सत्येंद्र कुमार
त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानाति, कुतो मनुष्य: अर्थात स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य देवता भी नहीं जानते, मनुष्य कैसे जान सकता है ?
आपने वो फ़िल्म देखी होगी जिसका एक बड़ा मशहूर गाना था "ठुकरा के मेरा प्यार... मेरा इंतकाम देखेगी । इस फ़िल्म का वास्तविक चित्रण आजकल देखने को मिल रहा है ।उत्तर प्रदेश की फिज़ा में एक बेवफा एसडीएम की बेवफाई की चर्चा जोरों पर है । मतलब अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का ! यह तराना आज लगभग हर वो शख्श गुन गुना रहा है जिसके सूख चुके जख्मों को फिर से एस डी एम साहिबा की बेवफाई वाले नए किस्से ने कुरेद दिया है । आज सोशल मीडिया में एक पति की दर्द भरी कहानी सभी की जुबानी चर्चा में शामिल हो चुकी है। सच के धरातल पर बेवफाई का नजारा ऐसा है कि एक पत्नी भक्त बेचारा सिसकता हुआ कह रहा है कि "अगर बेवफाओं की अलग कोई दुनिया होती... तो मेरी बीवी वहाँ की महारानी होती..!"
चारों तरफ शोर है, और सोशल मीडिया में उस बेवफा पत्नी के चरित्र का बेबाक वर्णन हो रहा है जो एक बड़ी पदाधिकारी है । दिल में चोट लगी पति आलोक मौर्या को और दर्द से कराहने लगे वे पत्नी भक्त, जो अपनी पत्नियों को सरकारी नौकरी या अधिकारी बनाने का ख्वाब लेकर तैयारी करवा रहे थे। आज बेवफाई के इस नए किस्से ने मुसीबत का ऐसा पहाड उन महिलाओं के सामने खड़ा कर दिया जो सपनो की उड़ान में अपने पतियों के भरोसे मचल रही थी । एक तरफ आज महिला सशक्तिकरण के इस युग में बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे स्लोगनों के जरिये देश का परिवेश बदलने का प्रयास चल रहा है वहीं दूसरी तरफ एस डी एम साहिबा के किस्से ने लोगों को दिलों में एक नई पटकथा का संवाद पिरोना शुरू कर दिया है । इस किस्से ने चर्चाओ के बाजार में उठे सवाल पर बवाल पैदा कर दिया है कि "बीबी मत पढ़ाओ वर्ना हश्र देख रहे हो भाई" ! आखिर एक ही मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है वाली कहावत को बतौर पत्नी एस डी एम साहिब ने लोगों के बीच साबित कर दिया !
दर दर भटकता दो बच्चियों का बाप आज भविष्य के ताने बाने में ठीक वैसे ही उलझकर रह गया है जैसे दहेज प्रताड़ना के झूठे किस्सों में कई परिवार उलझे हुए बेचारगी से घूम रहे हैं । बेवफाई के इल्ज़ाम के लिए पहले से ही बदनाम नारी जाति के लिए नफ़रत की जो लहर आज फिर हिलोरें मारने लगी हैं उसका सारा श्रेय एस डी एम साहिब को जाता है , लेकिन साथ ही इसका खामियाजा उन औरतों को भी भुगतना पड़ सकता है जिनके लिए उनका घर परिवार ही सब कुछ होता है। तमाम उदाहरण ऐसे भी मौजूद हैं जहाँ पति और परिवार की खुशी के लिए बड़े ओहदे की नौकरी को भी लात मार दी है वफ़ा की देवियों ने !समाज में मान सम्मान के साथ जीने का हक दिलाने वाली अर्धांगिनियों की बदौलत ही सभ्य समाज में पुरुष ने नारी को पूज्यनीय का दर्जा देकर खुशहाल जीवन जीने की परिकल्पना को साकार किया है। सदियों से एस डी एम साहिब जैसे बेवफाई के किस्से मशहूर जरुर है- मगर "छोड़ेंगे न हम तेरा साथ ओ साथी मरते दम तक का तराना भी मशहूर है" ! क्यों किसी को वफ़ा के बदले वफ़ा नहीं मिलती जैसा तराना सवाल बनकर भले आज की फ़िज़ाओं में गूंज रहा है लेकिन वफ़ा की देवियों की सुरीली आवाज में आज भी यह गीत सुनाई दे रहा है कि " तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है " !
आज पति चपरासी और पत्नी एस डी एम वाले किस्से को लेकर सोशल साईट पर जबरदस्त ज़ुबानी फाइट चल रही है और लोग कहने लगे हैं कि "तोता मैना की कहानी तो पुरानी और पुरानी हो गयी" ! इस किस्से ने समाज के भीतर, भीतरखानों में बैठे भेड़ियों को आज सवाल पूछने का मौका दे दिया है कि क्या पतियों को अपनी पत्नियों को उच्च शिक्षा नहीं दिलानी चाहिए ? क्या वास्तव में वक्त के साथ औरत बदल जाती है ? इस पर समाज ने फिर नये सिरे से मंथन करना शुरु कर दिया है। एसडीएम साहिबा की बेवफाई को किसी भी महिला सामाजिक संगठन ने समर्थन नहीं दिया है लेकिन हकीकत के धरातल पर चपरासी पति की विवशता ने सभी के दिलों मे हमदर्दी का तूफान खड़ा कर दिया है । कल क्या होगा यह तो नहीं पता लेकिन इस किस्से ने आज हर एक पति के मन मे एक सशंकित भाव पैदा कर दिया है जो अपनी पत्नी को आईएस पीसीएस की तैयारी करवा रहे हैं । एक की ग़लती ने तमाम लोगों के भविष्य को गर्त के किनारे लाकर खड़ा कर दिया है । सरकार द्वारा चलाए जा रहे महिला सशक्तिकरण अभियान का ज्वलंत उदाहरण बनकर उभरी हैं एस डी एम साहिब ! दूसरी तरफ अपनी कुर्बानी देकर और कर्ज लेकर अपनी पत्नी को आसमान की बुलन्दी पर पहुँचाने वाले चपरासी पति की बेबसी बयां कर रही है कि ..
"पढ़ रहा हूँ मैं भी इश्क की किताब ! अगर बन गया वकील तो, बेवफओं की खैर नही.."
No comments:
Post a Comment