25.8.24

अजयमेरु प्रेस क्लब की साहित्यधारा में बिखरे विभिन्न विधाओं के रंग

 चिता की आग में अब तक धरा की धूल जलती है

अजमेर। अजयमेरु प्रेस क्लब की अगस्त माह की "साहित्यधारा" शनिवार को क्लब के सभागार में सम्पन्न हुई। रचनाकारों ने काव्य की विभिन्न विधाओं के रंग बिखेर कर कार्यक्रम का माहौल खुशनुमा बना दिया। इस बीच बालिकाओं व युवतियों पर लगातार हो रही यौन उत्पीड़न के घटनाओं का दर्द भी रचनाकारों ने अपनी कविताओं में प्रकट किया। कार्यक्रम दो चरणों में हुआ। शुरुआत रजनीश मसीह के मुक्तकों से हुई। 

उन्होंने "मिलाप से जुदाई की फिक्र" तथा "हासिल न होता कुछ करते फरियाद नहीं" पंक्तियों से से दाद बटोरी। कुलदीप खन्ना ने "सोचा इस कागज़ में कुछ रंग भर दूं" तथा "महिला यौन उत्पीड़न का दर्द बयान करती रचना "सिसक सिसक कर फफक फफक कर पड़ी सरेआम" कविता सुना ऐसी घटनाओं के प्रति अपनी संवेदना प्रकट की। प्रतिभा जोशी ने "हम त्यौहार और ये गरीबी", मोहिनी देवी भाट ने माँ शारदे की स्तुति के अतिरिक्त "रिमझिम सावन" तथा "झूमे बादल बन बाराती" गीतों के माध्यम से सावन के भीगेपन का एहसास कराया। वहीं रमेशचंद्र भाट ने अपनी कविता "कवि वही है" के माध्यम से जहां कवियों के मनोभाव प्रस्तुत किये, तो अपने गीत "हे भारतमाता की संतानों आजादी को जानो" के माध्यम से देशभक्ति का संदेश दिया।

दीपशिखा क्षेत्रपाल ने अपनी रचनाओं "दोस्ती" व "ज़िन्दगी" सुना कर वाहवाही लूटी, तो पुष्पा क्षेत्रपाल ने बारिश में भीगे अल्फ़ाज़ से सखी सहेलियों को पुकारा और कविता "कोख की आवाज़" के माध्यम से बेटियों के मर्म का एहसास कराया। रंजना शर्मा राजस्थानी भाषा के गीत "बदली बरसे क्यों न रे" के माध्यम से जहां लोक छटा बिखरने में कामयाब हुईं, वहीं उनकी रचना "चिता की आग में अब तक धरा की धूल जलती है" ने नारी उत्पीड़न के दर्द को दिलों में जगा दिया। जयगोपाल प्रजापति ने "ख्वाब" शीर्षक की रचना से जहां प्रेम की ख्वाहिशें ज़ाहिर कीं, वहीं उनकी प्रेम ग़ज़ल "तू रूबरू कभी आ तो सही" भी सराही गई।

सुनील कुमार मित्तल की रचनाएं "एक आदत सी बन गई हो तुम" तथा " तेरी मोहब्बत में हम तो आहें भरते हैं" ने जहां गुदगुदाया, वहीं ब्यावर से आये चंद्रभान सिंह की हास्य रचना "दाढ़ का दर्द"  ने लबों पर मुस्कान भर दी। उनके मुक्तक "आदमी की अक्ल से अब डर रहा है आदमी" ने श्रोताओं के मन पर गहरी छाप छोड़ी। डॉ. चेतना उपाध्याय ने अपनी कविता "स्वतंत्रता दिवस पर हम भी प्रण कर लें" के माध्यम से पाश्चात्य के अंधानुकरण को त्याग कर विशुद्ध भारतीय बने रहने की सीख दी, तो दूसरी ओर ज़िन्दगी पर अपनी कविता के माध्यम से जीने के ढंग सिखाये। कार्यक्रम का संचालन कर रहे अमित टंडन ने अपनी नज़्म "मेरे खामोश लफ़्ज़ों को जुबां दे दो, ज़िन्दगी को एक हसीं दास्तां दे दो" सुना कर तालियां बटोरीं।

कार्यक्रम के अंत में मशहूर शायर कोटा निवासी शकूर अनवर के ग़ज़ल संग्रह "बर्फीली चट्टानें" का वितरण साहित्यधारा में उपस्थित रचनाकारों को किया गया। शकूर अनवर अजयमेरु प्रेस क्लब की साहित्यधारा में कभी उपस्थित नहीं हो सके, परन्तु समाचारों के माध्यम से वह इस आयोजन के प्रशंसक हैं इसलिए उन्होंने यह तोहफा रचनाकारों के लिए भिजवाया। अंत मे अमित टंडन ने सभी का आभार व्यक्त किया।


No comments:

Post a Comment