किसी के लिए बिछ जाते है,
झुककर धनुष बन जाते हैं।
झूठ मक्कारी का सहारा भी लेते हैं।
इन सब के बदले में कुछ सुविधाऐं लेते हैं।
पर जब कोई हमारे सामने झुककर।
जिंदगी की भीख मांगता है।
गिड़गिड़ता है, पैर पर जाता है।
सुविधायें नहीं जिंदगी मांगता है।
तब नियम-कानून की आड़ लेकर
कैसे उसके सामने अकड़ जाते हैं।
कौन है जो यह सब करता है।
किससे बताये सभी तो यही करते हैं
किस नाम से पुकारोगे इसे
हर पल भेष बदलता है।
कभी डाक्टर तो कभी मास्टर बन जाता है।
कभी वकील तो कभी पत्रकार बन जाता है।
कभी अधिकारी के भेष मे दिख जाता है।
तो कभी चपरासी भी बन जाता है।
इनके सामने धनुष रुप में जो खड़ा नजर आता है।
वह आम आदमी कहलाता है।
ek aam admee ka hubahoo roop najar aata hai apkee rachnaa mein
ReplyDeletebadhai..
ek aam admee kaa aslee chehraa najar aata hai apkee rachnaa mein ..
ReplyDeletebadhai..
ek aam admee kaa aslee chehraa najar aata hai apkee rachnaa mein ..
ReplyDeletebadhai..
itni behtar kavita main to nahi hi likh paata....good ajit ji....excellent tak bhi pahunch hi jaayenge....best of luck man...
ReplyDelete--hridayendra pratap singh
यार लोग क्या कर रहे हैं समझ में नहीं आ रहा है, अक्लदानी जरा छोटी ही दी है ऊपरवाले ने? पूनम बहन ने तीन बार प्रसन्नता जाहिर कर बधाई दी है और दिल वाले सिंह साहब अनाम कमेंट देकर अपना नाम लिख रहे हैं ये क्या रहस्य है? कविता तो निस्संदेह सुन्दर है....
ReplyDeleteआम आदमी आम ही रहा
ReplyDeleteबन गए कुछ ख़ास
ख़ास खाए पकवान राबड़ी
आम खाए घास
जय जय भड़ास.
सुंदर कविता श्रीमानजी
वरुण राय
वाह वाह। अतिसुन्दर। भाई इससे ज्यादा मुझे लिखना नही आता वैसे कविता के ऊपर कमेन्ट ही बता रहा है की कमल की है । लोग बौरा गए से लगते हैं।
ReplyDeleteऔर वरुण भाई ने तो राबरी भी खिला दिया, भाई सावधान, लालू जी सुने रहे होंगे। खी.....खी.....खी.....खी.....खी.....
जय जय भडास