24.11.07

आखिर आवाम की हिफाजत का जिम्मा कौन लेगा ?

बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता जब यूपीए सरकार ने अपने तीन साल पूरे होने का जश्न मनाया। अखबारों में सरकार की ओर से बड़े बड़े विज्ञापन छापे गए। जनता को बताया गया कि इस सरकार ने पिछली सरकारों के मुकाबले क्या कुछ नया और अनोखा किया है। कितनी ईमानदारी के साथ उसने जनता की तकलीफों को समझा है। कितनी सारी परियोजनाएं शुरु हुईं और किस मद में कितना रुपया खर्च किया गया। लेकिन आंतरिक सुरक्षा के मोर्चें पर विफल इस सरकार को वो तमाम लोग नजर नहीं आए जिन्होंने बिना वजह अपनी जान गंवाई। यूपीए के सत्ता में आने के साथ ही देश में शुरु हुए आतंकवादी हमलों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। इन हमलों में ना जाने कितनी मांओं की गोद सूनी हो गई। कितनों की मांग उजड़ गई लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। और इस बात का सबूत हैं लगातार हो रहे आतंकवादी हमले। काम काज के आधार पर यूपीए सरकार में कुछ लोगों के ओहदे बड़े कर दिए गए तो कुछ को खामियाजा भी भुगतना पड़ा। लेकिन देश के इतिहास में सबसे कमजोर गृहमंत्री शिवराज पाटिल जी की कुर्सी सलामत ही रही। आखिर सरकार इन हमलों को रोक पाने में नाकाम क्यों है। क्या हमारा खुफिया तंत्र इतना कमजोर है कि एक के बाद लगातार एक हमले होते जा रहे हैं और हम महज हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। आखिर इन हमलों की जवाबदेही कौन लेगा। क्या महज राज्य सरकारों को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा देने से या उन्हें खुफिया जानकारी से आगाह कर देने के तर्क से केन्द्र सरकार अपना पल्ला झाड़ सकती है। अयोध्या मंदिर परिसर में हमला, वाराणसी में संकट मोचन और कैंट स्टेशन पर हमला, जामा मस्जिद में बम धमाका, दिल्ली के बाजारों में सिलसिलेवार हमले, मालेगांव में हमला, मुंबई की लोकल ट्रेनों में सिलसिलेवार हमले, हैदराबाद में मस्जिद में हमले, समझौता एक्सप्रेस में बम धमाका, और अब फैजाबाद, बनारस, लखनऊ की कचहरी में हमले.....। हमलों की फेहरिस्त से ज्यादा लंबा और खतरनाक है इनका असर। कितना अच्छा होता कि प्रधानमंत्री और तमाम दूसरे आला मंत्री सोनिया गांधी और राहुल बाबा की पसंद नापसंद से आगे जाकर देश की जनता के बारे में भी कुछ सोच पाते। यूपीए सरकार में आतंकवादियों के हौसले कितने बुलंद हो चुके हैं, इसके लिए अब सबूत देने की जरुरत नहीं है। और अगर सरकार का यही ढीलमढाल रवैया रहा तो एक दिन हमारा देश पड़ोसी मुल्क में तब्दील हो जाएगा जहां बम विस्फोट और आतंकवादी हमले रोजमर्रा का हिस्सा होते हैं। मेरा तो मानना है कि ऐसी सरकार जो अपनी जनता की हिफाजत करने में नाकाम हो, उसे नैतिक रुप से सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।

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