14.4.08

पवन करण की कविताएँ

1. बुरका / पवन करण

तुम बार-बार कहते हो

और मुझे ज़रा भी

यक़ीन नहीं होता

इसे मेरे लिए

ख़ुद ख़ुदा ने बनाया है


तुम्हारे हुक्म पर जब भी

पहनती हूँ इसे

कतई स्वीकार नहीं करती

मेरी नुची हुई देह


स्वीकार नहीं करती

हर बार चीख-चीखकर

कहती है

नहीं, इसे ख़ुदा ने नहीं

तुमने बनाया है


मेरा ख़ुदा कहलाने के लोभ में

मुझे इसे तुमने पहनाया है



2. पेशी से वापस लौटते हुए / पवन करण

इतनी तेज़ बारिश तो नहीं हो रही इस वक़्त

फ़ालतू ही रुक गए यहाँ, भीगते हुए ही घर पहुँच जाते

तो क्या बिगड़ जाता, कोई मिट्टी के तो नहीं बने हम

जो गल जाते, गल कर बह जाते पानी में

कम से कम अदालत में पेशी से वापस लौटते

इन क़ैदियों से तमाशा बनने से तो बच जाते


वह साथ थीं वरना इन जालीदार बंद लारियों में

जानवरों की तरह भरकर जेल वापस लौटते कैदियों में से

एक भी मेरी तरफ़ ध्यान नहीं देता

देखता भी नहीं मेरी तरफ़ नज़र उठाकर

वह साथ थीं तभी तो उनके झुंड में से मेरे लिए

एक सामूहिक स्वर उठा क्यों बे लड़की बाज!

