..पापा...मान जाओ प्लीज, बंद कर दो लैपटाप, इतने देर तक काम करोगे, तो पागल हो जाओगे।
...पापा, क्या ये तुमको होमवर्क मिलता है आफिस से?
....पापा, बहुत देर से चार्ज हो रहा है लैपटाप, अब बंद भी कर दो वरना गर्म होकर ये ब्लास्ट हो जायेगा,
.....पापा, अब तो लगता ही नहीं कि तुम घर पर हो, इससे अच्छा है कि आफिस में ही रहते, तुम न बात करते हो, न साथ में कार्टून देखते हो, न घुमाने ले जाते हो, न कोई कहानी सुनाते हो.....
...पापा, तुम्हारा दिमगवा जो है न, वो इक दिन ब्लास्ट हो जायेगा, देखो..कितना गरम है।
...पापा, तु्म्हारी आंखें खराब हो जाएंगी, तुम ही कहते हो न, लगातार टीवी नहीं देखते, तो तुम क्यों लगातार लैपटाप खोले रहते हो।
......
और श्रीमती जी क्या कहतीं, पूछिए न....एक बानगी सुनिये...
...एजी, इ का बवाल आफिस से ले आए, ओहरे रख देते, पहले थोड़ा घर पर हंस बोल लेते थे, अब तो जब देखो इहे लैपटाप खोले और चश्मा लगाए बैठे घूरते रहते हैं, चलो ठीक है, भड़ास है, पर क्या इसे भरसांय बना देंगे कि इसकी आंच से परान निकल जाए....
शायद, ब्लागिंग का पागलपन जिसे लग जाए वो उस प्रेमी जैसा हो जाता है जिसे चाहे कंकड़ मारो या पत्थर, वो लैला लैला कहता रहेगा। वो शूली चढ़ जाएगा, जान दे देगा, राज्य और राष्ट्र से द्रोह कर लेगा पर आशिकी न छोड़ेगा। इसी तरह ब्लागिंग है, आफिस में माहौल खिलाफ बन जाए, नौकरी चली जाए, धंधा मंदा हो जाए, परिवार नाराज हो जाए, बच्चे-बीबी त्रस्त हो जाएं....पर ब्लागिंग न जाये। पहले तो सीमित था। जब तक दैनिक जागरण में था, आफिस से ब्लागिंग करता रहा, विरोधों और आरोपों के बावजूद। जब दैनिक जागरण से निकाला गया तो घर पर कंप्यूटर न होने की वजह से साइबर कैफे में ब्लागिंग करता रहा, सैकड़ों रुपये खर्च करने के बाद एक दिन इस चूतियापे को खत्म कर देने की ठानी। और ऐसे महान फैसले हमेशा दारू की अभिन्न शिवत्व की अवस्था में ही लिये जाते हैं। सो ले लिया। उस ब्लाग को डिलीट कर दिया, जिस ब्लाग के कारण इतनी गालियां मिलीं आफिस में, इतनी गालियां मिलीं विरोधी ब्लागरों से।
पर भड़ास ने, मेरी एक पहचान तो बना ही दी थी, बुरी ही सही। नई नौकरी में ब्लागिंग को न सिर्फ प्रमोट किया गया बल्कि भड़ास को फिर से बनाने व चलाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। सो अब भड़ास पहले से ज्यादा तेवर और ज्यादा भड़ासियों के साथ हाजिर हुआ। भड़ास डिलीट करने के बाद से दिल में एक अपराधबोध था, दोस्त व सीनियर ब्लागर साथियों के समझाने का असर था व भड़ासियों की दुआ थी, सो भड़ास फिर उसी जैसा जन्म गया। एक ऐसा पुर्नजन्म जिसमें पुरानी यादें सारी ताजा हों। सो, भड़ास के फिर आने के बाद से मेरे दिल से बोझ उतर गया। आफिस ने जो लैपटाप दिया उससे घर पर बैठकर ब्लागिंग करता रहा। पिछले सालभर में कुल जितनी पोस्टें लिखी गईं भड़ास में, इसी महीने उतनी संख्या में भड़ासियों द्वारा पोस्टें लिख दी गईं। भड़ासियों का जनबल भी 184 पर पहुंच चुका है। मीडिया में ब्लागिंग के साथ भड़ास भी खूब छाया हुआ है। मतलब....बल्ले बल्ले है भड़ास और भड़ासियों के। अभी परसों ही तो, नवभारत टाइम्स में रविवार के फोकस पेज पर दो तिहाई पेज में ब्लागिंग पर कवरेज था और उसमें जिन चार ब्लागों के माडरेटरों से बातचीत थी, उसमें भड़ास ब्लाग भी था। और अपुन की फोटू भी। चलो, जीते जी अपन का छपा हुआ फोटो देख लिया अखबार में, जाने मरने पर लगे ना लगे...:):O:
तो मैं कहना ये चाह रहा था कि पिछले तीन रोज लैपटाप आफिस के हवाले कर घर पर खुल्ला खुल्ला रहा तो लगा फिर से ज़िंदगी लौट आई। खूब खाए, पकाए, घूमे-घुमाए। फिल्म, कार्टून और सीरियल देखे। बच्चों संग खेला। लगा, ब्लागिंग से जो ज़िंदगी चली गई थी, वो लौट आई। इसमें गलती लैपटाप की या मेरी या घर की या आफिस की नहीं, अतिवाद का है, जो मेरे व मेरे जैसा साथियों के साथ दिक्कत है। जो भी करेंगे इतना करेंगे कि उसकी गांड़ में घुस जायेंगे और परान दे देंगे।
जो समझदार लोग होते हैं, संतुलित लोग होते हैं, दुनियादार होते हैं, विजनरी होते हैं, दृष्टि वाले होते हैं...हर काम उतना ही करते हैं जितना जरूरी होता है। पर अपन तो ठहरे भुच्च देहाती। भावना वाले। दिल वाले। इमोशन वाले। पार्टी अच्छी लगी तो चल दिए क्रांति करने। सेक्स उफान मारने लगा तो एकदम से हां कर दिया बियाह के लिए, बिना लड़की देखे। मां के आंसू देखे तो चल दिए नौकरी करने, झोला उठाकर। पत्रकारिता शुरू की तो लगे तेल लगाने जीभरकर। जब मन भर गया व तेल गाने से उबकाई आने लगी तो लगे तेल उतारने, जिनको जिनको लगाया उनसे उनसे हिसाब बराबकर करके तेल निकाल। सारा तेल वापस ले लिया, मय सूद के। इसी तरह ब्लाग शुरू किया तो ऐसा किया कि अपनी ही गांड़ में ब्लाग घुसा दिया और खुद हो गए पैदल....। और अब दुबारा ब्लागिंग शुरू की तो फिर घर में मुसीबत। मतलब, हरामीपने की हद है। जो करेंगे तो इतना की या तो सामने वाला बांय बांय चिल्लाकर डर के मारे भागने लगे या गरियाने लगे या खुद की अपनी ही फट जाए।
तो ये जो अतिवादी आदत है, उसे बदलने की कोशिश करनी होगी। इसी के तहत ब्लागिंग से एक समझदार दूरी बनाना चाह रहा हूं। हालांकि शायद ये अतिवादी आदत ही सच बोलने पर मजबूर करती है, भड़ास निकालने और भड़ास चलाने को कहती है, वरना समझदार और मध्यमार्गी लोग तो सब कुछ इतना स्ट्रेटजिक करते हैं कि पता ही नहीं चलता कब तीर निशान पर जाकर लग गया और वे एकदम से इस्टाइल में चौंकते हुए बोल पड़ेंगे....अच्छा, गुड, मुझे तो पता ही नहीं चला कि तीर कब छूटा था और तीर कब लक्ष्य भेद गया। हालांकि मन में भड़ास वो भी भरे रहते हैं लेकिन निकालते नहीं और एक दिन बस उनका इकट्ठा परान ही निकलता है, भड़ास की जगह। हर्ट अटैक आयेगा, समझदार लोगों को लो जाएगा। लेकिन जो भी हो, मैं तो समझदार बनना चाहता हूं, हर्ट अटैक आएगा तो देखा जाएगा।
समझदारों के गीत गाओ। समझदारों की तरह जियो। समझदारों की संगत करो। कहां भड़ास और भड़ासियों के बीच फंसे हो आप लोग। अनगढ़ लोगों की जमात है। देहातियों का बकवास है। असफल लोगों की बात है।
अपने डा. रुपेश जी हैं, जिद्दी हैं, समझाने पर भी नहीं मानते हैं, पेले रहते हैं, हम्ही लोगों को समझाते हैं, क्रांति के लिए उकसाये रहते हैं। अब तो उनके सपने भी आने लगे हैं। डंडा लिये खड़े हैं सिर पर, कह रहे हैं....
...
बोलो यशवंत बोले, क्रांति का मंच है कि नहीं भड़ास, और मैं चिल्ला कर कह रहा हूं...बस, मेरी मारना नहीं, मेरी लेना नहीं, बाकी जो कहोगे, कहूंगा, जैसे कहोगे, चलाऊंगा। और वो अट्टाहस करके हंस रहे हैं...देखा, साला कितना पोंकू है, डंडा देखते ही पोंकने लगा। थूं....तुम जैसे फट्टू भड़ासी पर।
तो भई भड़ासियों, अब भड़ास तुम्हारे हवाले, मैं चला समझदारी के गीत गाने। लेकिन जाते जाते कुछ हिसाब क्लीयर करना है, कुछ लोगों से। एक एक कर हिसाब क्लीयर करता हूं...
