सूचना पुरानी है पर पुष्ट नहीं हो पायी है कि अमर उजाला के ग्रुप एडिटर शशिशेखर अब इस हिन्दी अखबार के निदेशक बना दिए गए हैं. साथ ही एडिटर का काम देखने के लिए अमर उजाला चंडीगढ़ के इंचार्ज उदय कुमार को लाया गया है. ये दोनों सूचनाएं हिन्दी मीडिया जगत में चर्चा में हैं और अमर उजाला के आतंरिक सूत्र इसकी पुष्टि भी कर रहे हैं पर आधिकारिक पुष्टि बाकी है. अगर आप लोगों को कुछ और पता हो तो ज़रुर बताएं.
वैसे हिन्दी मीडिया में आज के जमाने में किसी की जबरदस्त तरक्की के बारे में जानना समझना हो तो शशिशेखर इसके लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं. हालंकि अमर उजाला वाले उनकी गालियों से इतने घबराए रहते हैं कि मात्र शशि जी के नाम से ही भाई लोगों कि फटने लगती है. तभी तो अब अमर उजाला में सिर्फ शशिशेखर की जय जय करने वाले ही मिलेंगे. गालियों को भैया के प्रसाद के रूप मे ग्रहण करने वाले मिलेंगे. सारे अलग विचार और व्यक्तित्व के लोग एक एक कर निपटा दिए गए, कुछ खुद शहीद हो गए, कुछ हवा का माहौल देख उगते सूरज के साथ हो लिए.
वैसे हिन्दी मीडिया में संपादकों और ग्रुप एडिटरों द्वारा अपने पत्रकारों को गाली देने की परम्परा काफी पुरानी है. जो लोग हिन्दी मीडिया से जुडे हैं, उन्हें ये कहानियां खूब पता हैं. एक और बडे हिन्दी अखबार के ग्रुप एडिटर अपने जूनियरों को खूब गरियाते हैं और वहाँ भी भाई लोग इसको प्रसाद मान कर ग्रहण करते हैं. पता नहीं अंग्रेजी अखबार के संपादक कब गन्दी गन्दी गालियाँ देना सीखेंगे या अंग्रेजी वालों से सबक लेकर हिन्दी के संपादक गालियाँ देना कब छोडेंगे? हिन्दी के संपादकों के गाली विज्ञान पर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी. ये विषय वाकई हिन्दी ब्लोगिंग में बहस का विषय बनाया जाना चाहिए.
इस सबके बावजूद शशिशेखर को ये पूरा श्रेय दिया जायेगा कि उन्होने अमर उजाला को कंटेंट के लेवल पर काफी आक्रामक और नौजवान अखबार बना दिया है. उनहोंने अखबार को इक सूत्र में पिरो दिया है. लेआवुट और साज सज्जा को काफी बेहतर कर दिया है. अखबार को ग्रोथ भी काफी दिलाई है. ये सब कुछ उन्हीं के हिस्से में जाता है और ये अच्छाईयां ही हैं जो उन्हें प्रोफेसनली लगातार बढाये जा रही हैं, इससे सभी हिन्दी पत्रकारों को सीखना चाहिए.
फिलहाल तो मौका बधाई देने का है सो उन्हें सभी लोग खुल के कहो....जय हो शशि जी की.....यूं ही बढ़ते जावो....शशिशेखर को इस प्रमोसन के लिए भड़ास की तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं.....
जय भड़ास
यशवंत
Bebaaki se likhne ke liye badhayi.
ReplyDeletehindi ke group editors to gaali dete hi hain, chirkut editors and editorial incharges bhi unki dekha dekhi apne juniors ko kaafi gaaliyan dete hain hain and in-human behave karte hain. aur ye hi junior editor apne senior editors ko jamkar tel makkhan lagaate hain. ye samanti pravritti hai hindi media me jise khatm hona hi chahiye.
Anubhav, journalist
दादा,गाली विज्ञान को वाकई हिन्दी ब्लोगिंग में बहस का विषय बनाया जाना चाहिए कि क्या कारण है व्यक्ति जो समाज में सभ्य माना जा रहा है किसी खास अवसर पर गालियां प्रयोग करता है और वो भी संपादक जैसे आदरणीय पद पर आसीन हो कर ,यह सामंती प्रथा नहीं है कुछ अलग वजह है....
ReplyDeleteडा० साहब आप भी बेकार की बहस में पड़ रहे हैं।
ReplyDeleteये एक इंसान की भडास ही तो है जो कभी गाली,
कभी थप्पड, कभी गुस्सा और भी ना जाने
किन किन रूपों और आकारों मे निकलती है।
इस पर बहस तो बेमानी होगी, खासकर भडासियों
के लिये।
कम से कम हम खुलकर बात तो कह देते हैं।
बाकी लोगो को कोई मंच नही मिल पाता तो धे गाली पे गाली, धे गाली पे गाली।
चाहे जूनियर को दें या किसी कमज़ोर को।
मज़ा तो तब है जब बराबर वाले को गाली दें।
धन्यवाद
अंकित माथुर...