31.1.08

मीरा कहां हैं? गरिमा और पूजा का स्वागत है...कुछ और फुटकर बातें

रिकार्ड
नए साल के पहले महीने का आज आखिरी दिन। इस पोस्ट को मिला लें तो कुल 270 पोस्टें इस 31 दिनों में भड़ास पर भड़ासियों ने प्रकाशित कीं जो संभवतः अब तक का एक रिकार्ड होना चाहिए, ज्यादा सही सही ब्लाग आंकड़ों के जानकार बताएंगे। आज मेंबरशिप देखी तो कुल 195 लोग भड़ासी बन चुके हैं, मतलब 200 में सिर्फ पांच कम।

पब्लिसिटी
इस महीने ही ब्लाग पर जहां कहीं चर्चा हुई उसमें भड़ास का जिक्र प्रमुखता से हुआ। रवि रतलामी जी ने एक पुस्तक में ब्लागों पे जो लिखा उसमें भड़ास का सचित्र जिक्र किया, आगरा से हाल ही में प्रकाशित एक पत्रिका में भड़ास की चर्चा हुई जैसा कि विनीत कुमार ने मुझे सूचित किया, ग्वालियर में कार्यशाला में भड़ास का जिक्रर किया गया, दैनिक भाष्कर के ब्लाग उवाच कालम में रवींद्र दुबे जी ने भड़ास की बढ़ती लोकप्रियता व इसके भविष्य का वर्णन किया और अभी हाल ही में नवभारत टाइम्स में लगभग पूरे पेज के ब्लाग पर आयोजन में भड़ास का जिक्र किया गया। कुल मिलाकर यह महीना उपलब्धियों और सरगर्मियों से भरपूर रहा। भड़ास पर कई गरमागरम बहसें भी हुईं और अब भी हो रही हैं।

आधी दुनिया
सबसे खास बात जो चुपचाप घटित हुई, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया कि भड़ास में कई महिला ब्लागर भी शामिल हो चुकी हैं और वे अपनी उपस्थिति टिप्पणियों के रूप में दर्ज करा रही हैं, पोस्ट के रूप में अपने विचार प्रेषित कर रही हैं। इन सभी का स्वागत। मैं नाम लेना चाहूंगा, गरिमा और पूजा नामक दो साथी भड़ास की सदस्य हैं और लगातार सक्रिय हैं। इनसे अनुरोध है कि वे इस मंच का भरपूर इस्तेमाल करें और अन्य महिला साथियों को भी इससे जोड़ें ताकि पुरुष भड़ासियों के वर्चस्व को कम कर आवाज उठाने के माममें में महिला-पुरुष सुर को बराबरी पर लाया जा सके।

और हां, अपनी सबसे पुरानी भड़ासिन साथी मीरा आजकल भड़ास से गायब हैं। गालियों में औरतों को लक्षित किए जाने के बरखिलाफ उन्होंने मर्दवादी गालियों को इजाद किए जाने की बात की थी और बड़े तेवर से पुरुष भड़ासियों को ठीक करने आई थीं पर इन दिनों जाने कहां गायब हैं। अगर उन तक मेरी आवाज पहुंच रही हो तो कृपया वो अपनी उपस्थिति दर्ज करावें और फिर दस्तक दें।

ताजा विवाद
विनीत कुमार की जिस पोस्ट पर गर्मागर्म बहस चल रही है, उसके बारे में मेरा अपना निजी खयाल यही है कि भड़ास पर किसी मीडिया हाउस का नाम लेकर उसे कोसने के बजाय जिस सज्जन से दिक्कत है, पीड़ा है, उनका नाम कोटकर लिखा जाए तो शायद ज्यादा ठीक रहेगा क्योंकि किसी मीडिया हाउस को किसी एक दो खराब टाइप के सज्जनों के कारण गरियाना, नाम उछालना, बदनाम करना उचित नहीं। यही सब हम लोगों ने पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान भी सीखा है और पत्रकारिता के आदर्श भी यही कहते हैं कि कुछ एक लोगों के कारण किसी संस्था को बेकार या बदनाम नहीं कह कर सकते। तो मैं इस मामले में डा. मांधाता सिंह की राय के साथ हूं। हालांकि माडरेटर के नाते मैं विनीत कुमार की पोस्ट का संपादित कर उस मीडिया हाउस के नाम को हटाने का अधिकार रखता हूं लेकिन मैं चाहता हूं कि जितने भी भड़ासी साथी हैं वो खुद में आत्म अनुशासन विकसित करें ताकि भविष्य में इस तरह की स्थिति न आने पावे। हम सभी किसी न किसी संस्थान से जुड़े हुए हैं और हर जगह पर हर तरह के लोग होते हैं इसलिए किसी एक के कारण सभी को खराब या अच्छा नहीं कहा जा सकता और इसके चलते पूरे संस्थान का नाम लेकर बदनाम नहीं किया जा सकता। उम्मीद है इस विवाद को यहीं खत्म समझा जाएगा। अगर फिर भी किसी को कुछ कहना है तो उसका स्वागत है।