पहला हिसाब विनीत कुमार डीयू वाले शोधार्थी से ...
बच्चा, बहुत सच्चा-सच्चा लिखते हो, ऋचा आईबीएन-7 वाली चाहे जो करे लेकिन वो तुमको याद जरूर रखेगी, अगर कभी गए आईबीएन इंटरव्यू देने और उसने तुम्हे देख लिया तो डंडा डंडा मारेगी और दरबानों से उठवाकर फेंकवा देगी, सो उधरे शोध वोध करके मास्टरी करने की सोचना, अब टीवी में तो तुमको नौकरी नहीं मिलेगी.....:) सच कहने की कुछ तो सजा मिलनी चाहिए तुम्हें....।
दूसरा हिसाब पीडी भाई टेक्नोक्रेट से ...
पीडी भइया, दिल्ली की गर्मी गांड़ फाड़े है और आप फगुवा रहे हैं। मेरे बुरे सपनों के बारे में सबको बताकर काहें मेरी चड्ढी उतार रहे हैं। सपने तो साले ऐसे आते हैं, आते हैं, और आते रहेंगे कि अगर वो लिख दिया जाए तो सबकी फट जाएगी क्योंकि दरअसल सच्ची कहें तो सपने और भड़ास यही दो हैं जहां आदमी हलका होता है, जो नहीं कर पाता है कर लेता है, जो नहीं कह पाता है कह लेता है। अगर ये न हों तो आदमी साला पत्थर की मूर्ति बन जाए जिस पर कुक्कुर आकर मुत्ती कर दे और वो चूं तक न कर सके। ....लेकिन आपने याद दिलाकर अच्छा किया, भौजी की खोज वाली बात तो मैं भूल ही चुका था। ढेर सारी महिला ब्लागर हैं मैदान में, वो जिन महिलाओं ने भड़ास को खास भाव नहीं दिया है, उनमें से ही किसी को घोषित कर देंगे भड़ास की भौजी। दूसरा यह भी हो सकता है कि भड़ास की भौजी के लिए इस समय जितनी महिला ब्लागर हैं, उनके नाम पर भड़ासियों से वोट करा लिया जाए। जिसे ज्यादा वोट मिले, उसे घोषित कर दिया जाए।
तीसरा हिसाब अपने डा. रुपेश श्रीवास्वत जी से......
डाग्डर साहेब। आपसे बहुते उम्मीद है। एक डाग्डर साहेब लोहिया जी रहेन। जिनके चेले आजतक डाग्डर साहब का नाम लेकर अक्सर भांजने लगते हैं। दूसरे आप हैं, कम से कम मैं तो आपका चेला बन ही गया हूं। पर क्या बात है, आप कुछ नाराज हैं क्या, आपको मैंने एक पत्र भेजा था, मेल से। जवाब नहीं आया। अगर फुरसत मिले तो मुझे फोनिया लीजिएगा। आपका ब्लाग देखा, फाड़ू है। उसे आगे बढ़ाइए। मैं कमेंट नहीं कर पाया, बुरा न मानियेगा।
...चौथा हिसाब हिंदी मीडियाकर्मी साथियों से....
भड़ास में दोबारा वो कालम शुरू किया था, कनबतियां मीडिया जगत वाला, चल चला चल नाम से, उससे पहले बढ़ते जाना रे। लेकिन उसे लोगों ने रिस्पांस ठीक नहीं दिया। सूचनाएं मिल नहीं रहीं थीं, सो उसे बंद कर दिया। अब वो कालम इसलिए भी नहीं चलाना चाहता कि उससे अपुन का तो कोई फायदा नहीं, टाइम अलग से लगाना पड़ता था। दूसरे, कई ब्लागर साथी पत्रकारों की आवाजाही से संबंधित कालम चलाने लगे हैं, सो उसकी जरूरत पूरी होती रहेगी। मुझे मुक्ति भी मिल गई। आप लोगों से अनुरोध है कि ये कालम बंद करने के लिए माफ करेंगे और बोल हल्ला ब्लाग पर चल रहे इस कालम में सूचनाएं देकर उसे अपडेट रखेंगे।
अंत में....एक सूचना, हरिद्वार में ब्लागर मिलन होगा......
कल से हरिद्वार हूं, हफ्ते भर के प्रवास पर। वहां दो ब्लागरों से मिलने का प्रोग्राम है, डा. अजीत तोमर जी और डा. बुधकर जी। वहां से लौटकर जरूर अपने अनुभवों के बारे में आप लोगों से शेयर करूंगा।
फिलहाल इतना ही, अब देखो कब मिलते हैं, जय भड़ास
यशवंत सिंह
yashwantdelhi@gmail.com
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