ईटीवी में नौकरी करना बड़ा कठिन काम है. बस यूं समझ लीजिए कि आपको जंजीरों से जकड़ कर सोने के पिंजरे में डाल दिया गया है. रामोजी फिल्म सिटी किसी हसीन वादी से कम नहीं है. कई बार इसे एशिया की बेहतरीन फिल्म सिटी का अवार्ड मिल चुका है. सो मैंने इसे सोने का पिंजरा नाम दिया है. जहां आपकी जंजीरें एक निश्चित समय के बाद ही खुलेंगी. ऐसे मौके तो बहुत मिलते हैं कि आप खुद से उन जंजीरों को तोड़ कर बाहर आ जाएं. लेकिन तब आपकी हालत लुटी पिटी सी होती है. जी हां मेरी भी कुछ ऐसी ही है. मेरी ही क्यों ऐसी हिमाकत करने वाले सैकड़ों लोग लुटे पिटे से हैं. इतना कुछ खो जाने के बाद संभलने में काफी समय लगता है. खासकर दिमागी तौर पर आप हमेशा परेशान रहते हैं. मैं कोई पहेली नहीं बुझा रहा. ईटीवी में ट्रेनी से शुरूआत करने वाले मेरी व्यथा समझ गए होंगे. चलिए आपको भी विस्तार से व्यथा की कथा बता ही दूं ....
लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के बाद मेरा सेलेक्शन ईटीवी में हो गया. खुशी हुई कि अब अमर उजाला छो़ड़कर टीवी पत्रकारिता की शुरूआत करुंगा. लेकिन इसके लिए तीन साल का बॉन्ड भरवाया गया. बॉन्ड में साफ साफ लिखा था, एक साल के अंदर अगर आपने नौकरी छोड़ दी तो आपको एक लाख रुपये भरने होंगे. दूसरे साल नौकरी छोड़ने पर 75 हजार रुपये और तीसरे साल नौकरी छोड़ने पर 50 हजार का जुर्माना देना होगा. जब हैदराबाद पहुंचा तो ज्वाइनिंग से पहले सारे ऑरिजनल सर्टिफिकेट जमा करा लिए गए. भारी मन से पांच हजार की नौकरी के लिए सारे ऑरिजनल सर्टिफिकेट जमा करा दिए. काम शुरू कर दिया लेकिन जोर का झटका काफी जोर से लगा. यहां कोई विजुअल एडीटर नहीं था. ट्रेनी से लेकर कॉपी एडिटर तक सभी विजुअल एडीटर थे. एक आदमी एंकर लिखता था वो भी स्ट्रिंगर्स की खबरों में का, के, की और मात्रा की अशुद्धि ठीक कर देने भर से अपनी ड्यूटी पूरी कर लेता था. महज कुछ लोग ऐसे थे जो नए सिरे से एंकर लिखने की जहमत उठाते थे. समझ नहीं पा रहा था कि इस नौकरी का क्या करूं. बॉन्ड इसलिए भरा था कि तीन साल में इलेक्ट्रानिक मीडिया की अच्छी खासी समझ हो जाएगी. लेकिन यहां तो विजुअल एडिटिंग के सिवाय लिखने का काम नाम मात्र का ही था. हालांकि दिन भर मे एक पैकेज लिखने का मौका तो मिल जाता था. लेकिन अफसोस, सीनियरों से दिखाने पर बिनी एक शब्द काटे पैकेज ओके हो जाता था. ऐसा बिल्कुल नहीं था कि मैं बहुत अच्छा लिखता था. ऐसा हर किसी के साथ होता था. यानि आप जो लिखते हैं सभी सही है.
एक साल बाद कॉपी एडिटर का ओहदा मिला. इसे विजुअल एडिटर का नाम दिया जाता तो जस्टीफाइ होता. सबसे बेहतर कॉपी एडिटर वह होता था जो विजुअल में जर्क नहीं भेजता था. कई इफेक्ट के साथ पैकेज बनाता था. कमबख्त समय का मारा मैं भी एक बेहतर कॉपी एडीटर बन गया. कहना जरूरी नहीं कि एक बेहतर विजुअल एडीटर बन गया. डेढ़ साल होते होते समय काटना मुश्किल हो गया. हर किसी का प्रोफेशनल लाइफ बर्बाद हो रहा था क्योंकि कलम की ताकत खत्म हो रही थी. कई तो इसी में खुश थे. और ईटीवी को जर्नलिजम की स्कूल मानने लगे थे. जहां पत्रकारों की उपज होती है. ऐसा शायद ही कोई था जिससे विजुअल एडिटिंग नहीं कराई जाती थी. शायद डेस्क इंचार्ज ऐसा नहीं करते थे. लेकिन ज्यादातर डेस्क इंचार्ज ऐसे थे जो पहले कॉपी एडिटर थे. मतलब साफ है विजुअल एडिटर थे. ईटीवी की एक और खासियत थी. किसी विजुअल में जर्क ऑन एयर हो जाने पर या फिर बाइट में प्री रोल पोस्ट रोल नहीं होने पर कॉपी एडिटर की क्लास लगती थी. ये क्लास कोई और नहीं ईटीवी के सीनियर मैनेजर लेते थे. है न मजे की बात. मैनेजर डेस्क इंचार्ज को कहता था अमुक व्यक्ति ने गलती की है मेरे पास भेजिए.