नए लिक्खाड़
कई नए लोगों ने भी लिखना शुरू कर दिया है लेकिन अभी ढेर सारे साथी ऐसे हैं जो तमाशाई ज्यादा बने हुए हैं, लेखक कम। मेरे खयाल से भड़ास मंच का मकसद अपने गले को खोलना, आवाज को बुलंद करना ही है। तो, अब गला खंखारते हुए जो कुछ मन में, दिल में भरा हो, उसे निकालिए। सुरेश पांडेय, अबरार अहमद, मयंक, गरिमा, पूजा...और अन्य सभी नए भड़ासियों, सक्रिय साथियों की हम सब हौसलाअफजाई करते हैं। पर पुराने लिक्खाड़ लगातार मौन हैं, उनमें प्रमुख हैं आलोक सिंह, सचिन, रियाज हाशमी, अनिल सिन्हा आदि आदि....। लगता है, इनकी भड़ास सब निकल चुकी है, तभी मौन साधे हैं।

चोरी और नकल
मुझे एक भड़ासी साथी ने मुझे लिखित सूचना दी है कि ....rajiv's Site and Ajit's Site नामक ब्लोगर आज कल भड़ास पर पोस्ट होने वाली पोस्टो को जेसे -की-वैसी कॉपी अपने ब्लोग़ पर चिपका रहे हें ! शाबाश...भाई लोगो क्या बात हें ! स्कूल मे नकल तो हम ने भी बहुत मारी लेकिन एसे नही ! कम से कम थोडा बहुत शब्दो का उलट फ़ेर तो कर लिया करो ,या फ़िर यशवन्त भाई से आज्ञा ले रखी हे?

उपरोक्त मामले को एक बार मैंने पहले भी उठाया था कि राजीव तनेजा जिस वेबसाइट पे हैं वहां ब्लाग वाले कालम में भड़ास की पोस्टें जाती हैं, इस मामले में क्या किया जाना चाहिए, मुझे खुद नहीं पता है। अगर पीडी बाबू कुछ मदद करें या कोई अन्य ब्लागर साथी बताए तो राह समझ में आए। मैं उपरोक्त दोनों साथियों से अपील करूंगा कि वो इस बारे में स्थिति स्पष्ट करें ताकि अगर चोरी या नकल जैसा संगीन आरोप है तो उससे निपटा जा सके।

गूगल एडसेंस
मैंने कुछ दिनों पहले सीखने व प्रयोग करने की मुहिम में गूगल एडसेंस का प्रयोग करके कुछ विज्ञापन उपर नीचे भड़ास पर लगाए थे पर तकनीकी समझदारी न होने की वजह से मैं गूगल एकाउंट नहीं क्रिएट कर पाया और बाद में व्यस्तता की वजह से यह काम पेंडिंग पड़ा रहा। इसलिए आखिरकार विज्ञापन के लफड़े में पड़ने के बजाय मैंने एडसेंस को ही हटा दिया। अब भड़ास पर कोई विज्ञापन नहीं है। विज्ञापन लगाने का मकसद था कि अगर गूगल थोड़ी रकम वकम विज्ञापन से लाभ होने पर भेज देता है तो भड़ास पुरस्कार आदि शुरू किया जा सकता है पर हिंदी ब्लागिग में अभी वो स्थिति नहीं आ पाई ही गूगल एडसेंस से कमाई की जा सके। इसीलिए फिलहाल इस प्रयोग को स्थगित रखने को तय किया है। बाद में देखा जाएगा।

