19.10.07

नारको टेस्ट से बाहर आएंगे तेरे पाप, अपन की भड़ास निकल गई....

हरामजदगी के दिन हैं...
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मूड आफ होने के ढेर सारे कारण होते हैं और कभी कभी कोई कारण नहीं होता। दस-पंद्रह दिन में एक बार ऐसा मूड आफ होता है कि खुद पर गुस्सा आने लगता है और घृणा होने लगती है---क्या साला, यह लाइफ है। खाना-कमाना-हगना-मूतना-नहाना-पहनना-नौकरी-चाकरी-ज्ञान-अज्ञान-ग्लैमर-हकीकत-बतकुच्चन....। वैसे, इससे अलग हो भी क्या सकता है। हर कोई चीज थोड़े दिनों में रूटीन लग सकती है बशर्ते उसमें कोई कनविक्शन न हो। कनविक्शन अब किस चीज में है? पता नहीं किस चीज में है। लेकिन आदमियों की भीड़ मुझे परेशान करती है। भीड़ खुश हो, प्रसन्न हो तो कोई बात नहीं, सबके सब साले बौराए हुए से जाने कहां गांड़ मराने भागते रहते हैं। उनमें से मैं भी हूं। जब कोई गलत तरीके से गाड़ी ओवटेक करता है या दाएं-बाएं से गुजरता है तो कुत्ते की तरह भौंकने का मन करता है, जी में आता है काट लूं लेकिन तब तक अंदर का इंसान जगता है....अबे साला तू भी, दिल्ली में तो पगलाए हुए लोग रहते ही हैं, तू भी गांड़ मराने लगा यहां आकर। रोज खबरें छपती हैं---बाइक वालों ने देर तक हार्न दिया, पास न मिला तो कार वाले भाईसाहब को गिराकर इतना लतियाया की उनके परान निकल गए। ऐसे गुस्से दिल्ली वालों के नाके पर होते हैं। तो बात कर रहा था मूड आफ का, सुबह इंडिया टीवी देख रहा था, चंडीगढ़ में दो लड़के एक पुलिस वाले को पीट रहे हैं और भाग रहे हैं। पुलिस ने दोनों का पता लगा लिया है। यह सीन बार-बार रिपीट कर रहे थे- पुलिस वाले की उसी के डंडे से पिटाई और फिर भागना। अब सोचिए, पुलिस वाले उनको पकड़ेंगे तो कितना पेलेंगे। सालों के गांड़ में डंडा घुसेडकर उलटा लटका देंगे थाने में फिर नाक से इतना पानी पिलाएंगे कि फेफड़ में जाकर फंस जाए और छटपटाते हुए आपको जीने से ज्यादा मौत में आनंद दिखने लगे। मेरठ में ऐसे कई टार्चर देखे थे। कइयों की तो मौत भी हो गई। रात में पीकर सीओ बताते थे, अगर न मारें तो साले कुछ उगलें न और उन्हें पुलिस से डर भी न लगे। लेकिन जो भी, जिस तरह पुलिस इलाहाबाद में सरेआम एक अपराधी के सरेंडर करने के अनुरोध के बावजूद गोली मारती है वह दिल दहला देने वाला था। बात यह नहीं है कि अपराधियों को मारा जाना चाहिए या नहीं बात यह है कि लोकतंत्र में इसी तरह से हर संस्थाएं अपने-अपने अधिकार के परे कुछ तानाशाही भरे अधिकार लेने लगें तो लोकतंत्र का मां चुद जाएंगी। फिर पाकिस्तान और इराक बनने में देर नहीं लगेगी। अभी तक हम जो आराम से बोल-गा-खा लेते हैं, वह सब खत्म हो जाएगा।
मूड आफ होने के कारणों की तलाश में फिर पीछे चलता हूं। अविनाश जी के साथ कुरतुलएन हैदर के आवास पर गया था। उनके इंतकाल की सूचना अविनाश जी से ही मिली। वह वहां एनडीटीवी के लिए लाइव रिपोर्ट कर रहे थे। उनको फोन आया तो साथ मैं भी हो लिया। काफी देर तक रहा। हम लोग जहां रहते हैं वहां से बस थोड़ी ही दूर सेक्टर २१ में उनका घर था लेकिन हममें से इससे पहले किसी को पता न था कि इतनी महान लेखिका यहीं रहती हैं। यही है अपने देश में साहित्यकारों की कद्र। जाने कितने बड़े पुरस्कार पाने वाली इस लेखिका का अंत कितना गुमनामी में गुजरा, इसके लिए मीडिया व सिस्टम दोनों को कोसा जाना चाहिए। मुन्ना भाई जमानत पर कब छूटेंगे, इसके लिए चार-चार रिपोर्टर लाइव करते हैं, संजू की गाड़ी के साथ उसकी प्रेमिका को फोकस में लेकर स्पीडी लाइव रिपोर्टिंग होती है, इस प्रोग्राम पर घंटों खेलते हैं लेकिन देश और समाज को अपने योगदान से समृद्ध बनाने वाले साहित्यकारों को कौन पूछता है।
मूड आफ होने के तीसरे कारण पर जाता हूं....लाख चाहने के बावजूद लड़कियां और औरतें मेरे सपने में आना बंद नहीं हो रहीं। अब कल की ही लीजिए, रात में एक उम्रदराज महिला सपने में आई। सपना बढ़ता गया तो पता चला कि वे भी एक ब्लागर हैं, सपना थोड़ा और परवान चढ़ा तो उन्होंने खुद का परिचय बताते हुए कहा कि मैं तो भड़ास की भौजी हूं। मैं हक्का-बक्का। नींद टूटने पर लगा कि ये भड़ास की भौजी कौन हैं? खैर, नाम बताऊंगा लेकिन होली से ठीक पहले। अभी जरा मैं तड़ लूं, भौजी इस लायक भी हैं कि नहीं उन्हें भड़ास की भौजी बनाया जाए। परेशानी इस बात की है कि मैं चाहता हूं कि सपने में अच्छी चीजें आएं लेकिन आती हमेशा गंदी चीजें हैं। ये जो फीमेल हैं न, इनके बारे में मेरी धारणा बहुत साफ है, दूर से देखो, पास जाओगे तो फंसोगे। लेकिन पास जाए बिना रहा नहीं जाता, दूर से देखने पर मजा नहीं आता। अजीब द्वंद्व है, संभवतः आज से नहीं जमाने से है। उम्मीद है कि आदम और हव्वा के इस द्वंद्व पर अविनाश जी जरूर प्रकाश डालेंगे। साला, उन दोनों को मना किया गया था कि फल न खा लेना। इस फल को कभी सेव की शक्ल में तो कभी दिल की शक्ल में दिखाया जाता है लेकिन उन दोनों ने माना नहीं और उसका पाप हर नौजवान भोगता है। जाने कितने लोग प्रेम में पागल होकर भागते हैं, मारे जाते हैं, तबाह होते हैं, तबाह करते हैं.....। बावजूद, मीठा फल को खाना बंद नहीं होता। एक नौजवान मित्र ने मुझे भी उकसाया। आरकुट पर फोटो लगाकर सिद्ध और गिद्ध गुरु की तरह बैठे रहोगे तो कुछ नहीं होगा। लड़कियां पटाने के लिए फर्जी नाम से कुछ साइट बनाओ। उसके चक्कर फंसकर कइ एक फर्जी साइट बनाकर सर्च के बाद पचासों लड़कियों को मैसेज और फ्रेंडशिप आफर कर आया लेकिन ससुरी किसा का जवाब भी नहीं आया। दरअसल, कुछ लोगों की किस्मत ही खराब होता है। वे भगवान के घर से जब चले थे तो उनकी किस्मत गदहा के लंड से लिखी गई थी। संभवतः उन्हीं में से मैं भी हूं। तो, फिर कसम खाता हूं (और इसे भी टूटना है)कि इन लड़कियों के चक्कर में नहीं पड़ूंगा और किसी कीमत पर इन्हें सपने में नहीं आने दूंगा। मोबाइल में जितने भी लड़कियों के नंबर फीड हैं सबको उड़ा दूंगा ताकि दो पैग लगाने के बाद उन्हें फोन न करने लगूं। इसी तरह अपने हाईस्कूल-इंटर के दिनों किए गए उस प्रतिज्ञा पर फिर पूरी तरह अमल करूंगा कि अगर सामने स्त्री दिख जाए तो फौरन निगाह झुका लो वरना पाप का मन में प्रवेश हो जाएगा और चंचल पानी मन उस पाप को दिल तक पहुंचाएंगा और हरामजादा दिल उस पाप संदेश को दिमाग तक पहुंचाएंगा और कंठित दिमाग उस पाप संदेश पर अमल करने की साजिशें शुरू करेगा और माधड़चोद साजिशें ऐसी कि अमल करो तो फंसो, न करो तो परेशान रहो।

