एक बार महिला संत राबिया के यहां एक पादरी पहुंचा। राबिया ईसाई नहीं थी मगर उसके घर बाइबिल रखी देखकर उसे हैरत हुई। उसने कौतुहलवश बाइबिल उठाई। पादरी को यह देखकर अजीब लगा कि राबिया ने बाइबिल के कुछ अंशों को काट दिया है। उसमें एक अंश था- पाप से नफरत करो पापी से नहीं। जब पादरी ने इस अंश को काटने का कारण राबिया से पूछा तो राबिया ने कहा, जिसका दिल करुणा से भरा है वह किसी से नफरत कैसे कर सकता है? नफरत और मुहब्बत कभी एक साथ नहीं रह सकते। जिसके पास जो होता है वह संपूर्ण होता है या फिर नहीं होता है। बाकी सिर्फ दिखावा होता हे। जिसका मन ईश्वर के लिए अहोभाव से भरा है, उसमें सिर्फ मुहब्बत होगी नफरत नहीं। जैसे सूरज बिना भेदभाव के सब को रौशनी देता है,वैसा ही दिल संत का होता है। वह नाप-तौलकर चींजें नहीं बांटता है। मैं सोचता हूं कि रूबिया ने कितना सही कहा था? जो बुराई में खर्च हो रहे हैं वो क्या किसी की तारीफ भी कर सकते है? ऐसे लोगो के लिए कविवर मुकुट बिहारी सरोज की ये पंकि्तयां कितनी मुफीद हैं-
बने अगर तो पथ के रोड़ा,करके कोई ऐब न छोड़ा
असली चेहरा दीख न जाए,इसीलिए हर दर्पण तोड़ा
सभी भड़ासी दोस्तों की पावन चेतना को सादर...
सुरेश नीरव
पंडित जी,लट्ठ मार-मार कर धूल झाड़ रहे हैं और हमारे जैसे तथाकथित पतितों में भी पावनता का जिक्र कर रहे हैं,जै हो प्रभु कोटि कोटि जै हो आपकी।
ReplyDeletehm sb pati-tpavn hain ji
ReplyDeletesahi hai sir ji
ReplyDeleteyashwant
ekdam sahi hai ji.
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