क्या लिखें?
कई साथी सोचते रहते हैं कि भड़ास पर क्या लिखें? भड़ास को एक ऐसा मंच मानिए जो आपकी प्रतिभा और समझ को बढ़ाएगा। आप अगर भड़ास पर लिखते हैं तो पहले तो हिंदी में लिखना सीखेंगे, उसका लिए जो फांट व टूलकिट आदि का झमेला है उसे समझेंगे। दूसरे, अगर इस सबके जानकार हो चुके हैं तो फिर भड़ास के सदस्य होने के साथ साथ अपना ब्लाग बनाइए। कविता, कहानी, संस्मरण, व्यंग्य, सूचनाएं, अनुभव आदि को भड़ास पर व अपने ब्लाग पर प्रकाशित करिए। लिखने को एक लाख विषय हैं, न लिखने के एक लाख बहाने हैं। ये आप पे हैं कि आप क्या करते हैं। मेरे खयाल से अगर आप हिंदी वाले हैं तो आपको ब्लागिंग के इस पवित्र काम में जोरशोर से भाग लेना चाहिए क्योंकि इससे न सिर्फ आप खुद को तकनीक व लेखन की दृष्टि से समृद्ध करते हैं बल्कि हजारों ब्लागरों से आनलाइन संपर्क और संबंध भी बनाने में सक्षम होते हैं।

सुझाव दें
भड़ास पर नया और क्या हो सकता है, इस बारे में अगर आप लोगों के पास कोई सुझाव या विचार हैं तो वो जरूर बताएं। भड़ास एक कम्युनिटी ब्लाग है, इस पर जितना अधिकार यशवंत, डा. रुपेश, अंकित माथुर, आशीष महर्षि आदि का है, उतना ही अन्य कम लिखने वाले या न लिखने वाले भड़ासियों का भी है। इसलिए आप सभी अपनी राय से जरूर अवगत कराएं कि भड़ास पर नया क्या होना चाहिए।


जय भड़ास
यशवंत सिंह
yashwantdelhi@gmail.com

7 comments:

  1. सबसे पहले
    मेरा सुझाव
    सभी भडासियों
    को कविता
    या कविता
    की चन्द
    लाईनें लिख्नने
    को कहा जाये.

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  2. एक बात और
    सब भडासियों
    के नाम साईड
    बार में सिर्फ
    हिन्दी में और
    हिन्दी में ही
    लिखे जायें.

    कविता में
    बात ज़्यादा
    असर करती है.

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  3. न सिर्फ़ लिखो बल्कि स्वान्तः सुखाय से ऊपर लिखो ताकि कुछ प्रगति की सार्थकता सिद्ध हो सके...

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  4. वाचस्पति जी, साईड बार में हिन्दी में नाम
    देखने के लिये व्यक्तिगत स्तर पर सभी सदस्यों
    को अपना नाम हिंदी में करना होगा।
    भडास या कोई भी अन्य ब्लाग जिस पर सदस्य
    सूची छपी होती है, उस पर ब्लाग डिफ़ाल्ट
    रूप से आपकी प्रोफ़ाईल मे दिया गया नाम
    उठाता है। यदि सभी सदस्य अपनी अपनी
    प्रोफ़ाईलों में अपना नाम हिन्दी में लिखें तभी
    आप यहां पर सब लोगो के नाम हिन्दी में देख
    पायेंगे।

    धन्यवाद...

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  5. सप्ताह का भडासी घोषित करना शुरू कर दें !!

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  6. यशवंतजी यही आप से उम्मीद थी। जनसत्ता वाले मामले में अब आपने एक सतर्क माडरेटर जैसा जबाव दिया है। गंगा में जो नहा के आए हैं। जुग-जुग जिएं आप, खूब तरक्की करे भड़ास।
    स्तरीय लेखन के डा. रूपेश के प्रस्ताव का मैं भी समर्थक हूं।
    साथियों से अपील के बावजूद नजर भी रखनी होगी क्यों कि भड़ास कभी काबू में रहने वाली चीज नहीं होती। मौका पाते ही हल्ला मचा देती है।

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  7. अगर मान्धाता जी बुरा न माने तो एक बात कहूं कि हालांकि विनीत कई जगहों पर गलत है पर फिर भडास का अर्थ ही क्या रहा कि काबू हो गयी ? मैं अभी तक इस मामले पर राय देने से बचता रहा पर अब ज़रूरी है तो मुझे लगता है कि इस मसले पर बड़ी और सार्थक बहस की ज़रूरत है यशवंत जी !

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