नया साल मैंने ट्रेन में मनाया। प्रयागराज में। सुबह नई दिल्ली स्टेशन पर उतरने के बाद ज्योंही स्टेशन कैंपस से बाहर आया, फिर वही हरामजादी महिलाएं दिख गईं। पांच छह महिलाएं तिरंगे आकार का छोटा झंडा लोवर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास के मुसाफिर लड़के लड़कियों महिला परुषों के शर्ट या साड़ी पर लगा रहीं थीं और देशहित का नाम लेकर, नए साल के मौके पर सामाजिक मदद करने का अनुरोध करके, अनाथ बच्चों के हित में काम करने के नाम पर पैसे मांग रही थी। आश्चर्य तो यह कि लोग तुरंत पैसे दे रहे थे। एक तो ठीकठाक सी दिखने वाली महिलाएं जिन्हें कतई भिखमंगा या बेहद गरीब नहीं कहा जा सकता, शक्ल और पहनावे के आधार पर, वो यह सब कर रहीं थीं। मैंने उनमें से एक परिचित से दिखे चेहरे वाली महिला, जो पहले भी मुझसे टकरा चुकी थी, को रोका और कहा तुम सब यह कब तक जनता को चूतिया बनाओगी, पुलिसवाले क्यों नहीं तुम लोगों को पकड़ते। इतना सुनते ही उसने हाथ जोड़ लिया और कहा, भइया जाओ। इस बीच देखा कि वो महिला एक मिलिट्री जैकेट व पैंट पहने एक मुच्छड़ आदमी के पास पहुंचती है और उसके कान में कुछ कहती है। वह मुच्छड़ मेरी तरफ देखता है। मैं थोड़ा आगे सरक लेता हूं, सोचते हुए कि नए साल की सुबह सुबह इतना भयानक पंगा भी न ले लो कि बदनामी में चार चांद और लग जाएं। सो, उन्हें देखते हुए आगे बढ़ जाता हूं। मुख्य सड़क की ओर मुड़ते समय ही एकदम से एक साल ओढ़े, लिपिस्टिक लगाए एक और महिला मेरे सामने प्रकट हुई और वेलकम सर कहते हुए वो तिरंगे झंडे का बैज (या बैच?) लगाने लगी। मेरे मुंह से एकदम से निकला, हट माधड़चोद, साली, तुम लोग लोगों को लूट रही हो। वह एकदम से घबरा कर पीछे भागी और मां आगे बढ़ लिया।
वाकई, हमारे देश के लोग बहुत भावुक होते हैं। खासकर लोवर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास के लोग। इन परिवारों के लोग इन महिलाओं के आगे ऐसे शर्मा रहे थे जैसे इनका इनसे बियाह होना हो या वो इनकी साली लगती हों। बैज लगते ही तुरंत पाकेट में हाथ डालकर लगते थे पैसे निकालने। कोई दस तो कोई पांच तो कोई बीस रुपये दे देता था।
यह किस्सा पहली बार का नहीं है। पिछले छह महीने में कम से कम आठ बार मैं नई दिल्ली स्टेशन से सुबह ट्रेन से उतरकर आया हूंगा। उतनी ही बार ये महिलाएं दिखी। मैं याद करने की कोशिश कर रहा हूं कि शुरुआत में तो सिर्फ एक महिला दिखती थी। बाद में दो। अब तो कम से कम ये छह हरामजादियां टहल रही हैं। जाहिर सी बात है कि इलाके की दिल्ली पुलिस इनसे खूब अच्छी तरह मिली हुई होगी, तभी ये चोखा धंधा चल रहा है। सुबह सुबह इतनी भड़ास निकालकर मन हलका महसूस कर पा रहा हूं। आप सभी को नए साल का पहला दिन जीने के लिए ढेर सारी विशेज...
जय भड़ास
यशवंत
sirji, ek baat to hai dilli me rahkar agar 2-4 baar maa- bahan na ho jaayae to kuch suna-suna sa lagta hai, apan ka to confidence hi loose ho jaata hai
ReplyDeletesir ji ye to dilli ki aam baat hai rail kaho ya bus stand ya koi famous place ye log nazer aa jayenge
ReplyDeletekisi ne kaha thha ki kisi baat par gussa aaye to bhadas par apni bhadas nikal lena. aaj pahli baar dekha. sahi me harami ka beto ne isko bhadas nikalne ka sahi jagah bana diya hai.
ReplyDeletemaf karna betichodo- madarchodo, ye mera bhadas hi thha. aur kuch nahi.
वैसे भी देहली में गालियों को समाज ने अपनी बोलचाल की भाषा का अंग बना लिया है ।
ReplyDeleteabe, tujhe ye haramjadiyaan to nazar aayin lekin unke peechhe khade muchchhad ko dekh kar phat gayi teri....Usey do laat lagata to baat thi.... Aisa napunsak gussa kisi ke kaam ka nahin pyare.
ReplyDeleteJin Auraton ko tu galiyan deta hai woh usi muchchad ki mechanism ka hissa hai.... muchchhad hi haramjadiyan banate hai aur unka istemaal karte hai.... aur tum jaise jhoothe bhadasi kuchh solid karne ki bajaye bakbak ki ulti karke halke ho lete hain
abe, tujhe ye haramjadiyaan to nazar aayin lekin unke peechhe khade muchchhad ko dekh kar phat gayi teri....Usey do laat lagata to baat thi.... Aisa napunsak gussa kisi ke kaam ka nahin pyare.
ReplyDeleteJin Auraton ko tu galiyan deta hai woh usi muchchad ki mechanism ka hissa hai.... muchchhad hi haramjadiyan banate hai aur unka istemaal karte hai.... aur tum jaise jhoothe bhadasi kuchh solid karne ki bajaye bakbak ki ulti karke halke ho lete hain