल यह हमारे सिस्टम की बड़ी लापरवाही के रूप में कही जा सकती है। ऐसा नही है कि इस मामले की जानकारी जिम्मेदारों को नही है वो बात अलग है कि इतनी बड़ी लापरवाही को जिम्मेदार नजरअंदाज कर रहे हैं । कुछ दिनों पहले हमने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर इसकी खबर प्रमुखता से उठाया था ।दरशल महज 8 से 10 साल उम्र के बच्चे जिनकी उम्र खेलने कूदने पढ़ने लिखने की है वो बच्चे अवैध मयखाने में शराब परोसने प्लेट लगाने और जूठी प्लेट उठाने का कार्य करते हैं वह भी हमारे सिस्टम की नाकामी की वजह से ।
सिंगरौली जिले के जयंत क्षेत्र में स्थित सी डब्ल्यू एस मुख्य मार्ग में स्थित शराब की दुकान के ठीक पीछे शराब का सेवन करने के लिए बाकायदा मयखाना बनाया गया है जिसमें लोग जाम से जाम टकराते नजर आते हैं वही बेधड़क चल रहे इस मयखाने में आने वाले ग्राहकों को सेवा प्रदान करने के लिए जैसे ग्राहकों के लिए शराब के साथ रखने का इंतजाम करना टेबल साफ करना एवं झूठ प्लेट हटाना व ग्राहकों के लिए सिगरेट गुटका तंबाकू को लाकर ग्राहकों को देने के कार्य के लिए 8 से 10 वर्ष के बच्चों को लगाया गया है। जिन जगहों पर जाना हमारे सभ्य समाज के बुद्धिजीवियों को अच्छा नहीं लगता तो वहीं दूसरी तरफ ऐसी जगह पर सुबह के उजाले के साथ ही देर रात तक जाम से जाम टकराने का जो दौर चलता है ऐसे में यह मासूम बच्चे वहां पर मौजूद रहकर सेवाएं दे रहे जिसके बदले में उन्हें संचालक के द्वारा ₹100 प्रति दिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है।
विद्यालय ने इन बच्चों को नहीं दिया दाखिला
जिन 8 से 10 साल के बच्चों की बात हम कर रहे हैं ऐसा नहीं कि उन बच्चों ने विद्यालय की दहलीज नहीं देखी यह बच्चे विद्यालय जरूर पहुंचे थे मन में एक ख्वाब लेकर कि वह भी विद्यालय जाएंगे शिक्षा की ज्योति से अपने भविष्य में उजाला करेंगे परंतु हमारे सिस्टम ने इन मासूमों के मंसूबों पर पानी फेर दिया जैसे तुम इतना असहाय हो चुका है कि इन मासूम बच्चों की मदद के लिए आगे तक नहीं आ पाया लाचार सिस्टम की दुहाई क्या दें क्योंकि यहां सिस्टम के लोग सिर्फ जेबें भरने की तरफ ध्यान देते हैं फिर ऐसे में चाहे मासूम बच्चों का भविष्य ही क्यों ना बर्बाद हो रहा हो। दर्शल मयखाने में कार्य करने वाले मासूम बच्चे ने बताया कि जब विद्यालय में प्रवेश को लेकर वह शासकीय विद्यालय पहुंचे तो उनसे दस्तावेजों के नाम पर आधार कार्ड भी मांगा गया जिस पर आधार कार्ड पर असमर्थता जाहिर करने के बाद विद्यालय की जिम्मेदार लोगों ने विद्यालय में इन बच्चों को दाखिला देने से मना कर दिया और यह बच्चे विद्यालय की दहलीज़ न चढ़कर अवैध मयखाने की तरफ बढ़ चले जिसमें कि आज भी उनका सफर बदस्तूर जारी है
क्या कहता है अनिवार्य शिक्षा का कानून
बच्चों का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम या शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE ACT 2009) 4 अगस्त 2009 को अधिनियमित भारत की संसद का एक अधिनियम है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत भारत में ६ से १४ वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के महत्व के तौर-तरीकों का वर्णन करता है।6 से 14 साल की उम्र के हरेक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। संविधान के 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को प्रभावी बनाया गया है।
सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करायेंगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंध समितियों (एसएमसी) द्वारा किया जायेगा। निजी स्कूल न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को बिना किसी शुल्क के नामांकित करेंगे।यह कानून सुनिश्चित करता है कि हरेक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्राप्ति हो और यह इसे राज्यर, परिवार और समुदाय की सहायता से पूरा करता है।
विद्यालय में आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर फैसला सुनाया है। पांच जजों की पीठ की ओर से सुनाए गए फैसले के अनुसार आधार कार्ड को कई सेक्टर में अनिवार्य नहीं किया जा सकता है सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के एडमिशन को लेकर कहा कि 6 से 14 साल के बच्चों का स्कूल में एडमिशन करवाने के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है उन्होंने कहा कि आधार ना होने की स्थिति में किसी व्यक्ति को अपने अधिकार लेने से नहीं रोका जा सकता।कोर्ट ने स्कूलों में आधार की अनिवार्यता खत्म कर दी है. हाल ही में कई खबरें आ रही थीं कि स्कूल बच्चों और पेरेंट्स से आधार कार्ड मांगा जा रहा था लेकिन अब आधार कार्ड जमा करना जरूरी नहीं है आप पहचान के लिए आधार का इस्तेमाल कर सकते है कोर्ट ने कहा कि आधार एक्ट में ऐसा कुछ नहीं है जिससे किसी की निजता पर सवाल खड़ा हो। कोर्ट ने कहा कि निजी कंपनियां अब आधार कार्ड नहीं मांग सकती हैं।
अब इसे सिस्टम की खामी नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे 8 से 10 साल तक के बच्चे अगर मैं खाने में जाकर शराब पर उसे गे तो उन पर कितना मानसिक आघात पहुंचेगा यह बताने की जरूरत नहीं है एवं उनके भविष्य को यह शराब पर उसने का कार्य किस तरफ ले जाएगा यह विचार इन्हीं योग्य है दर्शन इस पूरे मुद्दे पर जब हमने गौर किया तो हमने पाया कि जिस क्षेत्र में यह शराब की दुकान एवं मयखाना संचालित हो रहा है वह कोयला उत्पादन की अनुषंगी कंपनी नार्दन कोलफील्ड लिमिटेड के टाउनशिप के बेहद निकट है जहां विभिन्न क्षेत्रों से आए विभिन्न धर्म संप्रदाय के लोग रहते हैं ऐसा नहीं कि जनप्रतिनिधियों को इसकी खबर नहीं है सत्ता पक्ष हो या विपक्ष की भूमिका निभाने वाले पार्टी के नेता से लेकर कार्यकर्ता सभी इस मामले को भली-भांति जानते हैं परंतु कोई भी इस पर बोलना तक नहीं चाह रहा है और बोलेगा भी तो कैसे कि यह बच्चे उनके नहीं है यह तो गरीब एवं शोषित समाज से ताल्लुक रखने वाले बच्चे हैं तो वहीं दूसरी तरफ सामाजिक संस्थाओं के ऊपर भी उंगलियां उठना लाजमी है सामाजिक संस्थाएं जिले में बहुत से कार्य कर रहे हैं परंतु सिर्फ मुनाफे के चक्कर में कागजों पर कार्य दिखाए जा रहे हैं जमीनी हकीकत से ऐसे बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह समाज संस्थाएं भी आगे नहीं आती।
इनका कहना है
संबंधित मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता संजय नामदेव का कहना है कि इस संबंधित मामले में सबसे बड़े दोषी आबकारी विभाग के अधिकारी कर्मचारी हैं जिन्होंने अवैध बार संचालन पर लगाम नहीं लगाया इसके साथ ही नाबालिक बच्चों को काम पर रखना गैरकानूनी है जिस पर श्रम विभाग को कार्यवाही करनी चाहिए थी एवं जिन बच्चों को विद्यालय में अध्ययनरत होना चाहिए वह बच्चे शराब परोस रहे हैं यह बेहद शर्मनाक है ऐसे में हम मांग करते हैं कि संबंधित मामले की जांच करा कर उचित न्याय संगत कार्रवाई प्रशासन को करना चाहिए अन्यथा हम धरने पर बैठेंगे
Thanks and regards
Shashi kant kushwaha
9329031634
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