उसने दबाते हुए अपनी हँसी मुंह फेर लिया मेरी तरफ़

और मैं अपने सामने अचानक रुक गई

उस लारी में भरे क़ैदियों को अपनी खिल्ली उड़ाते चेहरे देखता रहा


जाली से बाहर झाँकने के लिए एक दूसरे पर चढ़-बैठ रहे

इन क़ैदियों में सभी तरह के अपराधी होंगे

कोई हत्यारा होगा कोई चोर तो कोई लुटेरा

किसी ने किया होगा कहीं कोई गबन

मामूली सा जेबकतरा भी होगा एक न एक ज़रूर

क्या इनमें कोई प्रेमी भी होगा

जो सोच रहा होगा इस वक़्त भी अपनी प्रेमिका के बारे में

कम से कम उसे तो क़ैदियों को हम पर इस तरह

फब्तियाँ कसते देख ज़रूर बुरा लगा होगा

शायद वह उन्हें रोकना भी चाहता होगा


इन क़ैदियों में कोई ऐसा भी होगा जिसने किया होगा

अपने ही बीबी-बच्चों का कत्ल

सबसे पहले कुल्हाड़ी से काटी होगी गहरी नींद में सोती पत्नी की गर्दन

एक-एक कर फिर तीनों बच्चों को सुला दिया होगा

हमेशा के लिए, ओहिर लगा ही ली होगी ख़ुद को फांसी

लेकिन मार नहीं पाया होगा ख़ुद को

सोचता हूँ अब क्या सोचता होगा वह ख़ुद के बारे में

क्या पत्नी की चूडियों की आवाज़ और

बच्चों की किलकारियाँ अब भी गूंजती होंगी उसके कानों में

क्या इन क़ैदियों में कोई जेबकतरा भी होगा ऐसा

जिसने मोटर स्टैंड पर किसी ऐसे आदमी की

काटी होगी जेब जो बूढी माँ की ख़बर मिलने पर

शहर से क़र्ज़ लेकर गाँव जा रहा होगा भागा-भागा

जेब कट जाने पर जो बैठा रह गया होगा वहीं

बसों को आता-जाता देखता

ड्यूटी पर खड़ी पुलिस ने भी बेरुखी के साथ

थाने में रपट लिखाने कह दिया होगा जिससे




इन कैदियों में क्या ऐसे पिता भाई और

चाचा भी शामिल होंगे जिन्होंने पंचायत का फैसला

मानते हुए अपनी ही लड़की को

प्रेमी के साथ उसके लटका दिया होगा पेड़ पर

प्रेम करने के बदले दे दी होगी उसे फांसी

क्या अब यहाँ जेल में वह मासूम सी लड़की और

उसका प्रेमी उनके सपनों में आता होगा,

और क़ैदियों के बीच वे किस तरह करते होंगे

अपनी उस वीरता का बखान


लारियों में भरकर पेशी से कारागार वापस लौटते

इन क़ैदियों में एक चेहरा मेरा भी हो सकता है कभी

फ़िर क्या जो इस वक्त मेरे साथ

बारिश से बचने खड़ी है यहाँ इस छज्जे के नीचे

जो मेरे साथ चाहती है जीना और मरना

जो मेरे साथ देखना चाहती है दुनिया

जो मेरे साथ पढ़ना चाहती है सब

जो मेरे साथ लिखना चाहती है कविता

क्या वह मुझसे मिलने तब-तब आया करेगी

जब-जब जेल से लाया जाएगा मुझे अदालत पेशी पर

क्या वह मुझे लारी में जेल जाते देख बहाया करेगी आँसू

आया करेगी जेल में दरवाज़े तक पीछा करते हुए मेरा


क्या वह जिससे मैं अक्सर कहता हूँ

तुम मुझे अपने मन के दरवाज़े पर कुत्ते की तरह

बंधा रहने देना, भगाना मत कभी

मैं वहां बंधे-बंधे भौंकता रहूंगा

करता रहूंगा तुम्हारी रक्षा सुनता रहूंगा तुम्हारी,

कुत्ते की तरह नहीं वफ़ादार प्रेमी की तरह मरूंगा फिर एक दिन

क्या वह कभी-कभी बनाकर अपने हाथों खाना

टिफ़िन भरकर लाया करेगी मेरे लिए जेल में



3. प्रधानमंत्री के कमांडो / पवन करण


इस कदर बेमतलब रहना सिखाया जाता है उन्हें

कि प्रधानमंत्री को हमेशा घेरे में लिये रहते

उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता

प्रधानमंत्री जनता से क्या कह रहे हैं

जिस वक्त प्रधानमंत्री बोले जा रहे होते हैं

कमांडो अपनी बिल्लौट निगाहों से लगातार

देख रहे होते हैं हमें इधर उधर



पेट से बाहर आने को व्यग्र वायु और

मुंह से बाहर छलांग मारने को बेताब हंसी

रोक पाना कितना कठिन होता है

यह कोई पदोड़ और हंसोड़ से पूछे

प्रधानमंत्री के सुनाये जिस चुटकुले पर जनता

मुंह फाड़ कर हंस रही होती है

उसे सुन कर कमांडो के चेहरे पर हंसी तो क्या

मुस्कान की हल्की सी लकीर भी नहीं उभरती



प्रधानमंत्री के पढ़े किसी शेर पर जब सब

दे रहे होते हैं दाद उनके होंठ कसे हुए होते हैं

प्रधानमंत्री की किसी घोषणा पर तालियों की

गड़गड़ाहट में शामिल होने

उनके हाथों की उंगलियां हिलती तक नहीं

वे हमें इतने निरपेक्ष दिखाई देते हैं कि हमें लगता है

वे कभी प्रधानमंत्री के आगे अपने भतीजे की

नौकरी की दरखास्त तक रखने की नहीं सोचते होंगे

हम अपने प्रधानमंत्री को हमेशा उन्हीं से घिरे

किसी परियोजना का शिलान्यास करते

किसी सेमीनार में दीप प्रज्ज्वलित करते या फिर

किसी पुल का उद्घाटन करते देखते हुए सोचते हैं

कमांडो के रहते हमारे प्रधानमंत्राी की जान

सुरक्षित है एकदम , कि प्रधानमंत्राी को हरदम

घेरे रहते वे कितने चुस्त दुरस्त ,

सजग , चौकस और आश्चर्यजनक फुर्तीले हैं



कमांडो से घिरे हमारे प्रधानमंत्राी हमें देख कर

मुस्कराते हुए दूर से हाथ हिलाते हैं , हम भी

उन्हें अपनी तरफ हाथ हिलाते देख उनकी तरफ

जोर जोर से हिलाते हैं अपने हाथ , मगर जैसे ही

अपने प्रधानमंत्राी से हम हाथ मिलाने की कोशिश करते हैं

कमांडो हम पर पिस्टल तान लेते हैं



हरदम प्रधानमंत्राी को घेरे रहने वाले ओैर

जरा सी बात पर हम पर गोली दाग देने के लिये तैयार

कमांडो से हमें डर लगता है , क्या हरदम

कमांडो से घिरे रहने वाले और हमारी तरह ही निहत्थे

प्रधानमंत्राी को कभी उनसे डर नहीं लगता ?





