1.12.23

एक थे वीपी सिंह !

विक्रम बृजेंद्र सिंह-
 
वीपी सिंह की पुण्यतिथि... वो नवें दशक का उत्तरार्द्ध था और इंदिरा गांधी की शहादत के बाद 'चक्रवर्ती' राज कर रही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चौतरफा घेर लोकनायक जयप्रकाश नारायण की ही तरह लगभग 'जननायक' बन चुके थे गहरवार ठाकुर ! पूर्व रियासत मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह । कांग्रेस और राजीव गांधी से बगावत की थी उन्होंने। इसलिये कइयों ने उन्हें जयचंद-मीरजाफर और ब्रूटस भी कह डाला !...बावजूद वीपी का जादू पूरे हिंदुस्तान में सिर चढ़कर बोला।


१९८९ में आमचुनाव हुए। वीपी सिंह का 'जनमोर्चा' जीता और  राजीव गांधी की कुर्सी खींच वे देश के सातवें प्रधानमंत्री बने। करीब साढ़े ११ माह पीएम की कुर्सी पर रहे वे। इस दौरान वीपी की सियासत और (दूरगामी) फैसलों ने उन्हें अत्यंत विवादित बना दिया। सामाजिक न्याय का पहरुआ बनकर 'कमंडल' को प्रभावहीन करने को 'मंडल' (मंडल कमीशन की सिफारिशें) का 'ब्रह्मास्त्र' इस्तेमाल कर डाला उन्होंने।..और फिर नायक से खलनायक बन गए वीपी सिंह ! दिल्ली से लेकर इलाहाबाद तक देशव्यापी छात्र आंदोलन। सैकड़ों छात्रों ने आत्मदाह कर लिया। सवर्ण और अपने ही सजातीय वर्ग में वीपी के पुतले और चित्र, जूतों तले रौंदे गए। राममंदिर आंदोलन में जब बाबरी मस्जिद पर रामभक्तों ने भगवा फहराया तो वीपी का 'स्टैंड' भी विवादित रहा।

नतीजा उनकी वीपी सरकार से भाजपा ने समर्थन खींच लिया और ११ माह पुरानी वीपी सरकार चली गई। इस बीच तमाम राजनीतिक व सामाजिक सुधार लागू करने की कोशिशों के मध्य वे कभी 'गोर्बाचेव' नजर आए तो कभी बीपी मंडल! फिलहाल बस वही ११ महीने चर्चा में रह गए। कुर्सी से उतरे तो फिर तकरीबन १५ साल लगभग गुमनामी में बीते राजा मांडा के। इस दौर में रक्त कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों से जूझते हुए वे किसानों के हितों की लड़ाई लड़ने भी सड़क पर उतरे लेकिन मीडिया और न ही राजनीति में कोई कोलाहल पैदा करने में वे कामयाब हो सके। दुर्भाग्य ! उनके जिस मंडल के तीर ने देशी सियासत की दिशा बदली उसने उन्हें अपनी ही बिरादरी में 'खलनायक' बना दिया। वो पिछड़ा और अनुसूचित वर्ग भी उन्हें कभी वो स्थान नहीं प्रदान कर सका जिसके कि वीपी सिंह हकदार थे। वीपी जैसे भी थे। जो भी थे।...लेकिन भ्रष्ट नहीं थे। ईमानदार थे।

सीएम रहे यूपी के तो मुलायम सिंह यादव तक की 'हिस्ट्रीशीट' खुल गई थी। 'एनकाउंटर' के डर से उन्हें चौधरी चरण सिंह की ओट लेनी पड़ी। वीपी के यूपी राज में डकैतों का ऐसा आतंक!.. कि अपने ही भाई हाईकोर्ट जज सीएसपी सिंह को उन्होंने खो दिया था। इसके बाद सौगन्ध ली छह माह में दस्यु उन्मूलन करने की। नहीं कर पाए तो सीएम की कुर्सी छोड़ दी।आज उन्हीं वीपी सिंह की १५वीं पुण्यतिथि है। सामाजिक न्याय का पहरुआ मानने वाले इक्का दुक्का दल संक्षिप्त चर्चाओं व गोष्ठियों सा आयोजन करके 'राजा साहब' को याद भी कर रहे हैं लेकिन अधिकांश वर्गों व समुदायों में वे उपेक्षित ही हैं। ..ये अलग बात है कि अच्छे कवि व चित्रकार रहे पूर्व प्रधानमंत्री को जब भी कवि मंच मिला तो उन्होंने यही सुनाया- 'मुफलिस से चोर बन रहा हूं। पर इस भरे बाजार में चुराऊं क्या। जिन्हें छोड़ मैं मुफलिस हो चुका हूं।।'

लेखक - विक्रम बृजेंद्र सिंह

स्वतंत्र पत्रकार हैं। संप्रति 'दोपहर का सामना' में संवाददाता का दायित्व।

संपर्क - ९४१५०७७३७५ (मोबाइल)

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