13.2.23

विवाद की दिवार कब टूटेगी ?


'भईयां यह दीवार टूटती क्यों नहीं '  ?   ‘’टूटेगी भला कैसे अंबुजा सीमेंट से जो बनी है’’  हम  में  से बहुत लोगों ने टीवी पर  अंबुजा सीमेंट का यह विज्ञापन  बचपन में  देखा होगा  जहां दो भाई अलग होने के बाद घर के बीच एक दीवार बना देते हैं और बाद में उसे तोड़ने का प्रयास करते हैं I  कुछ ऐसी ही  दीवार इस वक्त हिमाचल प्रदेश प्रदेश में खड़ी हो गई है जहाँ  एक और अडानी  व्यापार समूह और दूसरी ओर स्थानीय ट्रक यूनियन खड़े हैं I हिमाचल प्रदेश  के  जिला सोलन के दाड़लाघाट एसीसी और बिलासपुर के बरमाणा  में बने अम्बुजा सीमेंट सयंत्र  की बात हो रही हैं I झगड़े की जड़  माल भाड़ा है, ट्रक यूनियन 10. 58  रूपए प्रति किलोमीटर प्रति क्विंटल  की मांग कर रहे हैं और दूसरी तरफ अडानी समूह  6 रूपए  प्रतिकिलोमीटर प्रति  क्विंटल देने को तैयार है I  ट्रक यूनियनो  का कहना कि वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से  जिसमें प्रदेश की  भौगोलिक स्थितियाँ  ,पेट्रोल की बढ़ती कीमतें , ट्रक चालको  की तन्ख्वाह, ट्रकों का रखरखाव  को ध्यान में रखकर ही उन्होंने यह  मांग की   हैं और समूह द्वारा दिया जा रहा किराया कम है  I

 

अडाणी समूह द्वारा दोनों संयंत्रों  का अधिग्रहण सितम्बर 2022  में किया गया जब वे घाटे में चल रहे थे और दिसंबर 15 , 2022 को दोनों   सीमेंट प्लांट बंद कर दिए गए  I अडाणी समूह का कहना है कि माल ढुलाई की कीमत राज्य सरकार की एक स्थायी समिति की सिफारिशों के अनुसार तय की गयी  हैं I प्रदेश सरकार इस  मसले को सुलझाने  को लेकर बैठके कर चुकी हैं जो बेनतीजा रही हैं I ट्रक संघ ने आगामी  20 फरवरी को महापंचायत रखी है I इसके अलावा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग परेशान और गुस्से में है, इनका जीवन यापन  सीमेंट संयंत्रों के चलने  से जुड़ा हुआ था I इसमें स्थानीय ईधन स्टेशनों के मालिक और कर्मचारी, स्थानीय कलपुर्जे दुकानदार ,मैकेनिक ,ढाबे वाले, चाय वाले कारोबार से जुड़े लोग परेशानी महसूस कर रहे हैं I यहां पर पर्यावरण और स्वच्छता का जिक्र कर लेना ठीक होगा इसमें स्वच्छता का पहलू ज्यादा जरूरी हो जाता है ,सीमेंट भट्टियाओ में जलाने  के लिए  कुछ   ठोस कचरे का उपयोग भी  किया जाता था  I 

 

