19.10.07
झुग्गीवाला देख रहा है, साठ लाख का गेट....
((कैलाश गौतम का फैन हूं मैं. अब वे तो नहीं रहे लेकिन उनके लिखे को कोई कैसे भूल पाएगा, खासकर मेरे जैसा खांटी देहाती आदमी। हर पल मन उसी गांव में रहता है जहां इंटर तक पढ़ाई की। कैलाश जी को पढ़ते हुए लगता है जैसे वे गांव में चौपाल पर बैठकर लाइव लिख रहे हों और उसे प्रस्तुत भी कर रहे हों। तब मैं अमर उजाला बनारस में था। मेरे मित्र गीतेश्वर का पुराना जान-पहचान था कैलाश जी से। या यों समझिए कि कैलाश जी ने गीतेश्वर को पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में काफी सहारा दिया था। गीतेश्वर उसे कैसे भूल सकते थे। जब उनसे कैलाश जी का जिक्र छेड़ो तो वह बर्राट की हुई जाने कितनी कविताएं तुरंत सुना देते थे। तो मैं और गीतेश्वर, नौकरी वाली रात की पाली निपटा कर एक साथ चल पड़े, कैलाश जी से मिलने। डीएलडब्लू पहुंचे, जहां कवि सम्मेलन था। कैलाश जी से देर तक बतियाए। बस वही मुलाकात रही मेरी लेकिन उनके लिखे से बहुत पहले से मेरी मुलाकात है। उनके बारे में जब थोड़ा डिटेल में जाना तो लगा, वाकई मर्द आदमी था। बेलाग जीता था, लिखता था और बोलता था। परोपकार और प्रेम तो जैसे उनके पोर-पोर में बसा हो। तो लीजिए...कैलाश भाई की कुछ कविताओं का मजा लीजिए.....यशवंत))
सौ में दस की भरी तिजोरी
नब्बे खाली पेट
झुग्गीवाला देख रहा है
साठ लाख का गेट।
बहुत बुरा है आज देश में
प्रजातंत्र का हाल
कुत्ते खींच रहे हैं देखो
कामधेनु की खाल
हत्या-रेप-डकैती-दंगा
हर धंधे का रेट।
बिकती है नौकरी यहां पर
बिकता है सम्मान
आंख मूंद कर उसी घाट पर
भाग रहे यजमान
जाली वीजा पासपोर्ट है
जाली सर्टिफिकेट।
लोग देश में खेल रहे हैं
कैसे कैसे खेल
एक हाथ में खुला लाइटर
एक हाथ में तेल
चाहें तो मिनटों में कर दें
सब कुछ मटियामेट।
अंधी है सरकार - व्यवस्था
अंधा है कानून
कुर्सीवाला देश बेचता
रिक्शेवाला खून
जिसकी उंगली है रिमोट पर
वो है सबसे ग्रेट।
जैसी नेतागीरी है जी वैसी अफसरशाही है
सिर्फ झूठ की पैठ सदन में सच के लिए मनाही है
चारों ओर तबाही भइया
चारों ओर तबाही है।
संविधान की ऐसी-तैसी करनेवाला नायक है
बलात्कार अपहरण डकैती सबमें दक्ष विधायक है
चोर वहां का राजा है
सहयोगी जहां सिपाही है।
जो कपास की खेती करता उसके पास लंगोटी है
उतना महंगा जहर नहीं है जितनी महंगी रोटी है
लाखों टन सड़ता अनाज है
किसकी लापरवाही है।
पैरों की जूती है जनता, जनता की परवाह नहीं
जनता भी क्या करे बिचारी, उसके आगे राह नहीं
बेटा है बेकार पड़ा है
बिटिया है अनब्याही है।
जैसी होती है तैय्यारी वैसी ही तैय्यारी है
तैय्यारी से लगता है जल्दी चुनाव की बारी है
संतो में मुल्लाओं में
भक्तों की आवाजाही है।
देख करके बौर वाली
आम की टहनी
तन गये घुटने कि जैसे
खुल गयी कुहनी।
धूप बतियाती हवा से
रंग बतियाते
फूल-पत्तों के ठहाके
दूर तक जाते
छू गयी चुटकी
हंसी की
हो गई बोहनी।
पीठ पर बस्ता लिये
विद्या कसम खाते
जा रहे स्कूल बच्चे
शब्द खनकाते
इस तरह
सब रम गये हैं
सुध नहीं अपनी।
राग में डूबीं दिशायें
रंग में डूबीं
हाथ आयी ज़िन्दगी के
संग में डूबीं
कल
उतरने जा रही है
खेत में कटनी
कुछ भी बदला नहीं फलाने!
सब जैसा का तैसा है
सब कुछ पूछो, यह मत पूछो
आम आदमी कैसा है।
क्या सचिवालय क्या न्यायालय
सबका वही रवैया है
बाबू बड़ा न भैय्या प्यारे
सबसे बड़ा रुपैया है
पब्लिक जैसे हरी फसल है
शासन भूखा भैंसा है।
मंत्री के पी. ए. का नक्शा
मंत्री से भी हाई है
बिना कमीशन काम न होता
उसकी यही कमाई है
रुक जाता है, कहकर फौरन
`देखो भाई ऐसा है'।
मन माफिक सुविधायें पाते
हैं अपराधी जेलों में
कागज पर जेलों में रहते
खेल दिखाते मेलों में
जैसे रोज चढ़ावा चढ़ता
इन पर चढ़ता पैसा है।
गुपतेसरा ने खोली है दुकान गाँव में
काट रहा चाँदी वह बेईमान गाँव में।
गाँजा है, भाँग है, अफीम, चरस दारू है
ठेंगे पर देश और संविधान गाँव में।
चाय पान बीड़ी सिगरेट तो बहाना है
असली है चकलाघर बेज़ुबान गाँव में।
बम चाकू बंदूकों पिस्तौलों का धंधा
हथियारों की जैसे एक खान गाँव में।
बिमली का पिट गिरा कमली का फूला है
सोते हैं थाने के दो दीवान गाँव में।
खिसकी है पाँव की ज़मीन अभी थोड़ी सी
बाकी है गिरने को आसमान गाँव में।
सूखा है पाला है बाढ़ है वसूली है
किसको दे कंधे का हल किसान गाँव में।
गुपतेसरा गुंडा है और पहुँच वाला है
कैसे हो लोगों को इत्मीनान गाँव में।
((साभारः जिस भी साइट से चोरी हुआ हो, एक का होता तो नाम लिख देता लेकिन दो के घरों से चोरी की हो तो किस किस का नाम लिखूं, साथ में दूसरे वाले घर ने खुद ही कहीं से चोरी से उठा रखा है....))
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