12.10.22

बांसवाड़ा में साजिशन दर्ज किए जाते हैं पत्रकारों के खिलाफ मुकदमें

किशन सेन-

जब खेत ही बाढ़ को खाने लगे तो खेत का क्या कसूर यही हाल है वर्तमान में बांसवाड़ा के पत्रकारों का?

देश के  दो बड़े  अखबार के पत्रकारों कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी  क्या अन्य सस्थान के पत्रकारों के लिए मौका देखते है ये आखिर मजबूरी या फिर किसी साजिश का हिस्सा।
राजस्थान के दक्षिणी हिस्से में बसे बांसवाड़ा जो मध्य प्रदेश और गुजरात की सीमा से सटा हुआ है साल 2020 से 2022 तक ना जाने अब तक बांसवाड़ा में कितने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हो चुके हैं जिनमें अधिकांश मुकदमे साजिश के हिस्से हैं एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है की बिना कैसे अनुसंधान के पत्रकारों पर मुकदमा दर्द नहीं किया जाए और दूषित अनुसंधान अगर पाया गया तो उसका सीधा सीधा जिम्मेवार पुलिस का मुखिया यानी डी जी पी होगा लेकिन बांसवाड़ा में दो राष्ट्रीय अखबार के पत्रकारों द्वारा अन्य संस्थान के पत्रकारों द्वारा अगर सच दिखाया जाता है तो उनकी सजा साजिश के तहत अन्य संस्थान के पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कर लोकतंत्र की रक्षा कर रहे देश के चौथे स्तंभ को दबा दिया जाता है और फिर मुकदमा दर्ज होते ही उस पत्रकार की दो राष्ट्रीय बड़े अखबार  अपने अखबार में प्रमुखता से स्थान देते हैं, यह पत्रकारिता है या फिर मौकापरस्त साजिश का हिस्सा, साजिश  इसलिए कहा जा रहा है कि जब  अन्य संस्थान के पत्रकारों के साथ अन्याय होता है तो पत्रकारों द्वारा जब पुलिस को रिपोर्ट दी जाती है अधिकांश तो मामले ही दर्ज नहीं होते दर्ज हो जाते हैं तो उस पर कोई सुनवाई नहीं होती इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की सच दिखाने वाले अन्य संस्थान के पत्रकारों कि आवाज को दबा दिया जाता है पत्रकारिता का मतलब न्याय दिलाना होता है और सच को सबके सामने लाना होता है लेकिन यहां तो ना सच सामने आता है ना पीड़ित को न्याय मिलता है सिर्फ मौकापरस्त पत्रकारिता बांसवाड़ा में चरम पर है क्योंकि अन्य संस्थान के पत्रकारों द्वारा जब सच दिखाया जाता है तो दो राष्ट्रीय अखबारों को नीचा देखना पड़ता है ऐसे में सच दिखाने वाले पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज होते ही दो राष्ट्रीय अखबारों की हेड लाइन बन जाती है और यही साल 2020 से 2022 तक बांसवाड़ा जिले में देखने को मिला है आखिरकार जिला प्रशासन इन सब वाक्य से वाकिफ होने के बावजूद भी आखिरकार अन्य संस्थान के अधिकृत पत्रकारों के साथ इस प्रकार    दोहरा रवैया क्यों अपनाया जा रहा है आखिरकार बांसवाड़ा में अधिकृत पत्रकारों की जिला प्रशासन द्वारा सुनवाई क्यों नहीं की जाती है कब तक लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इस तरह साजिशों का शिकार होता रहेगा क्या सच दिखाना एक कानूनी जुर्म  है। तो फिर 1867 में बने प्रेस एक्ट कानून मैं मिली पत्रकारों को सवाल पूछना और सच दिखाने का अधिकार प्रेस एक्ट के तहत मिला है जब सच दिखाना ही अगर गलत है तो फिर 18 67 में बने प्रेस एक्ट में बदलाव क्यों नहीं किया गया है ताकि पत्रकार इसकी पालना करते लेकिन यहां तो बड़े संस्थानों की पत्रकारिता चाटुकारी और दबाव की राजनीतिक में फस चुकी है और अन्य संस्थान के पत्रकार अगर सच दिखाते हैं तो फिर उन्हें फर्जी मुकदमा और साजिश के शिकार होकर जेल तक का सफर करना पड़ रहा है यह सच है कि साल 20 20 से अब तक बांसवाड़ा में आधे दर्जन अन्य संस्थान के पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे दर्ज हो चुके हैं और उन्हें जेल भी भेजा जा चुका है न्याय के लिए दर-दर भटक रहे अधिकृत पत्रकार फिर भी दबाव कि राजनीतिक में जिला प्रशासन द्वारा कोई सुनवाई नहीं की जाती है इससे साफ होता है कि या तो चाटुकारिता के गोद में बैठ कर पत्रकारिता करो या फिर सच दीखाकर  साजिश के शिकार होकर जेल की हवा खाओ क्योंकि बांसवाड़ा में यह सब जिला प्रशासन की नाक के नीचे सब कुछ हो रहा है इसके बावजूद भी इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सका इसकी शिकायत पत्रकारों द्वारा राजस्थान  राज्यपाल कलराज मिश्र और सूचना प्रसारण मंत्रालय और प्रेस काउंसलिंग ऑफ इंडिया तक की जा चुकी है फिर भी जिला प्रशासन सचेत नहीं हुआ और आखिरकार बांसवाड़ा में दो बड़े प्रिंट अखबार संस्थान के पत्रकारों द्वारा जानबूझकर छोटे संस्थान के पत्रकारों पर जरा सी बात पर अपनी मौकापरस्त पत्रकारिता जादू दिखाने में लगे हुए हैं कहते हैं ना जब बाहर ही खेत को खाए तो फिर खेत बेचारा क्या करें यह हाल बांसवाड़ा के वर्तमान पत्रकारिता का हो रहा है अगर यही चला तो आने वाले कुछ समय में एक आम आदमी को न्याय मिलना मुश्किलें नहीं बल्कि कठिन होगा क्योंकि जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के पत्रकारों को भी न्याय के लिए दर-दर ठोकरें खाने पढ़ती हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में लोकतंत्र चौथा स्तंभ किस दिशा में जाकर खड़ा रहेगा

 
साल 2020 में  तीन पत्रकारों पर फर्जी मुकदमा 
दो साल बाद हुआ दर्ज मुकदमा का चालान fir नंबर96/2020

साल 2020 पत्रकार द्वारा पत्रकार पर करवाया ब्लैक मेलिग का फर्जी मुकदमा 87/2022


साल 2021में भी

साल 2022 में पत्रकार द्वारा अपनी पत्नी के साथ हुई ठगी वो मामले में 166/2022 करवाया सबूत दिए डेढ़ माह  बाद भी कोई कारवाई नही मामला भी संगीन है रीट में 132 नंबर दिलाने के नाम पर 6 लाख की ठगी एक दिन बड़े स्सथान  द्वारा छोटी सी खबर चलाई बाद में अपडेट देना भूले।


डेढ़ महीने बाद वही महिला जो पत्रकार और उसकी पत्नी पर फर्जी मुकदमे दर्ज करवा रही है।उसका दो दिन में मुकदमा दर्ज बिना किसी सबूत के और अखबार की सुर्खियां बनती है अंदाजा लगाया जा सकता है की बांसवाड़ा के दो बड़े अखबार के पत्रकारो की पत्रकारिता किस कदर मोका प्रस्त की जा रही है।


किशन सेन 
प्रदेश सचिव
वर्किंग मीडिया जर्नलिस्ट
बांसवाड़ा 

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