इन सब चीजों से परेशान हो कई लोग मौका देख नौकरी छोड़ रहे थे. लेकिन सबकी अब तक की जमा पूंजी यानि कि ऑरिजनल सर्टिफिकेट यहीं फंसे रहे. नौकरी छोड़ने पर लीगल नोटिस भेजा जाता था. कई लोगों ने डरकर पैसे दिए और सर्टिफिकेट लेकर चैन की सांस ली. लेकिन अभी भी दर्जनों लोग ऐसे हैं जिनके सर्टिफिकेट सोने के पिंजरे(रामोजी फिल्म सिटी) में बंद है. मैंने भी हिम्मत करके नौकरी छोड़ दी और लाइव इंडिया ज्वाइन कर लिया. लेकिन मुश्किल और भी बढ़ गई है. सारे सर्टिफिकेट वहीं फंसे हैं. रिजाइन देने के बाद लीगल नोटिस भेजा गया कि, आपने बॉन्ड ब्रेक किया है इसिलिए पैसे चुकाएं. बात सिर्फ इतनी नहीं है पीएफ के पैसे भी फंसे हैं. बार बार धमकी भरा पत्र आता है कि आप सेटलमेंट कर लो नहीं तो कोर्ट में घसीटे जाओगे. और लोगों की तरह मैं भी इंतजार में हूं जब कोर्ट में मामला जाएगा तो देखेंगे. लेकिन इस बीच बॉन्ड भरने के दौरान साक्षी बने मेरे एक रिश्तेदार को भी धमकी भरा पत्र मिला कि सारे पैसे उनसे वसूले जाएंगे.
भाई, आपको इसलिए बधाई की आपने हिम्मत करके सच का बयान किया है। ये जो सोने के पिंजरे हैं, इनकी हकीकत का बयान किया है। निश्चित रूप से ईटीवी का पत्रकारों के साथ यह सलूक निंदनीय है। हम इस तरह के मध्ययुगीन बांडों और बरतावों की घोर निंदा करते हैं और एक लोकतांत्रिक सिस्टम डेवलप किए जाने की मांग करते हैं ताकि उसमें कोई भी पक्ष उत्पीड़न का शिकार न हो सके।
ReplyDeletekaushal tumne sahi likha...yahi trasdi humne bhi jheli hai..par career bananey ke chakkkar me kuch sujh nahi raha tha ...hum sab etv management ko karara tamacha jadna chahte hain..lekin tarika kya ho...humne bhi paisa bhara tha etv se darkar nahi balki court ke jhamelon me na fansne ke liye...yaar bharat ki court ka to haal jaante ho yahan apradhi bari aur nirdosh ko fansaya jaata hai har baar...tumhare liye bhi chinta ki baaat etv nahi sadi gali nyayik pradali hai.....is baarey me humse koi madad chiye to jarur batana....main puri koshish karunga madad karne ki...hridayendra
ReplyDeletesatyam shivam sundaram
ReplyDeleteकौशल...तुम वहीं हो ना...जो २००४-०५ में आआईएमसी में थे...दोस्त तुम्हारी कहानी सुनकर किसी सनकी तानाशाह से शासन तले जीने बाले जनता की याद आती है...पूरे देश में तरह-तरह के आयोग हर रोज बनते है..लेकिन पत्रकारों की सुध लेने बाली कोई संस्था नहीं...क्या हम उम्मीद करें कि तुम्हारी यह आवाज एक आंदोलन बन जाएगी...कभी सुना था कि एक मनिसाना बेतन आयोग बना था..अब तो वो भी याददाश्त से गुम होने लगा है...हिंदुस्तान अखबार से सैकड़ो पत्रकारों को बेआवाज बेदखल कर दिया गया..लेकिन मीडीया मठाधीशों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी...फिर तो मन करता है कि चाहे लाख देश का अहित हो...मीडीया में भी विदेशी निवेश खोल ही देना चाहिए...कम से कम पत्रकारों को तो ढ़ंग से बेतन मिल पाएगा...सच पूछो तो ये देश हित की रक्षा का सवाल ये शोषक किस्म के देशी मीडीया घराने ही उठाते हैं..जैसे ९० के दशक में उदारीकरण का विरोध वामपंथियों के साथ-साथ देशी व्यवसायियों के एक वर्ग ने किया था..ताकि मुल्क को चरने का मौका सिर्फ उन्हे ही मिले...