हम दूरदराज बैठे कमांडो से घिरे अपने प्रधानमंत्राी को

भारी भरकम प्रतिनिधि मंडल के साथ

विदेश यात्राा पर जाते देखते हैं

प्रतिनिधि मंडल में वही लोग शामिल होते हैं

जो प्रधानमंत्राी से हाथ मिलाने में हो चुके होते हैं कामयाब

हम अपने खाली हाथ अपनी जेबों में घुसेड़े

कमांडो की तनी हुई पिस्टल को करते हुए याद

प्रधानमंत्राी को हवाई जहाज में चढ़ने से पहले

मंत्रिामंडल के साथियों से फूल ग्रहण करते देखते हैं



प्रधानमंत्राी एक एक कर सबसे मुस्कराते

किसी किसी से थोड़ी थोड़ी बात करते

फूल लेते जाते हुए हवाई जहाज पर चढ़ने के लिये

लगी सीढ़ी तक बढ़ते जाते हैं

प्रधानमंत्राी को मिलते जा रहे फूलों को

प्रधानमंत्राी के साथ साथ आगे बढ़ रहे

कमांडो करते जाते हैं खुद के हवाले



विदेश यात्राा पर जाते प्रधानमंत्राी को फूल देने वालों में

मंत्रिामंडल में शामिल वह बुजुर्ग मंत्राी भी होता है

जो प्रधानमंत्राी को प्रधानमंत्राी मानता ही नहीं

जो सरकार में नम्बर दो या

अगला प्रधानमंत्राी माना जाता है जो ठीक

प्रधानमंत्राी के बगल वाले घर में रहता है

और रोज सुबह सोकर उठते ही

प्रधानमंत्राी के घर में पत्थर फेंकता है

और प्रधानमंत्राी के वे कमांडो भी उससे

कुछ नहीं कह पाते जो प्रधानमंत्राी से हाथ मिलाने की

कोशिश करने पर हमारी तरफ पिस्टल तान लेते हैं

प्रधानमंत्राी न चाहते हुए भी उससे हंस कर

फूल ग्रहण करते हैं , वह न चाहते हुए भी

प्रधानमंत्राी को फूल भेंट करता है

प्रधानमंत्राी अपने प्रति उसकी आंखों में

तिरस्कार और उसके होठों पर

कुटिल मुस्कान साफ देखते हुए भी

उससे नहीं कह पाते कि जाइए नहीं लेने

मुझे आपसे फूल और सुनिए आगे से आप कभी

इस मौके पर आना भी नहीं मुझे छोड़ने

कमांडो इनका चेहरा नहीं दिखना चाहिए मुझे

आज के बाद , तुम्हें पता नहीं ये महाशय

मुझे हटा कर खुद प्रधानमंत्राी बनना चाहते हैं



प्रधानमंत्राी के कमांडो प्रधानमंत्राी और उसे फूल लेते देते

देख कर बने रहते हैं सपाट , उसे लेकर

प्रधानमंत्राी की इच्छा को नहीं बनने देते वे अपनी इच्छा

मगर इस बात को याद कर

पेशाबघर में पेशाब करते हुए वे मुस्कराते जरूर हैं।





दूरदराज बैठे हम सोचते हैं हमारे प्रधानमंत्राी

उन कमांडो से जिनसे वे हमेशा घिरे रहते हैं

ठीक उसी तरह कभी हंसी मजाक करते हैं

जैसे वे पत्राकारों से करते हैं

कभी हमने उन्हें किसी कमांडो से बात

करते देखा तो नहीं चलो प्रधानमंत्राी की छोड़ो

क्या कभी प्रधानमंत्राी को खाली पाकर

उन्हें चारों तरफ से घेर कर चलते कमांडो ही उनसे

किसी बात पर बात करने की करते हैं कोशिश



क्या प्रधानमंत्राी किसी कमांडो के बीमार पड़ जाने पर

साथी कमांडो से उसका हाल पूछते हैं ,

उसके लौटने पर उससे कहते हैं

क्यों क्या हो गया था तुम्हें अब तो ठीक हो न ,

हम जैसे दफ्तर के बाबुओं के यहां

जैसे हमारे साहब चले आते हैं क्या प्रधानमंत्राी भी

किसी कमांडो की बेटी की शादी में

लिफाफा लेकर पहुंच जाते हैं

क्या कोई कमांडो भी इस तरह की इच्छा रखता है

कभी प्रधानमंत्राी अपने काफिले को रोक कर पूछें

अरे रमेश तुम्हारा घर तो इसी सड़क पर है न

चलो आज तुम्हारे घर चल कर चाय पीते हैं



प्रधानमंत्राी क्या उन सभी कमांडो

जो उन्हें हमेशा घेरे रहते हैं के नाम जानते हैं

उन्हें पानी चाहिए होता है तो किसी

