मै धर्म देखू या कर्म देखू
रिश्ता देखू या कर्यव्य देखु
गर डूब रही हो जिंदगी की नैया
तो माँ देखु या बीबी देखू।
एक भविष्य है जिसने वर्तमान दिखाया
एक वर्तमान है जो भविष्य दिखाये।
समाज को देखू या अपनी बेवसी देखू
उंचे महल देखू या फुटपाथ पर सोती जिंदगी देखु
वसंत की मस्ती की हिलोरों को कम करती जेब देखू
बीबी बच्चो की अपनी तरफ आशा से उठती निगाहें देंखु
या बेटी के दहेज की लिए कोई जुगाड़ देखू
अव ये खुदा तू ही बता में देखु तो क्या देखू
अजीत कुमार मिश्रा
ऊहापोह भरी जिंदगी की सच्ची तस्वीर रखी है आपने। साधुवाद
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