ReplyDeleteसोने का पिंजरा पढा, विचार तो ठीक है....डिबिया में तले रहेगा...ईटीवी से डरने की कोई बात नहीं है...पर ईटीवी से निकलने के बाद दुनिया को जिस तरह आपने ईटीवी की हकीकत बताने की कोशिश की है...वह प्रशंसनीय है....पर ईटीवी की बहुत सी अच्छी बातें भी हैं उन्हें भी लोगों को बताएं...
ReplyDeletebhai,
ReplyDeleteander ke kale prishtha ko bahar lana sachmuch sahasi raha.
aapko badhai,
कौशल... तुमने जो लिखा है वह हकीकत है। मैं तुम्हारे दर्द को बेहतर समझ सकता हूं। क्योकिं मैं खुद उस सोने के पिंजरे को तोड़ कर आया हूं। लेकिन यह तो दस्तूर है.. ताकतवर हमेशा कमजोर का शोषण करता है... यह आज भी जारी है। वह लोग ताकतवर है इसलिए कानून भी सनके साथ है, लेकिन खैर अब दिल्ली में हो तो जल्द ही तरक्की मिलेगी।
ReplyDeleteकौशल... तुमने जो लिखा है वह हकीकत है। मैं तुम्हारे दर्द को बेहतर समझ सकता हूं। क्योकिं मैं खुद उस सोने के पिंजरे को तोड़ कर आया हूं। लेकिन यह तो दस्तूर है.. ताकतवर हमेशा कमजोर का शोषण करता है... यह आज भी जारी है। वह लोग ताकतवर है इसलिए कानून भी सनके साथ है, लेकिन खैर अब दिल्ली में हो तो जल्द ही तरक्की मिलेगी।
ReplyDeleteकिसी दार्शनिक ने कहा है की ऎसे मौको पर आप सच बोलते है जब करने की इच्छाशक्ति प्रबल हो ।अत:आप इसके बिरोध मे उन सब लोगो को जोडो जो आप जैसे ही पीडित हो और श्री हरिशँकर परसाई जी की ब्यंग रचनायँ पढ् कर दुख से उबरने की कोशिश करेँ।
ReplyDeleteumesh soni
bilaspur
कौशल भाई,आप जिस तालाब में उतरे बस उसकी ही खून पीने वाली जोंको के बारे में जानते हैं ये तो हर तालाब में पाई जाती हैं आजकल लेकिन उन्हीं ताल्बॊं में गरीबों का भोजन सिंघाड़े भी उगते हैं तो जोंको पर नमक डालते हुए सिंघाड़े तोड़ने का हुनर सीख जाने पर शिकायत भी विलीन हो जाएगी....
ReplyDeleteसारे सर्टिफिकेट जमा करवाना बिलकुल निंदनीय काम है। यह तो सरासर बँधुआ मज़दूरी है। कमाल है! पत्रकारों से साथ भी इस तरह का सलूक होता है! ऐसा लगता है हम वापस जमींदारों के युग में पहुँच गए हैं। मानता हूँ कि बॉण्ड का अपना अलग महत्व होता है। पर उसके एवज में सर्टिफिकेट जमा करवा लेना बिलकुल ही निंदनीय है। ऐसे लोगों को सबक सिखाना ज़रूरी है। - आनंद
ReplyDeleteETV ko lekar main apke vicharon se sahmat hun... ye mahaz bhadas nahi balki vyatha hai un sabhi logon ki jo etv me bandhua majdoori karte hain... lekin janab marta kya na karta, delhi ka media bhi ek sone ka pinjara banta ja raha hai. Sahi mayne ,me patrakarita karne ko mushkil se ek-do news channel bache hain... KAh sakte hain ki majboori ka naam ETV NEWS......
ReplyDeleteKANCHAN PATWAL
kabile tareef... lekin marta kya na karta.... patrakarita to desh ki rajdhani me bhi nahi bachi hai
ReplyDeleteGood Job..... lekin Kaushal marta kya na karta
ReplyDeletekanchan patwal