26.1.08

मेरा बलात्कार मत करो .....एक पत्रकार की अनकही दास्तान



मेरा बलात्कार मत करो .....एक पत्रकार की अनकही दास्तान
आखिरकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने यह स्पस्ट कर दिया कि हम सबकी अपनी-अपनी दुकाने है जिनमे बैठने वाले वाले लोग पत्रकार का चोला पहने हुए है जिसमे खबरें विज्ञापन के लिए बिकती है ना कि पत्रकारिता के लिए ....हम आपको बता दे कि खबर वही बिकाऊ होगी जिसमे sex होगा ,खेल होगा .गाने -बजाने होंगे और मोजूद होंगे कुछ हसीनाओं के चेहरे ....जी हां जनाब ०- हम बात किसी गली -मोहल्ले के नही बल्कि आपके -अपने मीडिया की कर रहे है - इन दुकानों को चलाने के लिए मौजूद होते है कुछ हसिनाओ की खुशबु लिए अपने न्यूज़ वाले यानी नए जमाने की नयी पत्रकारिता ..यानी महिला पत्रकार ......हम अगर शब्दों को सही करे तो महिला एंकर .............यानी नया पर्दा नया रूप नया मुकाम और नया और जबरदस्त ग्लैमर लिए पत्रकारिता -यह हकीक़त है की इस नए पत्रकारिता का आगाज हिंदुस्तान में हो चूका है -आप टीवी खोले कर देखिए तो सही -ऐसा लगता है मानो ये महिलाए रेम्प के बजाए न्यूज़ स्टूडियो मे अपने कपडे उतार देंगी ......इंग्लैंड मे तो यह हो चुका है ...खैर पत्रकारिता को बेचकर अपनी दुकान चलाने वालो को यह टी.र.पी का नया फार्मूला लग रही है --कुछ लोगो ने तो एस पर आवाज भे उठाई लेकिन हम कहा बाज आने वाले थे -चलिए अब राज खुले तो मैं बता दु हाल ही मे एक नया न्यूज़ चैनल आया पता चला कि वहा पर जॉब के चांस है मेरी महिला मित्र के साथ हुआ था यह हादसा सारे प्रशन पूछने की बाद वहा के hr ने खा मैं आपसे संतुष्ट हूँ अब यह बताओ मेरे लिए क्या कर सकती हो ? आख़िर इस जिस्म की ज्यादा भूख मीडिया मैं क्यों ? कहा है वो लोग जो blog के jariyehe मुझे पत्रकारिता sikhaa the .... आगे mahilaao और मीडिया पर कुछ विचार ....ये विचार मेरे नही है बल्कि मेरे aadarsho के है ------jara ध्यान से padhe ...मैं महिला पत्रकार हूँ -मेरे अपने aadarsh है मैं ladki हूँ वही लड़कीं जिसके बारे में सिमोन द बोवा ने कहा था कि वो पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। लोग मुझे तरह-तरह से बनाते हैं। मुझे सेवा करने लायक बनाते हैं। सुंदर दिखने लायक बनाते हैं। वो मेरा तन तराशने से पहले मेरा मन तराशते हैं। बताते हैं, खूबसूरत दिखना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद है। वो पहले अपने आनंद के लिए मेरा इस्तेमाल करते हैं, फिर अपने कारोबार के लिए। वो मेरी कोमलता से अपना सामान सजाते हैं, मेरी सुंदरता से अपनी दुकान। मैं जब studio par hoti हूं तो सबसे पहले अपने वजूद पर पांव रखती हूं। मुझे मालूम रहता है कि ये नाजुक संतुलन, ये खूबसूरत लचीलापन, ये shandaar kaaya , ये रोशनियां, ये चमक-दमक मेरे लिए नहीं, एक बड़े कारोबार के लिए है। मुझे मुस्कुराना है, मुझे बातें kahanii हैं, मुझे अपनी घबराहट, अपने आंसू रोकने हैं, अपने उस शर्मीलेपन को कुचलना है जो किसी बचपन से कहीं से मेरे साथ चला आया। मुझे आत्मविश्वास और कामयाबी से भरपूर नजर आना है, इस डर को दबाना है कि जब ये तराश नहीं रहेगी, जब वक्त की रेखाएं मेरे जिस्म पर दिखाई देने लगेंगी, जब जिंदगी की आपाधापी में मेरे पांव कांपते रहेंगे, तब मेरा क्या होगा। मैं लड़की हूं। अपनी त्वचा से प्यार करती हूं, सुंदर दिखना चाहती हूं, कोमल बने रहना चाहती हूं, लेकिन नहीं जानती कि इन मासूम इच्छाओं के लिए मुझे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। सिर्फ मुझे मालूम है कि सुंदरता तन से कहीं ज्यादा मन में होती है, दृश्य से कहीं ज्यादा आंख में होती है, वो तराशी नहीं जाती, अपने वजूद और अपनी शख्सियत की एक-एक शै के बीच ढलती है, और बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब वो अपनी पूरी कौंध के साथ दिखाई पड़ती है। दरअसल वो रैंप पर सैकड़ों लोगों के बीच की नुमाइश में जितना नजर आती है उससे कहीं ज्यादा उन रिश्तों में झलकती है जिसमें देह ही नहीं, रूह तक पारदर्शी हो जाती है।
आखिरकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने यह स्पस्ट कर दिया कि हम सबकी अपनी-अपनी दुकाने है जिनमे बैठने वाले वाले लोग पत्रकार का चोला पहने हुए है जिसमे खबरें विज्ञापन के लिए बिकती है ना कि पत्रकारिता के लिए ....हम आपको बता दे कि खबर वही बिकाऊ होगी जिसमे sex होगा ,खेल होगा .गाने -बजाने होंगे और मोजूद होंगे कुछ हसीनाओं के चेहरे ....जी हां जनाब ०- हम बात किसी गली -मोहल्ले के नही बल्कि आपके -अपने मीडिया की कर रहे है - इन दुकानों को चलाने के लिए मौजूद होते है कुछ हसिनाओ की खुशबु लिए अपने न्यूज़ वाले यानी नए जमाने की नयी पत्रकारिता ..यानी महिला पत्रकार ......हम अगर शब्दों को सही करे तो महिला एंकर .............यानी नया पर्दा नया रूप नया मुकाम और नया और जबरदस्त ग्लैमर लिए पत्रकारिता -यह हकीक़त है की इस नए पत्रकारिता का आगाज हिंदुस्तान में हो चूका है -आप टीवी खोले कर देखिए तो सही -ऐसा लगता है मानो ये महिलाए रेम्प के बजाए न्यूज़ स्टूडियो मे अपने कपडे उतार देंगी ......इंग्लैंड मे तो यह हो चुका है ...खैर पत्रकारिता को बेचकर अपनी दुकान चलाने वालो को यह टी.र.पी का नया फार्मूला लग रही है --कुछ लोगो ने तो एस पर आवाज भे उठाई लेकिन हम कहा बाज आने वाले थे -चलिए अब राज खुले तो मैं बता दु हाल ही मे एक नया न्यूज़ चैनल आया पता चला कि वहा पर जॉब के चांस है मेरी महिला मित्र के साथ हुआ था यह हादसा सारे प्रशन पूछने की बाद वहा के hr ने खा मैं आपसे संतुष्ट हूँ अब यह बताओ मेरे लिए क्या कर सकती हो ? आख़िर इस जिस्म की ज्यादा भूख मीडिया मैं क्यों ? कहा है वो लोग जो blog के jariyehe मुझे पत्रकारिता sikhaa the .... आगे mahilaao और मीडिया पर कुछ विचार ....ये विचार मेरे नही है बल्कि मेरे aadarsho के है ------jara ध्यान से padhe ...मैं महिला पत्रकार हूँ -मेरे अपने aadarsh है मैं ladki हूँ वही लड़कीं जिसके बारे में सिमोन द बोवा ने कहा था कि वो पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। लोग मुझे तरह-तरह से बनाते हैं। मुझे सेवा करने लायक बनाते हैं। सुंदर दिखने लायक बनाते हैं। वो मेरा तन तराशने से पहले मेरा मन तराशते हैं। बताते हैं, खूबसूरत दिखना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद है। वो पहले अपने आनंद के लिए मेरा इस्तेमाल करते हैं, फिर अपने कारोबार के लिए। वो मेरी कोमलता से अपना सामान सजाते हैं, मेरी सुंदरता से अपनी दुकान। मैं जब studio par hoti हूं तो सबसे पहले अपने वजूद पर पांव रखती हूं। मुझे मालूम रहता है कि ये नाजुक संतुलन, ये खूबसूरत लचीलापन, ये shandaar kaaya , ये रोशनियां, ये चमक-दमक मेरे लिए नहीं, एक बड़े कारोबार के लिए है। मुझे मुस्कुराना है, मुझे बातें kahanii हैं, मुझे अपनी घबराहट, अपने आंसू रोकने हैं, अपने उस शर्मीलेपन को कुचलना है जो किसी बचपन से कहीं से मेरे साथ चला आया। मुझे आत्मविश्वास और कामयाबी से भरपूर नजर आना है, इस डर को दबाना है कि जब ये तराश नहीं रहेगी, जब वक्त की रेखाएं मेरे जिस्म पर दिखाई देने लगेंगी, जब जिंदगी की आपाधापी में मेरे पांव कांपते रहेंगे, तब मेरा क्या होगा। मैं लड़की हूं। अपनी त्वचा से प्यार करती हूं, सुंदर दिखना चाहती हूं, कोमल बने रहना चाहती हूं, लेकिन नहीं जानती कि इन मासूम इच्छाओं के लिए मुझे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। सिर्फ मुझे मालूम है कि सुंदरता तन से कहीं ज्यादा मन में होती है, दृश्य से कहीं ज्यादा आंख में होती है, वो तराशी नहीं जाती, अपने वजूद और अपनी शख्सियत की एक-एक शै के बीच ढलती है, और बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब वो अपनी पूरी कौंध के साथ दिखाई पड़ती है। दरअसल वो रैंप पर सैकड़ों लोगों के बीच की नुमाइश में जितना नजर आती है उससे कहीं ज्यादा उन रिश्तों में झलकती है जिसमें देह ही नहीं, रूह तक पारदर्शी हो जाती है।

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