27.12.07

वो महिला नहीं बल्कि एक संस्थान हैं....

विनीत ने अच्छी बात उठाई है। किरण बेदी के बहाने। सही कहा, बचपन में जीके वाली किताबों में पढ़ते थे पहली महिला आईपीएस के नाम के बारे में। बाद में हर साल उनके बारे में कुछ न कुछ बढ़िया पढ़ने सुनने को मिलता। कभी इमानदारी, कभी तेवर, कभी योगा, कभी संवेदनशीलता आदि को लेकर। उनके जीवन पर फिल्म व किताब सब कुछ बन लिख चुका है...। इस महिला की विदाई जिस तरीके से हुई है उससे यही साबित होता है कि सिस्टम में अब वाकई अच्छे लोगों की पूछ नहीं रही। जो सेटिंग गेटिंग पर यकीन नहीं करता हो, उसे हाशिए पर ही जीना होगा। प्रदेशों में तो ये जाने कब से हो रहा है, लेकिन केंद्र सरकार में भी यही स्थितियां हैं, यह प्रकरण इस नए तथ्य को साबित करता है। चलिए, हम सब किरण बेदी को एक नए जीवन के लिए बधाई दें जिसमें उन्हें महिलाओं और पुलिस सुधार हेतु बहुत कुछ करना है। जाहिर है, उनकी मुहिम में हम सब साथ होंगे। इस जुझारू महिला को भड़ास की तरफ से सलाम....। लाखों-करोड़ों भारतीय लड़कियों और महिलाओं की प्रेरणा किरण बेदी अपने वीआरएस के बाद वाले जीवन को संभवतः सबसे ज्यादा जुझारूपन से जियेंगी। कायरों और डरपोकों के इस दौर में अगर खुलकर जीना सजा है तो किरण बेदी ने इस सजा को वाकई भुगता है। वर्षों बरस वह कोने में बिठा दी गईं लेकिन वहां भी उन्होंने अपना काम जारी रखा और चर्चा में आती रहीं। मतलब, अच्छा आदमी जहां रहेगा वहां वह रास्ता निकाल लेगा....।
जय भड़ास
यशवंत

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