30.4.08

एक और महा(?)त्मा गांधी की गंध......

एक और महात्मा गांधी सुन कर ही हो सकता है कि भड़ासियों की हवा तंग हो गयी होगी कि एक क्या कम थे जो फिर दुबारा अवतार ले लिये हजरत। अब नोट के ऊपर दोनो का फोटो एक साथ लगाना पड़ेगा। वरना नए महात्मा गांधी RTI का अहिंसक तरीके से इस्तेमाल कर करके सरकार की पिछाड़ी में कुंआ खोद देंगे हो सकता है कि ट्यूबवेल बना दें। ये नए महात्मा गांधी कोई और नहीं आम आदमी के हितों के लिये सूचना प्राप्ति के अधिकार की पिपिहरी बजाने वाले शैलेश गांधी हैं। हर बड़े आदमी को छोटे से बड़ा होने के लिये एक सीढ़ी की चाहिये होती है अगर वो राहुल गांधी की तरह से पैदाइशी बड़ा नहीं है तो और हमारे देश में ये सीढ़ी इनमें से कोई भी हो सकती है जिसे जो मिल जाए जैसे कि -- दलित, अल्पसंख्यक, महिला..... आदि ..आदि...इत्यादि...इत्यादि...। इसी तरह से हमारे नए गांधी ने अण्णा हजारे जी की बनाई सीढ़ी को झपट लिया कि बुढ़ऊ तो आजकल में निकल ही लेंगे लेकिन अगर कहीं इतनी बड़ी सीढ़ी को किसी दूसरे ने झपट लिया तो गजब हो जाएगा। आनन-फानन में NGO बनाया गया, स्वर्णिम वाक्य(यदि मेरा देश महान नहीं है तो इसके लिये मैं जिम्मेदार हूं) की रचना करी गयी, वेबसाइट बनाई गयी और तुरंत लोगों को ईमेल्स-फीमेल्स के द्वारा बताया गया कि हम कितना महान काम कर रहे हैं देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को दुरुस्तगी के मार्ग पर ला रहे हैं और सन २०१० तक ऐसा हो जाने का आश्वासन भी दे डाला। अब जब नाम हो गया तो आम आदमी से ऐसे दूर हो गए जैसे कि सेरिडान की गोली से सिरदर्द..... क्योंकि अगर दूर नहीं होएगें तो अण्णा हजारे जी की तरह ’राळेगणसिद्धी’ नामक छोटी सी जगह पर गंदे-संदे,मैले-कुचैले लोगों की समस्याएं सुनते ही उम्र बीत जाती। इसी लिये इन्होंने अभी से नेताओं के गुर सीख लिये हैं इनकी वेबसाइट पर दिये फोन लगते नहीं हैं चाहे मोबाइल हो या घर का नंबर। अगर आपने भूत-प्रेत सिद्ध कर रखा है जो आपको इनका नया वास्तविक मोबाइल नंबर आपको बता दे तो पहली बार तो गलती से आपको काम का आदमी समझ कर मोबाइल पर पांच सेकंड बात कर ली जाती है और समझ में आते ही कि आप तो आम आदमी हैं फोन काट दिया जाता है फिर चाहे आप एक करोड़ बार फोन करें जनाब फोन नहीं उठाते। भाई लोग ये भारत है यहां जो एक बार फलों तक पहुंच जाता है वो पेड़ की जड़ों से ऐसा ही व्यवहार करता है। नए महात्मा गांधी जब आने वाल समय में मंत्री-जंत्री बन जाएंगे तब हो सकता है कि जनता दरबार में हमारी बात सुन लें। तब तक के लिये.........
जय जय भड़ास

2 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने रूपेश भाई. दलित,महिला,अल्पसंख्यक आदि आजकल सत्ता के गलियारे में एंट्री मारने का सबसे आसान और विश्वस्त तरीका हो गया है. आधुनिक गांधी इसी को आजमाना चाह रहे हैं शायद .
    वरुण राय

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  2. भाई,
    ये गांधी नही गंध है इस समाज का, और पता नही साले क्या समझ के आ जाते हैं और गंध ही गंध फैलाते हैं। ससुरे के लिए कुछ कीजिये , रूम फ्रेशनर ना हो तो कछुआ का अगरबत्ती ही सही ऊ भी ना हो तो पुआल का टाल जलाइये और इस दुर्गन्ध को भगाइये।
    जय जय भडास

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