जिला शिमला और सोलन के नगर पालिका के ठोस कचरे का का उपयोग सोलन के दाड़लाघाट  में और जिला मंडी और कुल्लू नगर पालिका के ठोस कचरे का उपयोग बरमाणा के अम्बुजा प्लांट में  किया जाता था I पिछले 50 दिनों से  अब  ठोस कचरा प्रबंधन का विकल्प खोजना मुश्किल हो रहा है I कुछ जरूरी  बातो  का उल्लेख करना ज़रूरी है जिसमें इस विवाद के आर्थिक  राजनीतिक और रणनीतिक कारण जुड़े हैं  I हिमाचल प्रदेश में  सीमेंट अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना में  ज्यादा कीमत पर बिकता है I सीमेंट पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है इसके साथ प्रदेश सरकार दो अन्य कर सीमेंट पर लगाती है जिसमें सड़क द्वारा मालवाहक कर और अतिरिक्त माल कर सीमेंट पर लगाया जाता है इसकी वजह से सीमेंट कंपनियां उसकी भरपाई ग्राहकों से वसूलती  हैं I सरकार इन करों के बारे में यह दलील देती है कि इसका उपयोग  राज्य में सड़कों के रखरखाव पर खर्च करती है  जो किस हद  तक सत्य  है  कहना मुश्किल है I राजनीतिक कारणों की चर्चा करें तो यूनियनों के  बड़े लीडर दोनों ही पार्टियों से संबंध रखते हैं I वे राजनीतिक पार्टियों को चुनावों के समय पैसा देते हैं और यूनियनों से जुड़े लोग दोनों ही पार्टियों के वोट बैंक हैं इसीलिए अभी तक सरकार यूनियनों की  मनमानी पर कठोर कदम लेती हुई नहीं दिखती जैसा कि हमने पूर्व में  पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की   कांग्रेस सरकार द्वारा पंजाब के ट्रक ऑपरेटर यूनियनों  को भंग कर मनमानी खत्म करने का फैसला चुनाव से पहले  देखा था I रणनीतिक कारणों की चर्चा करें तो नालागढ़ ट्रक यूनियन एशिया का सबसे बड़ा ट्रक यूनियन है और अपनी मनमानी के लिए जाना जाता है स्थानीय ट्रक यूनियन बाहर से  आने  वाले ट्रकों को राज्य में आने नहीं देते और यदि कोई ट्रक आ जाए तो उनको डरा कर वापस भेज देते हैं शायद यही कारण है कि पिछले 3 साल में 43 उद्योगिक  इकाइयां हिमाचल प्रदेश से उद्योग छोड़कर दूसरे राज्य में चली गई I जिसका नुकसान न केवल राज्य के लोगों को बल्कि राज्य को राजस्व स्तर पर भी उठाना पड़ा हालांकि सीमेंट की कीमतों को घटाने को लेकर दोनों ही पार्टियों के बड़े-बड़े नेता बयानबाजी कर चुके हैं पूर्व में उद्योग मंत्री रहे और वर्तमान में उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री सदन में और सदन के बाहर सीमेंट की कीमतों को कम करने की चर्चा कर चुके हैं I प्रदेश के लोगों को उनसे उम्मीद है कि वह इस पर जरूर ठोस कदम उठाएंगे I सीमेंट संयंत्रों का ऐसे समय पर बंद हो जाना जब राज्य में एक नई सरकार आई है पहाड़ी राज्य के लिए ठीक बात नही हैं,जहां वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सुखु  खुद यह स्वीकार चुके  हैं कि प्रदेश की आर्थिक हालात ठीक नहीं है   I इसमें ट्रक यूनियनो   और अडानी समूह दोनों को  अपना रुख नरम करते हुए बीच का रास्ता निकालने का प्रयास करना चाहिए और सरकार को दोनों के बीच जिम्मेदारी और जनता के प्रति कम कीमत पर सीमेंट उपलब्ध करवाने वाली की गई जवाबदेही की नैतिकता का  धर्म  याद रखना पड़ेगा ताकि जनकल्याण और व्यापार सुगमता सूचकांक जैसे दोनों महत्वपूर्ण विषयो पर  हम बेहतर पयदान  पर आ सके

पूरा मामला  एक  जनहित याचिका    के माध्यम से    5  फरवरी  को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष पहुँच गया है। राज्य सरकार   और  मुख्यमंत्री सुक्खू  के लिए यह बड़ी  परीक्षा है  उन्हें  खुद आगे आकर  अपने कुशल नेतृत्व  से  विवाद  की दीवार तोड़ने  के लिए मध्यस्था की पुरजोर कोशिश करनी चाहिए ताकि राज्य आर्थिक विकास की पटरी पर आ सकेI 

मनिंदर चौहान ' वर्मन '

10/02/2023



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