खैर, इतना सब भड़ास निकालने के बाद में मेरा मूड अब कुछ हलका हो गया है लेकिन फटने इस बात से लगी है कि यह सब जो लिख दिया है उसे लोग पढ़ेंगे तो मेरे बारे में क्या धारणा बनाएंगे? इतना सीनियर पत्रकार और इतनी ओछी हरकतें? लेकिन मुझे मालूम है पढ़ने वालों, तुम लोगों ने भी कम पाप नहीं किए हैं, पूरे वाले पापी रहे हो, भेद न खोलो तो वो अलग बात वरना तुम्हारे काले दिल में जो राज दफ्न हैं, अगर उसको नारको टेस्ट के जरिए बाहर ला दिया जाए तो उपर लिखा हुआ मेरा लेख रामचरित मानस की पंक्तियां लगने लगेंगी और तुम्हारा बका-लिखा हुआ राज अब तक का सबसे सनसनीखेज खुलासा....औरतें मुंह पर हाथ रखकरे कहेंगी---हाय दइया,,,इ मुंहफुकवना, देखने में तो बड़ा शरीफ लगता है लेकिन ये ये धतकरम किए है, भगवान इसको कोढ़ी बनावे।
तो भाइयों, पढ़ो और मजा लो, अपने भेद मत खोलना वरना कोढ़ी बन जाओगे।..... हा .....हा ....हा ....हा ....हा ...हा ....हा



जय भड़ास
यशवंत सिंह

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