28.6.23

2024 चुनाव की डगर ....विपक्ष के लिए कितनी आसान कितनी मुश्किल?

 

Aman Anand-


जिस तरह 2024 का चुनाव पास आ रहा है, उसी तरह राजनीतिक हलचल तेज होने के साथ सियासी पारा भी बढ़ता जा रहा है | विपक्ष लगातार इस बात पर मंथन कर रहा है कि अगले साल होने वाले चुनाव में मोदी-योगी की जोड़ी को तोड़ा कैसे जाए | हाल ही में विपक्ष ने पटना में महाबैठक की जिसमें विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा विरोधी मोर्चे के गठन की रूपरेखा तैयार करने के लिए विचार-विमर्श किया। लगभग चार घंटे की लंबी बैठक के बाद, 17 विपक्षियों ने भाजपा को हराने के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव एकजुट होकर लड़ने और अपने मतभेदों को दूर करके एकजुट होकर काम करने का संकल्प लिया। हालांकि इस बैठक से केजरीवाल, अखिलेश, स्टालिन और मायावती जैसे विपक्ष बड़े चेहरे नदारद रहे | इस बैठक के बाद विपक्ष ने ऐलान किया कि अगली बैठक शिमला में होगी जिसकी अध्यक्षता कांग्रेस करेगी |  
2024 चुनाव को लेकर विपक्ष में असमंजसता की स्थिति बहुत ज्यादा है | विपक्ष में सभी एक से बढ़कर एक बड़े चेहरे हैं, चाहे वो पूर्व NCP अध्यक्ष शरद पवार हों, बसपा अध्यक्ष मायावती हों, केजरीवाल हों या कांग्रेस के नेता राहुल गांधी | सभी महत्वाकांक्षी दिखते हैं | सभी ने कभी सीधे तो कभी सांकेतिक तौर पर खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया है | एक वक्त पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी इस पद का दावेदार बताया गया पर फिलहाल उन्होंने विपक्षी एकता को मजबूत करने के नाम पर खुद को इस रेस से अलग कर लिया है |

विपक्ष में सभी दलों की अपनी अलग विचारधारा है, अलग सोच है पर फिलहाल बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए सभी ने अपनी विचारधारा और सोच से समझौता कर लिया है | सभी विपक्षी दलों के साथ आने का एक बड़ा कारण यह भी है कि इस सभी पार्टी के किसी न किसी नेता पर ED-CBI का शिकंजा कसा हुआ है, चाहे वह TMC के अभिषेक बनर्जी हों, AAP के मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन हों या शिवसेना के संजय राउत |

विपक्ष लगातार यह मुद्दा उठाता आ रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार लगातार सरकारी एजेंसियों का दुरूपयोग कर रही है | विपक्ष का यह आरोप है कि हर चुनाव से पहले मोदी सरकार विपक्ष के नेताओं पर ED-CBI के जरिए दबाव बनाती है और विपक्ष को कमजोर कर चुनाव जीतती है | अगर सीधे तौर पर देखा जाए तो राजनीति में भ्रष्टाचार का न होना उतना ही नामुमकिन है जितना दिल्ली की हवा में प्रदुषण | मेरे मानने में विपक्ष द्वारा उठाया गया सरकारी एजेंसियों के   दुरुपयोग का मुद्दा हो या अडानी का मुद्दा | विपक्ष के ये सभी मुद्दे बेहद निजी और स्वार्थ से परिपूर्ण नजर आते हैं | विपक्ष को यह समझना होगा कि अगर 2024 में उसे नरेंद्र मोदी से लोहा लेना है तो उसे जनता की नब्ज को टटोलना होगा | बढ़ती महंगाई, आसमान छूते पेट्रोल, सिलेंडर के दाम, युवाओं के बीच रोजगार की कमी जैसे उन मुद्दों को उठाकर जनता के बीच आना होगा जिससे उसका रोज का सरोकार है | नरेंद्र मोदी को हराने का ख्याब रखने वाले विपक्ष को जनता  दिल तक पहुंचना होगा |

2014 जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर आए तो मुस्लिम समुदाय के बीच यह नरेटिव बनाया गया कि कांग्रेस के सत्ता दूर होने के बाद अब मुस्लिम समुदाय को बीजेपी से खतरा होने वाला है पर हमारे बीच वो कहावत है न कि चावल को पतीले पर बनाओ तो वक्त भले ही थोड़ा ज्यादा लगे पर स्वादिष्ट जरूर लगता है | नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपना काम जारी रखा और 'तीन तलाक' जैसे बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर कड़ा कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं को सशक्त किया | हालांकि 'तीन तलाक' अभी भी एक बहस का मुद्दा है पर देखा जाए तो बीते 9 साल में नरेंद्र मोदी के प्रति मुसलमाओं में भय की जगह भरोसे ने जगह बनाई है |

निश्चित तौर पर 2024 चुनाव से पहले कई नए राजनीतिक समीकरण बनेंगे और बदलेंगे चाहे वह सत्ता पक्ष की ओर से हो या विपक्ष की ओर से हो पर सत्ता का सुख उसे ही मिलेगा जो जनता के दिलों पर राज करेगा | तो भाई अपना पारा हाई न करिए और आगे आगे देखिए होता है क्या ...वो कहते हैं न 'देख तमाशा कुर्सी का' |  

Aman Anand
Times Now Navbharat

No comments:

Post a Comment