कोई दीवार से लग के रोता रहा और भरता रहा सिसकियां रात भर।
आज फिर चांद नजर आया नहीं, राह तकती रहीं खिडकियां रात भर।।
भडासी साथियों यह दो लाइनें उस गजल की हैं जिन्हें बरसों पहले एफएम रेनबो लखनऊ पर सुना था। पूरी गजल दोबारा सुनने को नहीं मिली। ना ही यह गजल मुझे याद हो पाई। वैसे बडी उम्दा गजल है। साथियों अगर आप में से किसी के पास भी यह गजल हो तो पूरी कर दें। बहुत हसरत है इस गजल को दोबारा सुनने या पढने की। अगर हो सके तो यह भी बता दें कि यह गजल किसने लिखी है।
ye lo bhai ghazal (Roman mein likhne ke liye maafi.)
ReplyDeleteKoi deewar se lag ke betha raha
Aur bharta raha siskiyan raat bhar
Aaj ki raat bhi chand aaya nahin
Rah takti rahin khirkiyan raat bhar
Gham jalata kese koi basti na thi
Mere charo taraf mere dil ke siwa
Mere hi dil pe aa aa ke girti raheen
Mere ehsaas ki bijliyan raat bhar
Dairey shoukh rangon ke bantey rahey
Yaad aati rahi woh kalai humain
Dil ke sunsaan aangan main bajti raheen
Reshmi sharbati chooriyan raat bhar
Koi deewar say lag ke baitha raha
Aur bharta raha siskiyan raat bhar
Aaj ki raat bhi chand aaya naheen
Rah takti raheen kerkyan raat bher
ये लीजिए हूजूर.. आपकी गज़ल हाजिर है:
ReplyDeletehttp://www.jitu.info/merapanna/?p=875
लीजिये,
ReplyDeleteआपको भी मिल्गाया, दिल को जरूर सुकून पंहुचा होगा, जीतेन्द्र भाई आपको धन्यवाद और अबरार भाई को बधाई।
ये हुआ भडास।
जय भडास जय जय भाद्दास।
प्यारे अबरारजी और अन्य साथियों,
ReplyDeleteआपकी फ़रमाईश पूरी हो गयी है, मेरे चिट्ठे पर आप "कोई दीवार से लगके बैठा रहा" सुन सकते हैं ।
http://antardhwani.blogspot.com/2008/04/blog-post_4172.html
साभार,
नीरज
भाई जितेंद्र चौधरी, धन्यवाद
ReplyDeleteभडासी साथियों मुझे एक गजल ढुढे नहीं मिल रही थी। मैंने भडास पर पोस्ट डाल साथियों से सहयोग मांगा और आश्चर्य जिस गजल को मैं बरसों से ढुंढ रहा था वह कुवैत से भाई जितेंद्र चौधरी ने मुझे पूरी लिख कर कमेंट के रूप में दी। इसे कहते हैं भडास की ताकत। यह हमारी एकता ही है कि हम केवल देश में ही नहीं विदेश में भी आपस में जुडे हैं। आज हर भडासी साथी एक दूसरे के दुख सुख में शामिल है। इसका प्रमाण कई मौकों पर देखने को मिला है। मैं इसके लिए भाई यशवंत और भाई डा रूपेश का तहे दिल शुक्रगुजार हूं जिन्होंने एक पौधे को सींचकर इतना बडा और हरा भरा बना दिया है कि वह आज हर राहगीर को अपनी छाया दे रहा है। हमारी एकता दिख रही है। इससे कई गंभीर मसले सुलझ रहे हैं। यह नई शुरुआत है और आने वाले समय में इसके बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। और निश्चित रूप से यशंवत भाई को इसका श्रेय जाता है। खैर मैं अल्लाह तआला से यही दुआ करूंगा कि भडास का यह पेड उस बरगद की तरह बढता जाए जिसकी जडे इतनी मजबूत और इतनी शाखाओ वाली हों कि इसकी छांव हर जरूरतमंद को मिल सके। आमीन। मैं एक बार और भाई जितेंद्र चौधरी का आभार व्यक्त करता हूं जिनकी बदौलत एक अच्छी गजल दोबारा मुझे पढने और गुनगुनाने को मिली।
इनकलाब भडास
अबरार अहमद