यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू मे हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फ़िर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फ़िर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यो सोचे कल, कल क्या हो
पंडित जी,ईना-मीना-डीका-डाए-डामानिका-माका-नाका-माका-चिका-पिका-रिका-रमपम पोश-रमपमपोश.......
ReplyDeleteमीना जी तो बस मुझमें ऐसे ही बसतीं हैं...
sundar rachna...
ReplyDeleteyashwant