22.11.07

अब बर्दाश्त नही होता...

यशवंत जी, नमस्कार


बहुत दिन भड़ास को देख पढ़ लिया, अब बर्दाश्त नही होता है सोचा चलो आज अपनी भड़ास निकल कर मन हल्का कर लिया जाये। भड़ास पाठशाला में आज मेरा पहला दिन होगा इसलिए कुछ सकुचाया कुछ सहमा सा दाखिल हो रहा हूँ, thoda सा होम वर्क करके laya हूँ उसको ही कर number दे दें। आपकी नजर हाल में ही लिखी कुछ line कर रहा हूँ . एक sulagti हुई pratikriya कि उम्मीद है ............



gar chand मेरे कमरे का bulb होता,
तो यह chadar chandni में dhul जाती
और tare sajte मेरे takiye per
यह khidki kahkashan पे khul jati
fhir suraj मेरे अख़बार कि ibarat bunta
subaha चाय कि payali में ghul jati
यह oas palkon per phisalti ayese
कि उम्मीद की सब kaliyan fhir khil jati
हर रात यही khawab लिए सो रहता हूँ
हर दिन एक haqiqat से aankh khul jati

hayatumar- hindustan meerut
@rediffmail.com

1 comment:

  1. बिलकुल सकुचाने और सहमने की जरूरत नहीं है, यह आप और मेरे जैसों की दुनिया है...
    आपका स्वागत दिल खोलकर करते हैं लेकिन हयात जी, आप से बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं, उन विषयों-क्षेत्रों पर हाथ चलाइए जिन्हें हम आमतौर पर पत्रकारीय जीवन में छू नहीं पाते लेकिन महसूस करते रहते हैं....नग्मे, बचपन का जीवन, फंतासी, सपने....आदि आदि....
    यशवंत

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