12.4.08

साथियों सहयोग करें

कोई दीवार से लग के रोता रहा और भरता रहा सिसकियां रात भर।
आज फिर चांद नजर आया नहीं, राह तकती रहीं खिडकियां रात भर।।
भडासी साथियों यह दो लाइनें उस गजल की हैं जिन्हें बरसों पहले एफएम रेनबो लखनऊ पर सुना था। पूरी गजल दोबारा सुनने को नहीं मिली। ना ही यह गजल मुझे याद हो पाई। वैसे बडी उम्दा गजल है। साथियों अगर आप में से किसी के पास भी यह गजल हो तो पूरी कर दें। बहुत हसरत है इस गजल को दोबारा सुनने या पढने की। अगर हो सके तो यह भी बता दें कि यह गजल किसने लिखी है।

5 comments:

  1. ye lo bhai ghazal (Roman mein likhne ke liye maafi.)


    Koi deewar se lag ke betha raha
    Aur bharta raha siskiyan raat bhar
    Aaj ki raat bhi chand aaya nahin
    Rah takti rahin khirkiyan raat bhar
    Gham jalata kese koi basti na thi
    Mere charo taraf mere dil ke siwa
    Mere hi dil pe aa aa ke girti raheen
    Mere ehsaas ki bijliyan raat bhar
    Dairey shoukh rangon ke bantey rahey
    Yaad aati rahi woh kalai humain
    Dil ke sunsaan aangan main bajti raheen
    Reshmi sharbati chooriyan raat bhar
    Koi deewar say lag ke baitha raha
    Aur bharta raha siskiyan raat bhar
    Aaj ki raat bhi chand aaya naheen
    Rah takti raheen kerkyan raat bher

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  2. ये लीजिए हूजूर.. आपकी गज़ल हाजिर है:

    http://www.jitu.info/merapanna/?p=875

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  3. लीजिये,
    आपको भी मिल्गाया, दिल को जरूर सुकून पंहुचा होगा, जीतेन्द्र भाई आपको धन्यवाद और अबरार भाई को बधाई।
    ये हुआ भडास।
    जय भडास जय जय भाद्दास।

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  4. प्यारे अबरारजी और अन्य साथियों,

    आपकी फ़रमाईश पूरी हो गयी है, मेरे चिट्ठे पर आप "कोई दीवार से लगके बैठा रहा" सुन सकते हैं ।

    http://antardhwani.blogspot.com/2008/04/blog-post_4172.html

    साभार,
    नीरज

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  5. भाई जितेंद्र चौधरी, धन्यवाद
    भडासी साथियों मुझे एक गजल ढुढे नहीं मिल रही थी। मैंने भडास पर पोस्ट डाल साथियों से सहयोग मांगा और आश्चर्य जिस गजल को मैं बरसों से ढुंढ रहा था वह कुवैत से भाई जितेंद्र चौधरी ने मुझे पूरी लिख कर कमेंट के रूप में दी। इसे कहते हैं भडास की ताकत। यह हमारी एकता ही है कि हम केवल देश में ही नहीं विदेश में भी आपस में जुडे हैं। आज हर भडासी साथी एक दूसरे के दुख सुख में शामिल है। इसका प्रमाण कई मौकों पर देखने को मिला है। मैं इसके लिए भाई यशवंत और भाई डा रूपेश का तहे दिल शुक्रगुजार हूं जिन्होंने एक पौधे को सींचकर इतना बडा और हरा भरा बना दिया है कि वह आज हर राहगीर को अपनी छाया दे रहा है। हमारी एकता दिख रही है। इससे कई गंभीर मसले सुलझ रहे हैं। यह नई शुरुआत है और आने वाले समय में इसके बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। और निश्चित रूप से यशंवत भाई को इसका श्रेय जाता है। खैर मैं अल्लाह तआला से यही दुआ करूंगा कि भडास का यह पेड उस बरगद की तरह बढता जाए जिसकी जडे इतनी मजबूत और इतनी शाखाओ वाली हों कि इसकी छांव हर जरूरतमंद को मिल सके। आमीन। मैं एक बार और भाई जितेंद्र चौधरी का आभार व्यक्त करता हूं जिनकी बदौलत एक अच्छी गजल दोबारा मुझे पढने और गुनगुनाने को मिली।
    इनकलाब भडास
    अबरार अहमद

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