कमांडो की तरफ देख कर वे सिर्फ पानी कहते हैं

या रणवीर पानी तो लाओ कहते हैं



और तो और वे कमांडो प्रधानमंत्राी के इर्द गिर्द

कहां कहां घेरा बनाये रहते हैं

क्या उस जगह के बाहर दरवाजे पर भी

जिसमें हमारे बुजुर्ग प्रधानमंत्राी के पायजामे की गांठ

अक्सर देर तक खुलती नहीं है तब क्या

प्रधानमंत्राी उसे खोलने उन्हीं में से

किसी एक को आवाज देकर बुलाते हैं



कमाल है कि अपने प्रधानमंत्राी को तो हमने

अक्सर ऊंघते , सोते, उबासी लेते देखा है

मगर प्रधानमंत्राी को घेरे रहते कमांडो को हमने आज तक

छींकते , खुजाते, नाक में उंगली मारते नहीं देखा



हम सोचते है हमारे प्रधानमंत्राी कभी अपने कमांडो से

हमारे बारे में भी बात करते होंगे

क्या वे कभी उनसे कहते होंगे जहां तक

जनता पर तुम्हारे बंदूक तान लेने की बात है

वो तो ठीक है मगर मेरा तुमसे अनुरोध है

कभी उन पर गोली मत चला देना।

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जन्म: 18 जून 1964
जन्म स्थान ग्वालियर, मध्यप्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ: इस तरह मैं (2000), स्त्री मेरे भीतर (2006)
विविध: रजा पुरस्कार (2002), रामविलास पुरस्कार (2002) और हिन्दी के लेखकों को दिया जाने वाला रूस का प्रतिष्ठित पुश्किन सम्मान (2006)। कुछ कविताएँ रूसी भाषा में अनूदित
पवन करण का मोबाइल नंबर है-09425109430

7 comments:

  1. अदभुत नज़र है पवन करण जी की। खासकर प्रधानमंत्री के कमांडो वाली कविता तो कमाल की है। तीनों ही कविताएं अव्वल दर्जे की हैं। तीनों कविताएं तीन तरह के आदमियों/औरतों की मनोदशाओं, जीवन स्थितियों, सोच, संवेदना, सकारात्मकता को बयान करती हैं। मेरी तरफ से पवन करण को ढेर सारी बधाई, इन कविताओं के लिए। आप जुग जुग जियें, लगातार लिखते रहें।

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  2. hare dada,

    badhai to main sirf aapko dunga, chalo bhadaas ke hi bahane aapne badi behtareen kavitayen hamare saamne rakhi hai jo sayad hum tak pahoonch hi nahi paati.

    punashch dherad badhai
    or sahashra vandan

    jai jai bhadaas

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  3. पवन करण जी अदभुत पकड़ रखते हैं विचारों की काव्याभिव्यक्ति पर लेकिन पंडित जी आपने इनके परिचय में हमेशा की तरह लिंग का उल्लेख क्यों नहीं किया इसबार....???? :)

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  4. Bhaee aap sbka shukriya.
    @dr. sab pwan kran jee ke ling ke bare me internet pr kahi mujhe koi jankari hi nhi mili jinki milti hai, batata hi hoon

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  5. बहुत बढ़ि‍या। जितनी रोचक है उतनी ही गहरी। - आनंद

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  6. pawan ji burkhe ko jish roop me aapne pesh kiya bahut badiya ..my best wishes is alwaya with you.

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  7. apne priye kavi ko bhadas par padhkar bahut achha laga sabhi kvitayen mere liye nayee hi hai .padh kar achha laga ..hare bhai ko koti-koti sadhuvaad..
    dr.ajeet

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