कल देर में घर पहुंचा। नई बात यह है कि बहुत दिनों बाद रात में टीवी खोला। १० साल पहले जब कानपुर में रंगीन टीवी लाया था तो घर में घुसते ही टीवी शुरू और घर से बाहर निकलते हुए बुझे मन से टीवी बंद। इन दिनों टीवी पर चूतियापा बढ़ जाने से या कहिए टीवी से मन ऊबने से सामने बैठने की इच्छा नहीं होती। एक तो आफिस में कंप्यूटर पर आंख फोड़ने के बाद टीवी के सामने आंखों की ऐसी-तैसी कराने की बिलकुल इच्छा नहीं होती। दूसरे, अगर कोई बहुत अच्छा पोरगराम आ जाए तो देखने का मन भी करता है। जब से समाचार चैनलों पर सांप, बिच्छू और भूत-प्रेत नुमा प्रोग्राम शुरू हुए हैं तबसे तो और भी टीवी से चिढ़ हो गई। रही फिलिम-सिलिम की बात तो अब उन्हें देखने का मन नहीं करता। नई फिल्में देखने की इच्छा होती है तो उसके लिए सिनेमाहाल जाने का टैम नहीं मिल पाता। तो कह रहा था कि कल टीवी खोला तो जी पर सारेगामापा में लालू मंचासीन थे।
वाह लालू, बहुत खूब लालू, कीप इट अप लालू....
इसके पहले एक खबर जागरण में ही छपी थी कि लालू आजकल परमाणु करार के बवाल से दूर कल्चरल प्रोग्रामों में लगे हैं और खुद की टीआरपी बढ़ाने में जुटे हैं। मसलन उन्होंने अपने गाजीपुर वाले वीर अब्दुल हमीद के प्रपौत्र को एक समारोह में नौकरी दिया। उसी तरह तात्या टोपे के खानदान वालों पर करम दिखाया। टीवी के गीत-गाने वाले प्रोग्रामों में शरीक हो रहे हैं। टीवी पर लालू को देखकर अच्छा लगा। वैसे, टीवी पर जिस भी चैनल पर लालू को मैं देखता हूं, वो मुझे अच्छा लगता है। लालू कभी हेलीकाप्टर बाढ़ग्रस्त इलाके की सड़क पर उतार देते हैं और देहातियों से बातें करते हैं तो कभी मुंबई में लचके मोर कमरिया जैसे गीत-संगीत के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।
मजेदार शो था। ज्यादातर प्रतिभागियों ने पूरब की लैंग्वेज से जुड़े फिल्मी गानों को गाया। पाकिस्तान से आए बालक ने जब ....आरा हिले छपरा हिले ....लचके जब कमरिया तो सारा.....सुनाया तो लालू के चेहरे पर सहज मुस्कान तैर गई। मुझे भी मजा आया। बहुत दिनों बाद सुने भाई। जब बचपन में गांव में था तो उन दिनों शाम ढलते ही पसियाने की तरफ से एक आवाज आया करती थी जिसे मैं बड़े गौर से सुनता था.....भंवरवा के तोहरा संग जाई.....। बाद में पता चला कि भोजपुरी में यह मृत्युगीत जमाने से गाया जाता रहा है। आजकल रात में कभी दोस्तों-मित्रों की जुटान हुआ करती है तो मैं भी यही सब गाया करता हूं जो बचपन में सुना था। वाकई, गाना-बजाना बिलकुल सहज बना देता है आदमी बशर्ते वह अव्वल दर्जे का हरामजादा न हो। तो लालू जी के शो में सेट पर बकरी, खटिया, पेड़ जैसे चीजें दिख रही थीं जिससे पूरा सेट देसज दिख रहा था। हरेक प्रतिभागियों ने लालू से सवाल किए...