30.11.07

वामपंथ और मार्क्स को गरियाने के सुख से सुखी ये साथी??

विवेक सत्य मित्रम के अनुरोध पर मैंने उनके लिखे एक पोस्ट काल मार्क्स के नाम एक कामरेड का खत पर टिप्पणी की है। हालांकि वहां पहले से जितनी भी टिप्पणियां थीं वो सब मार्क्स और वामपंथ को गरियाने से मिले सुख से मुग्ध लोगों की थी। मुझे एक बार लगा, टिप्पणी करना चाहिए या नहीं। लेकिन लगा, अगर विवेक ने अनुरोध किया है तो जरूर करना चाहिए लेकिन बातें साफ-साफ कहूंगा, भले विवेक को बुरा लगे क्योंकि विवेक से मेरा संबंध भी भड़ासी सहजता और सरलता के चलते ही हुआ और हम दोनों चाहते हैं कि बातें जो कही, करी जाएं वो साफ-साफ हों, मुंहदेखी नहीं। तो मैंने वहां जो कमेंट किया है, उसे भड़ास पर भी डाल रहा हूं। मूल पोस्ट पढ़ने के लिए विवेक के बिलकुल नए ब्लाग आफ द रिकार्ड पर जाना होगा। इस ब्लाग के पैदा होने की भी पूरी एक कहानी है लेकिन उसे मैं आफ द रिकार्ड ही रखना चाहूंगा, जब तक कि खुद विवेक न बता दें। विवेक के गुस्से से उपजा ब्लाग है आफ द रिकार्ड। लेकिन मुझे डर यह है कि यह गुस्सा केवल वामपंथ के विरोध का अड्डा ही न बन जाए। मुझे लगता है कि इसका सृजनात्मक इस्तेमाल करना चाहिए। जैसा कि हम लोगों की बातें भी हुई हैं। भोजपुरी भाषा में एक ब्लाग होना चाहिए और वो कम्युनिटी ब्लाग हो जिसमें लोग सिर्फ भोजपुरी में लिखें। इससे शायद हम अपनी बानी और लोक संवेदना को बड़ा योगदान दे पाएंगे। वाम और दक्षिण पर बहस करने के लिए जनरलाइज एप्रोच नहीं होना चाहिए, पढ़ाई-लिखाई के साथ फैक्ट्स आधारित बातें होनी चाहिए। सीपीएम की जो दिक्कत बंगाल में है दरअसल वह एक ट्रेंड है वामपंथ में। ऐसे ट्रेंड से खुद कार्ल मार्क्स भी लड़ते रहे हैं, लेनिन भी लड़ते रहे हैं। रूसी क्रांति के दस्तावेजों को पढ़िए तो पता चलेगा कि किस तरह दर्जनों कम्युनिस्ट पार्टियां थीं जो आपस में विचारधारात्कम रूप से बंटी हुई थी और वो बंटाव नकली नहीं था बल्कि ट्रेंड आधारित और विचार आधारित था। आखिर में लेनिन की बोल्शेविक धारा विजयी बनी जिसने सत्ता का पार्ट होने की बजाय खूनी क्रांति का रास्ता अपनाया। ये सारी बातें पढ़ने पर पता चलेंगी। रूसी क्रांति पर कई किताबें हैं जिसमें कम्युनिस्टों के आपसी मतभेदों का जिक्र है। मुझे भारत में भी कुछ वैसा ही लगता है लेकिन बाजी कौन मारेगा, यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इतना सच है कि सीपीएम का मार्क्सवाद दरअसल क्रांतिकारी मार्क्सवाद है ही नहीं। बातें फिर होंगी, फिलहाल इतना ही....टिप्पणी पढ़िए और मूल पोस्ट पढ़िए....। समझ में आए तो इस कमेंट पर भी कमेंट करिये....
जय भड़ास
यशवंत
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यशवंत सिंह said...
माफ करियेगा विवेक, मेरी समझ में कुछ नहीं आया। पत्र लेखक भयंकर कनफ्यूज है। पत्र से जाहिर है कि वो सीपीएम का कैडर है। जब पत्र लेखक सीपीएम का ही कामरेड है जो अपनी पार्टी की खिंचाई और सरकार की धुलाई से दुखी है तो इसमें नई बात क्या है। वामपंथ में ढेरों पार्टियां हैं और सबका लक्ष्य भले एक हो लेकिन उसे पाने के तरीके में मतभेद है। इसी मतभेद के चलते वो एक दूसरे की खिंचाई करते हैं लेकिन बड़े मुद्दों पर वो एक साथ हो जाते हैं जो कि जरूरी भी है। जैसे सांप्रदायिकता। कुछ उसी तरह जैसे संघ, विहिप, भाजपा, भाजयुमो...आदि दल संगठन अलग अलग भले होने के दावे करें लेकिन बड़े मुद्दों पर एक हैं। जैसे हिंदुत्व और मुस्लिम विरोध। हां, लेकिन इनके बीच भी लक्ष्य पाने को लेकर मतभेद है और आपस में धुलाई-खिंचाई करते रहते हैं। अगर विहिप का एक बंदा भाजपा को गाली देते हुए भगवान राम को पत्र लिखे और कहे कि ये भाजपा वाले गद्दार हो गए हैं....टाइप.....तो इसमें नई बात क्या है...।
खैर, आप बता सकेंगे कि पत्र लेखक मार्क्स, वामपंथ आदि को जनरलाइज तरीके से पेश कर उनकी धुलाई कर खुद सुख उठाना चाहता है या फिर वाकई वो इस पत्र के जरिए एक गंभीर डिबेट शुरू करना चाहता है। मंशा तो मार्कस और वामपंथ को गरियाकर अहं तुष्ट करने जैसा ही लगता है।
यशवंत

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