29.4.08

आप सबके लिए विटामिन की कुछ गोलियाँ...

सभी स्नेहिल मित्रों को प्यार भरा नमस्कार...अपना भाई कुछ आह़त है, हमेशा हो जाता है..मेरा निजी ख़याल है वोः बेहद संवेदना रखने वाला आदमी है...अपने कई मित्र आह़त होते हैं...खुश होते हैं..बदलते दौर से निराश भी...होना भी चाहिए...मुझे ऐसे में कुछ पंक्तियाँ बेहद राहत देती हैं...मेरे कई अपनों को भी राहत देंगी.... तोः लीजिये पेश-ए-नज़र है....
किरण की इकाई पर
तिमिर की दहाइयां
शगुनो पर फैली हैं काली परछाइयां
शक्ति कहीं गिरवी है भक्ति कहीं गिरवी है
सौदा ईमानो का श्रद्धा सम्मानों का
शंख भी शशंकित हैं सहमी हैं पुरवाइयां.....
तोः इस दौर में जब एक चेहरे के भीतर ना जाने कितने चेहरे हैं...जब अपने आसपास शंका का माहौल बना है...कौन बुरा और कौन अच्छा है...पहचानना बेहद मुश्किल है तोः ऐसे में येः पंक्तियाँ मेरे ख़याल से बड़ी मौजूं लगती हैं....है कि नई......और हाँ येः मेरी नही हैं पता नही किस भलेमानुष की हैं...बाकी व्यस्त रहिये मस्त रहिये.....और अपना भाई है यशवंत सिंह.....वही किसी की कारगुजारियों से थोड़ा आह़त लग रहा था...तोः सोचा मौका सही है....कुछ लिख डालने का...
हृदयेंद्र

3 comments:

  1. अरे दिल के राजाबाबू, अपना भाई किसी से परेशान नहीं होता लेकिन अपने आसपास शंका का माहौल बना है और वो शंका छोटी सी हो यानि कि ................. लघुशंका.... तो ऐसे माहौल में तो भाई कोई भी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने वाला परेशान हो ही जाएगा। एक चेतावनी दे रहा हूं कि विटामिन-सिटामिन की गोलियों का क्षेत्र मेरा है भाई क्यों मेरे पेट पर लात मार रहे हो.... :)

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  2. हृदयेंद्र जी,
    गिले शिकवे तो अपनों में ही होते हैं और आदमी की नीयत साफ हो तो इनका कोई अर्थ नहीं होता है. आप दोनों ही ने अपनी नेकनीयती का सबूत दे दिया है, फ़िर गिले शिकवे कैसे. और हाँ, डॉक्टर साहेब के पेट पर कृपया लात मारने की कोशिश न करें. क्यों.
    वरुण राय

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  3. भाई,
    चलो साफगोई हो गई, अरे भडास है उ त निकलबे करेगा ना, ससुरा ओही के कारन तो फेट फूल गया था। चली सच उगलिए और उगलते रहिये। सच थोड़ा सा तकलीफदेह होता ही है।
    अच्छा है ना दादा ने भी उगल कर क्लिअरे कर दिया । अब चलो वापस जुट जाओ बच्चा लोगों भडास फोरने में ।
    जय दद्दा की
    जय जय भडास.

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