एक लड़की ने पूछा, आपको शंकर जी ने दर्शन दिया था? लालू ने कहा- हां दिया था लेकिन सपने में, भोर में चार बजे के लगभग। कहा था कि मास-मछरी छोड़ दो। तो छोड़ दिया। लेकिन जीभ पर कंटरोल करना बड़ा मुश्किल होता है। एक दिन खाने का मन करने लगा तो रबड़ी से कहा कि अरे, शंकर जी ने तो मास-मछरी छोड़ने के लिए कहा था, अंडा छोड़ने के लिए थोड़े न कहा था। आज अंडा बनाओ। बाद में अंडा खाने से मन भी उचट गया और उसे खाते समय मवाद जैसा लगने लगा तो उसे भी छोड़ दिया। पाकिस्तान से आए बालक ने लालू से पूछा कि मैंने आपकी स्टाइल में बाल संवारने की कोशिश की तो बाल खड़े हो गए, कैसे सेट करते हैं आप? लालू ने कहा- दिल्ली आना, अपने बारबर से सेट करा दूंगा।
पूरा प्रोग्राम मैं देखता रहा। मजा आ गया। कई गाने चले...पान खाए सैंया हमार, सांवरी सूरतिया होठ लाल लाल..., चलत मुसाफिर के मोह लियो रे पिजड़े वाली मुनिया....बहुत दिनों बाद टीवी को थैंक्यू बोला। मन हलका हो चुका था। लालू में लाख बुराइयां हैं लेकिन वो आदमी जहां होता है वहां लोग बिना सहज हुए नहीं रह सकते। हालांकि वो गरियाते भी जोरदार तरीके से हैं। प्रिंट व इलेक्ट्रानिक के कई पत्रकारों की वो फाड़ चुके हैं लेकिन बावजूद इसके, मुझे लालू अच्छे लगते हैं। उस आदमी की भड़ास हमेशा निकलती रहती है। वह गंभीर से गंभीर काम करके दिखा देता है और खुशी के छोटे से छोटे मौके को इंज्वाय करने में नहीं चूकता। एक प्रतिभागी ने उसी प्रोग्राम में सवाल किया कि आपने रेलवे को न जाने कितने हजार करोड़ रुपये का फायदा दिला दिया, यह कैसे किया? इस सवाल का जवाब देते समय लालू ने खुद की मार्केटिंग करने का मौका नहीं गंवाया। उन्होंने बताया कि किस तरह दुनिया भर के सारे बड़े संस्थान यह सवाल पूछते हैं और किस तरह उन्होंने यह सब कर दिखाया। हालांकि उनका जवाब हम सभी लोगों ने कई दफे पढ़ा और सुना है इसलिए उसको यहां देने से कोई फायदा नहीं है। तो भई...मैं तो कल रात के टीवी शो से इस कदर प्रभावित हुआ कि आज सुबह से ही मेरी जुबान पर जो गाना चढ़ा है वो यही है....आरा हिले छपरा हिले बलिया हिले ला, जब लचके तोर कमरिया तो सारा जिला हिले ला.....।
यहां यह कहना चाहूंगा कि अगर भोजपुरी गानों को साथी लोग भड़ास पर डालें तो मजा आएगा। कई गानें मुझे पूरा याद नहीं हैं और कई गानों के तो सिर्फ धुन पता हैं। उम्मीद है इस काम में हमारे इलाहाबादी हरिशंकर मिश्रा पूरा योगदान देंगे। अगर जरूरत पड़ी तो बनारस के पत्रकारों से मदद लेने में भी नहीं चूकेंगे। इसी तरह दिनेश श्रीनेत्र, अनिल सिन्हा, सचिन, विकास मिश्र...आदि साथी भोजपुरी गानों को भड़ास पर लाने में मदद करें ताकि उन्हें पढ़-पढ़ कर याद किया जाए और फिर जहां महफिल जमे वहां जोर से गाया जाए.....आरा हिले छपरा हिले....
जय भड़ास..
यशवंत
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