23.3.08

हमहूं खेलेन होरी

भाई लोगन का जय राम. आज हम खूब होरी खेलेन. कोहू के इहां तो कोहू के उंहा ता कौनो के अंदरौ रंग लगाएन. फे चले गएन कलेक्टर बंगला में होरी खेलैं. मगर गुरू उहां कौनो मजा न आओ. इं बुरमारी के अधिकारी जौन रहे सब साहब ऐसे अच्छे लग रहे साहब ऐसे खेल रहे... सगले पेल्हर पकड़ के तौलत रहे. हमहीं यहां कहां मजा आबै सो हम अपने साधिन के साथ चलेन गुरु अखबारी होरी खेलैं. ... मजा तो यहैं आबा... जो जेही पाबत रहा पकड़ के दइ मारत रहा. कोऊ कोहू से लपटा है तो कोई कोहू का नंगा करे देत रहा. यहै बीच हमहूं का बुरमारी हरैं नंगा कै के मंजन कराइन ... खूब देर तक ई चलत रहा... न कौनो संपादक न मैनेजर न कौनो मशीन वाला... हर अखबार वाले आज एक साथ सालन बाद मिले... फेर कुछ अखबारी जलवा वाली दारू और भांग आई ऐखे बाद मस्ती का जौन शुरूर चढ़ा ता दादू अहिमक जने तो होईं लोट गे. हमहूं रस्ता भर डोलत-डोलत घरै पहुंचेन त मेहरारू आज खूब नीक लागत रही... फेर का वोहू का दै मारेन... फेर न बताउब..
और कौनो य मेर होरी खेलिस होय त बताबै... तबहिन त जनई की होरी खेली गै ही...

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