कल का दिन कानपुर शहर के इतिहास में एक बदनुमा दाग के रूप में अंकित हो गया, कल शहर के सबसे बड़े अस्पताल हैलट अस्पताल के प्रसूति एवं बाल रोग विभाग में बाँदा से मजदूर युवती अपने बच्चे को जंम देने के लिये आयी थी । चूंकि युवती मजदूर परिवार से सम्बन्ध रखती थी इसलियें उसके पास अपने पेट में पल रहे एक बच्चे के अलावा कुछ भी न था । अपने ऐशों आराम के आदी अस्पताल में पदस्थ डाक्टरों ने उसे सरकारी अस्पताल में घुसने नहीं दिया जिसका परिणाम यह आया कि उस युवती ने अस्पताल के दरवाजे पर ही एक बच्चे को जंम दे दिया जंम के कुछ देर बाद ही उसने दम तोड़ दिया इतनी गन्दी दुनिया को देखने की अपेक्षा उसने दुनिया छोड़ना ही बेहतर समझा इतना ही नहीं देर रात बच्चे को जंम देने वाली मां भी अपने बच्चे के पास होली । गत सप्ताह एक लड़की ने अपने प्यार के खातिर अपने पूरे परिवार जिसमें सात सदस्य थे, कि हत्या अपने प्रेमी के साथ मिल कर दी अपने मासूम सात माह के भतीजे को अपने हाथों से गला घोट कर खत्म कर दिया ,देश की राजधानी दिल्ली में नितिन ने अपने मां बाप पत्नी की हत्या कर दी ।
ये घटना यह प्रदर्शित करती है कि मानव के नाम से बनी मानवता भी मानव का साथ छोड़ कर अपनी दुनिया में विलीन हो गयी है । क्या समाज आज इस गति से आगे बढ़ रहा है कि उसे पीछे की गरीबी ,दया ,भावुकता,अपनापन,विवशता आदि कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है । कहां जा रहे हम ?। और इस पर आगे बढ़ कर हम जाना कहां चाहते है? कहां है हमारी मंजिल, ? मानवता से दूर हो कर हम पाना क्या चाहते है? अगर यही है हमारी तरक्की है, तो हम पिछडे ही ठीक थे अगर यही है शहरों का जीवन तो निश्चित ही हम गाँवों में इससे बेहतर जीवन जी रहे थे पत्थरों की ऊंची इमारतों में रहने के कारण हमारे दिल सोच विचारधारा भी पथरीली हो गयी है क्या ?
क्या हम यही सब पाने के लिये शिक्षित हो रहे है ? अगर यही शिक्षा है तो हम अशिक्षित ही ठीक है । वैश्विकरण के कारण पूरी दुनिया एक गांव का रूप ले रही है देश की सीमाऐ खत्म हो रही है लेकिन क्या उसका सही उपयोग हो रहा है । अगर किसी भी भड़ासी मित्र को ऊपर पूछे गये प्रश्नों का हल मालूम हो कृपया मुझे प्रतिक्रिया स्वरूप अवश्य बतायें
your worry towards disappearing humanity from world is correct ...1 of its reason is the hesitation that we people have inside us to come forward & help others...... It can be removed if parents teach their children to help others & be cooperative ... that they are not doing...they are just teaching their kids how to become more selfish & just do what ever is beneficial for their interest.
ReplyDeleteशशि जी,जीवन मूल्यों का जिस तीव्रता से ह्रास हो रहा है संकेत है कि यह प्रगति नहीं अपितु अधोगति है। हम अपनी जड़ों से दूर चले आये हैं हमें फिर भारतीयता के मूल में लौटना होगा वरना यही होता जाएगा और कोई हल नहीं निकलेगा। दया ,भावुकता,अपनापन जैसे शब्द अपना अर्थ खो चुके हैं...
ReplyDeleteअवस्थी जी,
ReplyDeleteआज बड़े दिनों बाद भडास पे एक सटीक मुद्दा दिखा, नही तो लग रहा था की हम किसी समारोह का हिस्सा बनते जा रहे हैं, सच में हमारी मानवीयता समाप्त प्राय हो चुकी है और इसका उदाहरण आपके सामने है,
जिसे हम भगवान् कहते थे वह व्यवसाय में लिप्त हैं यानि की डॉक्टर,
जिसे हम अपनी आवाज कहते थे वह व्यवसाय में लिप्त हैं यानी की पत्रकार,
मित्र हम अपने संस्कार को भूले या याद रखें से ज्यादा अहमियत रखती है की अगर थोड़ा सा इंसानियत अपने अंदर बरकरार रखें और इस नजरिये से सामने देखें।
जय जय भडास